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एनआरसी मामला : 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे लोग ही भारतीय

नेशनल कंटेंट सेल असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के सोमवार को जारी दूसरे एवं अंतिम मसौदे के मुताबिक, असम में 40 लाख लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं. दरअसल, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें जिन लोगों के नाम नहीं होंगे उन्हें अवैध नागरिक माना जायेगा. एनआरसी में उन […]

नेशनल कंटेंट सेल

असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के सोमवार को जारी दूसरे एवं अंतिम मसौदे के मुताबिक, असम में 40 लाख लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं. दरअसल, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें जिन लोगों के नाम नहीं होंगे उन्हें अवैध नागरिक माना जायेगा. एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया जायेगा जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं.

किन राज्यों में एनआरसी होता है लागू : एनआरसी उन्हीं राज्यों में लागू होती है जहां अन्य देश के नागरिक भारत में आ जाते हैं. आमतौर पर यह उन्हीं राज्यों में लागू होता है जिनकी सीमाएं अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगी होती है.

बंटवारे के बाद भी जारी रहा आना-जाना : 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गये. लेकिन, असम में भी जमीन होने के कारण लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा.

1979 में शुरू हुआ आंदोलन : तत्कालीन, पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश से असम में लोगों का अवैध तरीके से आने का सिलसिला जारी रहा. इससे वहां पहले से रह रहे लोगों को परेशानियां होने लगीं. असम में विदेशियों का मुद्दा तूल पकड़ने लगा. साल 1979 से 1985 के बीच छह सालों तक असम में एक आंदोलन चला. तब यह सवाल उठा कि यह कैसे तय किया जाये कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन विदेशी.

असम समझौता
इसके बाद 15 अगस्त, 1985 को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और दूसरे संगठनों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का समझौता हुआ. इसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है. इस समझौते के तहत ही 25 मार्च, 1971 के बाद असम आये लोगों की पहचान की जानी थी. असम समझौते के बाद आंदोलन से जुड़े नेताओं ने असम गण परिषद नाम के राजनीतिक दल का गठन कर लिया जिसने राज्य में दो बार सरकार भी बनायी.
मनमोहन सिंह ने किया था अपडेशन का फैसला
2005 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च, 1971 से पहले अवैध तरीके से दाखिल हो गये लोगों का नाम एनआरसी में जोड़ा जायेगा. विवाद के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इसके बाद साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में आइएएस अधिकारी प्रतीक हजेला को एनआरसी अपडेट करने का काम दे दिया गया. इधर, चुनाव आयोग ने नागरिकता संबंधी कागजात दिखा पाने में असमर्थ लोगों को डी- कैटेगरी में डाल दिया है. ‘डी’ यानी ‘संदेहास्पद’ वोटर्स की श्रेणी 1997 के चुनाव में असम में लायी गयी थी.
सरकार बनी तो बंगाल में भी एनआरसी : बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि अगर बंगाल में उनकी पार्टी की सरकार आती है तो असम की तरह ही बंगाल में भी एनआरसी जारी किया जायेगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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