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Friday, March 29, 2024

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ममता बनर्जी की नजरें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर

कोलकाता : सिंगूर और नंदीग्राम में करीब 10 साल पहले सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार के खिलाफ परेशान, भूखे और गुस्से से भरे हजारों लोगों का नेतृत्व करने वाली ममता बनर्जी को शायद ही उस समय यह पता रहा हो कि वह इतिहास की एक नयी पटकथा लिखने की दहलीज पर हैं. यह तो 10 साल पहले […]

कोलकाता : सिंगूर और नंदीग्राम में करीब 10 साल पहले सत्तारूढ़ वामपंथी सरकार के खिलाफ परेशान, भूखे और गुस्से से भरे हजारों लोगों का नेतृत्व करने वाली ममता बनर्जी को शायद ही उस समय यह पता रहा हो कि वह इतिहास की एक नयी पटकथा लिखने की दहलीज पर हैं. यह तो 10 साल पहले की बात हो गयी. ममता बनर्जी एक बार फिर देश की राजनीति के केंद्र में आ खड़ी हुई प्रतीत होती हैं.

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अगर भाजपा नीत एनडीए सरकार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत लाने में विफल होती है, तो बनर्जी भले खुद शीर्ष पद पर काबिज न हो पायें, लेकिन सत्ता की चाभी यानी किंगमेकर की भूमिका वह निभा सकती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की कड़ी आलोचना करने वालों में से एक बनर्जी ने अब तक अपनी छवि ऐसी बनायी है, जो सत्तारूढ़ एनडीए को सत्ता से बाहर करने की चाहत रखने वाली विपक्षी पार्टियों को जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकती हैं. वह इस साल जनवरी में एक रैली में एक मंच पर 23 विपक्षी पार्टियों के नेताओं को ले आने में सफल रही थीं.

तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय कहते हैं, ‘ममता बनर्जी के नेतृत्व में आगामी नयी सरकार में हम महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे हैं. देश की जनता नरेंद्र मोदी के डर के शासन से बचाने के लिए बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की तरफ देख रही है.’ इससे संकेत मिलता है कि तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो बनर्जी की नजर दिल्ली की कुर्सी पर है.

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तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी की राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने कॉलेज के जमाने में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में शुरू हई थी. इसके बाद वह एनडीए और यूपीए सरकार में मंत्री रहीं. लेकिन, पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम और सिंगूर में औद्योगीकरण के लिए वामपंथी सरकार द्वारा किसानों की जमीन जबरन लेने के खिलाफ किये गये उनके आंदोलन ने एक राजनेता के रूप में उनकी राजनीतिक जमीन को मजबूती दी.

ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर जनवरी, 1998 में तृणमूल कांग्रेस का गठन किया था और वामपंथी शासन के खिलाफ हर छोटी-बड़ी लड़ाई के साथ वह अपनी पार्टी को मजबूत करती गयीं. तृणमूल कांग्रेस के गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव वर्ष 2001 में हुआ था और पार्टी राज्य के 294 विधानसभा सीटों में से 60 सीटें जीतने में सफल रही. लेकिन, इसके बाद पार्टी की जीत का ग्राफ 2006 के विधानसभा में नीचे गिरा और वह 30 सीट पर ही जीत दर्ज कर पायी.

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इसके चार साल के बाद नंदीग्राम और सिंगूर में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया और ममता बनर्जी ने इसका नेतृत्व करना शुरू कर दिया. पश्चिम बंगाल में वर्ष 2011 का विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक था. लंबे समय से पश्चिम बंगाल वामपंथ का गढ़ था और ममता बनर्जी ने उस गढ़ को ढाह दिया. तृणमूल कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में 184 सीटों पर जीत हासिल हुई. इसके बाद से राज्य में तृणमूल कांग्रेस का शासन है.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि यह ऐसा समय है, जब पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़नी है. ऐसे समय में जब कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि वह अकेले भाजपा से निबट सके, तो तृणमूल कांग्रेस के कई नेता यह मानते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां दिल्ली की कुर्सी का फैसला करने में मुख्य भूमिका निभा सकती है.

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नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हम इस लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने जा रहे हैं. अगर हम राज्य की ज्यादातर लोकसभा सीट जीतने में सफल रहे, तो हम अगली सरकार बनाने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम चुनाव के बाद तय होगा और हम मुख्य दावेदारों में से एक होंगे. हमारी पार्टी सुप्रीमो जो केंद्रीय मंत्री भी रही हैं और मुख्यमंत्री भी हैं, उनकी स्वीकार्यता पार्टी लाइन से इतर भी है.’

नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर आवाज ममता

तृणमूल कांग्रेस को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बनर्जी एनडीए के पांच साल के शासन में नोटबंदी, जीएसटी, असम में राष्ट्रीय पंजी, सीबीआइ जैसी संस्थाओं में हस्तक्षेप और पुलवामा हमले के कथित राजनीतिकरण को लेकर आवाज उठाती रही हैं. लेकिन, पार्टी के भीतर कई तरह की कठिनाइयां हैं. मजबूत इच्छाशक्ति वाली नेता की पार्टी के भीतर कलह की स्थिति है.

पार्टी के भीतर कई स्तर पर गुटबाजी

ममता बनर्जी ने मौजूदा 10 सांसदों को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया है. 18 नये चेहरे लेकर आयी हैं. उसकी आपसी कलह से धीरे-धीरे ही सही, भाजपा को फायदा हो सकता है. नाम न जाहिर करने की शर्त पर तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘पार्टी के भीतर कई स्तर पर गुटबाजियां हैं और टिकट की इच्छा रखने वाले जिन लोगों को टिकट नहीं मिल पाया, हो सकता है कि वह कुछ क्षेत्रों में परेशानियां पैदा करें. लेकिन हम आशा करते हैं कि इस तरह की स्थिति जल्द समाप्त हो जायेगी.’

वहीं, राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि प्रधानमंत्री पद पर नजरें गड़ाने से पहले ममता बनर्जी को अपने गढ़ की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि वह तेजी से अपनी जमीन खो रही हैं. राज्य की जनता उनके कुशासन से मुक्त होना चाहती है.

ममता से खुश नहीं कांग्रेस

लोकसभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस की संभावित सहयोगी कांग्रेस भी ममता बनर्जी से खुश नहीं है. कांग्रेस को ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ लड़ाई से ज्यादा प्रधानमंत्री बनने में राहुल गांधी का रास्ता रोकने की इच्छुक हैं. पश्चिम बंगाल के कांग्रेस अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने बताया कि तीन राज्यों में जब कांग्रेस ने हाल ही में चुनाव जीता था, तो सिर्फ तृणमूल कांग्रेस ने ही राहुल गांधी को बधाई नहीं दी थी. कई ऐसे मौके आये हैं, जब लगा है कि ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में रोड़ा अटकाने से ज्यादा राहुल गांधी का रास्ता रोकने की इच्छुक हैं.

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