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जी-20 : मेड इन चाइना

हांगझोऊ शिखर सम्मेलन चीन के हांगझोऊ में 4-5 सितंबर को संपन्न जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन की कार्यवाही, कार्यक्रमों और परिणामों पर दुनियाभर में चर्चा हो रही है. यह आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका के रूस और चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं. साउथ चाइना सी में चीनी हस्तक्षेप को लेकर पूर्वी […]

हांगझोऊ शिखर सम्मेलन
चीन के हांगझोऊ में 4-5 सितंबर को संपन्न जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन की कार्यवाही, कार्यक्रमों और परिणामों पर दुनियाभर में चर्चा हो रही है. यह आयोजन ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका के रूस और चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं. साउथ चाइना सी में चीनी हस्तक्षेप को लेकर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देश नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.
पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका दक्षिण एशिया में स्थिरता और शांति स्थापित करने की राह में बड़ी बाधा है. वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता और अरब जगत में हिंसक गृह युद्ध बड़ी चिंताएं हैं. ऐसे वातावरण में विश्व के प्रमुख देशों की यह बैठक काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी. दुनियाभर के कुछ प्रमुख समाचार पत्रों की टिप्पणियों के माध्यम से इस बैठक के विभिन्न पहलुओं पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…
हां गझौऊ में अभी जो कुछ हुआ है, उसका भू-आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है. चीन ने शुरू से ही जी-20 को बड़ी गंभीरता से लिया है और इसे चीन का जश्न ही होना था, पतनोन्मुख पश्चिम या अमेरिका का नहीं.
बैठक के एजेंडे को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भू-राजनीतिक तत्व को चिह्नित कर कहा कि ‘पुराने पड़ चुके शीत युद्ध की मानसिकता को पीछे छोड़ देना चाहिए. हमें तुरंत एक समावेशी, संपूर्ण, सहकारी और सतत सुरक्षा अवधारणा की आवश्यकता है.’ जिनपिंग का पैकेज वैश्विक अर्थव्यवस्था को वृद्धि की राह पर लाने के लिए तो है ही, उसका उद्देश्य चीन के हित में वैश्विक आर्थिक संरचना और प्रशासन के नियमों की स्थापना भी है.
जी-20 आयोजन के साथ ब्रिक्स समूह की बैठक उतनी भव्य नहीं थी, लेकिन इसी बैठक में जिनपिंग ने चीन के जी-20 एजेंडे का विवरण दिया और गोवा में अगले महीने होनेवाली वार्षिक ब्रिक्स बैठक के लिए आधार तैयार किया. बीजिंग स्थित त्सिंगुआ विश्वविद्यालय के ब्रिक्स इकोनॉमिक थिंक टैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन को इन बहुपक्षीय संस्थाओं को बेहतर बनाना होगा ताकि ‘वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नियम बनाने के मामले में अधिक दखल दे सके और पश्चिमी देशों को पीछे धकेल सके.’ यह एक लंबी प्रक्रिया है, पर इसमें प्रगति हो रही है. शंघाई के फुदान विश्वविद्यालय के झू जिएजिन इसका सार इस प्रकार व्यक्त करते हैं- ‘ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन के नये दर्शन की परीक्षा है, हालांकि इसके परिणाम देर से सामने आ सकेंगे.’(आरटी की वेबसाइट पर जारी पेपे एस्कोबार के लेख का अंश)
जलवायु परिवर्तन करार पर भारतीय रुख के लिए सकारात्मक स्थिति
अमेरिका और चीन के दबाव के बावजूद जी-20 की अंतिम घोषणा में पेरिस जलवायु समझौते पर सदस्य देशों की सहमति की अंतिम समय सीमा दिसंबर, 2016 का कोई उल्लेख नहीं किया गया है. इसमें जीवाश्म ईंधन अनुदानों को समाप्त करने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है.
नेताओं के शिखर सम्मेलन से पहले वार्ताकारों की तीन दिनों की बैठक में भारत ने इन दोनों बातों का कड़ा विरोध किया था. शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को रेखांकित किया कि जलवायु परिवर्तन सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है और पेरिस समझौता आगे की राह दिखाता है. लेकिन ‘ध्यान सिर्फ इसके त्वरित मंजूरी पर ही नहीं, बल्कि पूरी सफलता पर होना चाहिए.’ शिखर सम्मलेन में प्रधानमंत्री के मुख्य दूत अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारत घरेलू कार्यवाही के संदर्भ में इस समझौते पर 2016 के अंत से पहले मंजूरी देने की स्थिति में नहीं है, पर हमारी योजना इसे जल्दी करने की है. (‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में पी वैद्यनाथन अय्यर की रिपोर्ट का अंश)
वे आये, देखा, कंधे उचकाये और चल दिये
अपने पहले कुछ सालों में जी-20 ने मिलजुल कर नीतियां बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने का सफल प्रयास किया था, लेकिन अब यह समूह भटक गया लगता है. चीनी वैश्विक वृद्धि की विशेषताओं में नवोन्मेष को जोड़ना चाहते थे. और वे चाहें भी क्यों नहीं? इसलिए, जी-20 अब नवोन्मेषी, संतुलित, सतत और समावेशी विकास के प्रति समर्पित है.
वैश्विक संयोजन जैसे शब्द का प्रयोग तो होता है, पर उसे अपने-अपने देशों की जरूरत के साथ जोड़ कर देखा जाता है और दूसरे देशों को घुड़की दी जाती है कि वे ऐसी नीतियां लागू करते हैं जिनका असर उनके देश से बाहर भी हो सकता है. चूंकि यूएस फेडरल बैंक को खुद ही पता नहीं है कि वह कब ब्याज दरों में वृद्धि करेगा, इसलिए हमें भी बहुत अचरज नहीं करना चाहिए अगर इस मामले में समय रहते पूर्व चेतावनी नहीं दी जाती है.
कुल मिला कर, हांगझौऊ सम्मेलन ने किसी सकारात्मक बहुपक्षीय समझौते के लिए मंच मुहैया न करा कर, द्विपक्षीय वार्ताओं, स्पष्टीकरणों और मुलाकातों के लिए जगह दिया है. भारत को संतोष है कि उसने इस फोरम का उपयोग आतंकवाद को प्रश्रय देने में पाकिस्तान की भूमिका के प्रति अपनी नाराजगी स्पष्ट करने के लिए किया. इस सम्मेलन में शामिल विश्व नेताओं ने इस बात पर सहमति जतायी कि आतंकवादियों और कर चुरानेवालों को शरण नहीं मिलना चाहिए. इस संदर्भ में, आधार क्षरण और लाभ के स्थानांतरण के विरुद्ध लगातार जोर एक स्वागतयोग्य प्रगति है. भारत को जी-20 प्रक्रिया पर अपना ध्यान बनाये रखने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए.(‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ के संपादकीय का अंश)
चीन का अगला बड़ा कदम जी-20 या अमेरिकी चुनाव के बाद
जी -20 बैठक में साउथ चाइना सी का मसला दबा कर चीन ने एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल की है. ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि इस सम्मेलन के बाद चीन इस इलाके में अधिक सक्रिय हो सकता है और शायद नये इलाकों को दखल करने की परियोजनाएं घोषित करे या हवाई सुरक्षा क्षेत्र बना दे. फिलीपींस के राष्ट्रपति ने कहा कि उनके तटीय सुरक्षाबल ने स्कारबॉरो शोआल में चीनी गतिविधियां दर्ज की है. वर्ष 2012 में चीन ने इस चट्टानी क्षेत्र को फिलीपींस से हथिया लिया था. ये गतिविधियां इस बात के संकेत हैं कि चीन नये निर्माण का इरादा रखता है. इससे तनाव बढ़ सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ माइकल ग्रीन का कहना है कि शोआल में जी-20 या अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से पहले चीन द्वारा कोई भी निर्माण उसके लिए नुकसानदेह हो सकता है. वह कोई भी बड़ा कदम इसके बाद ही उठायेगा. इससे बीच, 11 से 19 सितंबर तक चीन साउथ चाइना सी में रूस के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भी करने जा रहा है, जिसका अमेरिका ने यह कहते हुए विरोध किया है कि इससे क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंचेगा. रूस की सरकारी समाचार एजेंसी तास के अनुसार, इस अभ्यास में रूस के प्रशांत बेड़े के युद्धपोत और पनडुब्बी निरोधी जहाज भाग लेंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हांगझोऊ में चीन की बढ़ती सैनिक सक्रियता पर चिंता व्यक्त हुए कहा है कि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया से साउथ चाइना सी में चीनी गतिविधियों के विरुद्ध कड़े रुख अपनाने का निवेदन किया है. (एसोसिएटेड प्रेस/न्यूयॉर्क टाइम्स कीरिपोर्ट का अंश)
कुछ हद तक प्रगति दिखी, पर चुनौतियों का हल नहीं
जी -20 समिट में अधिकारियों द्वारा बहुत जटिल और तकनीकी भाषा के इस्तेमाल की बात आखिरी घोषणापत्र (कम्युनिक) में प्रतिबिंबित हुई. ठोस और सुधारात्मक कदम के अभाव के कारण ही जी-20 में शामिल नेताओं को इस सम्मेलन के दौरान सामूहिक समर्थन (कलेक्टिव ग्राउंड) बहुत कम मिला. इस घोषणापत्र यानी कम्युनिक ने इस बात के साफ संकेत दिये.
आर्थिक विकास लंबे समय से बेहद धीमे और कम स्तर पर बना हुआ है, इसे देखते हुए आखिरी घोषणापत्र में जी-20 के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने पर आम सहमति बनी. यह तथाकथित ‘हांगझोउ आम सहमित’ इस बात की अपील करता है कि जी-20 को समन्वित व्यापक आर्थिक नीति, मुक्त व्यापार और नवाचार के द्वारा कहीं अधिक विस्तृत आर्थिक विकास की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए. संक्षेप में कहें, तो यह आम सहमति इस समूह के मूल जनादेश- ‘वैश्वीकरण का कार्य सभी की भलाई के लिए हो’- की ही पुष्टि करता है.
सम्मेलन में शामिल सदस्य देशों द्वारा अनिश्चितता को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करने की बात पर एकजुट होने के बाद ही यह आम सहमति बनी. इस सम्मेलन में नवाचार और ‘नयी औद्योगिक क्रांति’ से लेकर व्यवसाय के वित्तपोषण (बिजनेस फाइनेंसिंग), अंतरराष्ट्रीय कर बचाव (इंटरनेशलन टैक्स अवॉयडेंस), भ्रष्टाचार निरोधक उपायों, मुक्त व्यापार और सतत विकास लक्ष्यों को लागू करने जैसे मुद्दों तक पर सदस्य देशों की प्रतिबद्धता, उम्मीदों पर खरी उतरती दिखाई नहीं देती है.
हालांकि यहां जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा जैसे प्रमुख मुद्दों पर कुछ हद तक सही प्रगति दिखी. वहीं सीरिया संकट, शरणार्थी, आतंकवाद और प्रवास जैसी दूसरी चुनौतियाें ने नेताओं का ध्यान अपनी ओर तो खींचा, पर वे भी अनसुलझे ही रहे.
(‘द कन्वर्सेशन’ के संपादकीय का अंश)
क्या है जी-20?
जी-20 यानी ग्रुप ऑफ ट्वेंटी दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का अंतरराष्ट्रीय मंच है, जिसमें 19 देश- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन और अमेरिका के अलावा यूरोपीय संघ सदस्य हैं.
विश्व व्यापार में भागीदारी?
जी-20 देशों में दुनिया की दो-तिहाई आबादी निवास करती है तथा दुनिया के सकल घरेलू उत्पादन में 85 हिस्सा इनका है. विश्व व्यापार में जी-20 देशों की भागीदारी 80 फीसदी है.
कब और क्यों हुआ था गठन?
वर्ष 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद इसे बनाया गया था. तब विभिन्न वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों ने माना था कि आर्थिक स्थिरता के लिए मिलजुल कर काम करने की जरूरत है.
लेकिन, 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट ने इस पहल की कमजोरियों को भी उजागर कर दिया, तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की पहल पर 20 अर्थव्यवस्थाओं के नेता पहली बार इस मंच पर एक साथ आये. वर्ष 2011 से जी-20 शिखर सम्मेलन हर साल आयोजित किया जाता है.

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