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शिकार की तलाश में महाराष्ट्र से बाघों का पलायन जारी, तेलंगाना के कवल टाइगर रिजर्व गलियारा को बना रहे घर

वन विभाग के अधिकारियों ने कहा कि बेहतर हरियाली और शिकार करने वाले क्षेत्र के कारण कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के कागजनगर वन प्रभाग में महाराष्ट्र के टिपेश्वर तथा ताडोबा अभयारण्य से आने वाले बाघों की संख्या बढ़ी है.

हैदराबाद/मुंबई : शिकार और बेहतरीन हरे-भरे जंगलों की तलाश में महाराष्ट्र के जंगलों से बाघों का पलायन शुरू हो गया है. ये बाघ महाराष्ट्र निकलकर कवल टाइगर रिजर्व (केटीआर) गलियारा के जरिए पड़ोसी राज्य तेलंगाना के जंगलों में पहुंच रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में बाघों की संख्या में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है. तेलंगाना वन विभाग के अधिकारियों की मानें, तो अभी हाल के बरसों में महाराष्ट्र से बाघों के तेलंगाना में प्रवेश करने के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. इससे यहां के जंगलों में बाघों की संख्या में खासी वृद्धि देखी जा रही है.

महाराष्ट्र के टिपेश्वर और ताडोबा से पलायन कर रहे बाघ

वन विभाग के अधिकारियों ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि बेहतर हरियाली और शिकार करने वाले क्षेत्र के कारण कोमाराम भीम आसिफाबाद जिले के कागजनगर वन प्रभाग में महाराष्ट्र के टिपेश्वर तथा ताडोबा अभयारण्य से आने वाले बाघों की संख्या बढ़ी है. उन्होंने कहा कि उनमें से कुछ तेलंगाना के जंगलों को अपना घर भी बना रहे हैं. अधिकारियों ने कहा कि वे बहुत अधिक घास के मैदान बना रहे हैं, जिसके कारण शाकाहारी आबादी बढ़ रही है और राज्य में बाघ और तेंदुओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है.

शिकार की तलाश में केटीआर गलियारे में आ रहे बाघ

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, तेलंगाना में कवल टाइगर रिजर्व (केटीआर) गलियारा कवल को महाराष्ट्र के अन्य बाघ अभयारण्यों से जोड़ने का एक प्रमुख रास्ता है. वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी भाषा से बातचीत करते हुए बताया कि केटीआर गलियारे से आने वाले बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है. यह एक अच्छा वन क्षेत्र है और चित्तीदार हिरण, सांभर और अन्य जानवरों जैसे अच्छे शिकार यहां मिलते हैं, जिससे बाघों के रहने के लिए यह क्षेत्र ज्यादा उपयुक्त है. टिपेश्वर तथा ताडोबा से भी बाघ आ रहे हैं, जहां आबादी बढ़ने के कारण जगह की तलाश में बाघ कागजनगर की ओर आ रहे हैं.

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केटीआर गलियारे में दिखाई दिए आठ बाघ

वन विभाग के अधिकारी ने कहा कि हम प्रवासी बाघों को एक उपयुक्त स्थान मुहैया कराने का प्रयास करते हैं. इन बाघों को घास के मैदान, जललाशय और फिर उन्हें यहां शिकार के लिए जानवर भी मिल जाते हैं. हम उन्हें हमेशा के लिए यहां रोकने के मकसद से हर संभव प्रयास करेंगे. उन्होंने बताया कि केटीआर गलियारे में करीब आठ बाघ दिखाई दिए हैं, जो पिछले कुछ वर्षों की तुलना में अधिक है. कुछ यहीं रह जाते हैं और कुछ वापस चले जाते हैं और बाद में फिर यहां आते हैं. अधिकारी ने कहा कि पिछले पांच-छह साल में हमने देखा है कि हमारे इलाके में कई बाघिनों ने कई शावकों को जन्म दिया है. उन्होंने बताया कि एतुर्नागाराम, किन्नेरसानी, पकला और निकटवर्ती इलाकों में भी बाघों की आवाजाही देखी गई है.

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