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इंदिरा गांधी के बेहद खास थे प्रणब दा… नाराज होकर कांग्रेस से अलग पार्टी बना ली थी, एक नजर राजनीतिक सफरनामे पर

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया. देश की राजनीति और अर्थव्यस्था में उनके योगदान का जिक्र हमेशा होगा. केंद्र की राजनीति में लंबा समय बिताने के बाद उन्होंने . 25 जुलाई 2012 को देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी. लंबे समय तक दया याचिका पर फैसला नहीं होता था लेकिन लेकिन प्रणब मुखर्जी कई आतंकवादियों की फांसी की सजा पर तुरंत फैसले लेने के लिए याद किये जाते हैं.

नयी दिल्ली : देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया. देश की राजनीति और अर्थव्यस्था में उनके योगदान का जिक्र हमेशा होगा. केंद्र की राजनीति में लंबा समय बिताने के बाद उन्होंने . 25 जुलाई 2012 को देश के 13वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी. लंबे समय तक दया याचिका पर फैसला नहीं होता था लेकिन लेकिन प्रणब मुखर्जी कई आतंकवादियों की फांसी की सजा पर तुरंत फैसले लेने के लिए याद किये जाते हैं.

राजनीतिक शास्त्र और लॉ दोनों की पढ़ाई की

अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने कई अहम पद संभाले. कई गंभीर राजनीतिक समस्याओं का हल वह बतचीत करके निकाल लेते थे. प्रणब मुख़र्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था. उन्होंने शुरुआती पढ़ाई बीरभूम में की. राजनीति शाष्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया. उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल कर ली थी.

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1969 में राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई

1969 से पांच बार उन्हें राज्य सभा के लिए चुना गया उन्होंने चुनावी राजनीति में भी कदम रखा और 2004 से लगातार दो बार लोक सभा पहुंचे. अगर प्रणब दा के राजनीतिक सफर के शुरुआत का जिक्र करें तो साल 1969 में हुई थी . भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी की मदद से उन्होंने सन 1969 में राजनीति में प्रवेश किया. तब वे कांग्रेस टिकट पर राज्य सभा के लिये चुने गये थे.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पीएम पद के प्रबल दावेदारों में एक थे

साल 1973 में उन्हें केंद्रीय मंत्रीमंडल में शामिल किया गया. उन्हें जो विभाग मिला वह था औद्योगिक विकास विभाग यहां उन्हें उपमंत्री बनाया गया. इसके बाद वह लगतार 1975,1981,1993,1999 में राज्यसभा के लिए चुने गये. पद के अलावा उन्होंने कांग्रेस को भी पश्चिम बंगाल में मजबूत किया. साल 1980 में उन्हें राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी का नेता बनाया गया. कांग्रेस में प्रणब का पद इनता मजबूत हो रहा था कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा था . साल 1984 में उन्हें राजीव गांधी की सरकार में वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी.

जब कांग्रेस से हटकर बनायी नयी पार्टी

वित्त मंत्री का पद उन्होंने कुछ विवादों के कारण छोड़ दिया. प्रणब कांग्रेस से दूर हुए तो अपनी अलग पार्टी बना ली. उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया. बाद में फिर प्रणब मुखर्जी को पार्टी में लौटने के लिए मनाया गया समाजवादी कांग्रेस’ का कांग्रेस में विलय हो गया.

साल 2004 में उन्होंने पश्चिम बंगाल के जंगीपुर लोकसभा के निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा औऱ जीतकर लोकसभा पुहंचे यहां उन्हें सदन का नेता बनाया गया . गठबंधन को मजबूत बनाये रखने में प्रणब की अहम भूमिका मानी जाती है. 2009 से 2012 तक प्रणब मुखर्जी मनमोहन सरकार में भारत के वित्त मंत्री रहे.

कांग्रेस ने उन्हें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार चुना तब उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया. देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले वे पश्चिम बंगाल के पहले व्यक्ति बने. राष्ट्रपति चुनाव में उनका सामना लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके पी. ए संगमा से हुआ था .

Posted By – Pankaj Kumar Pathak

Prabhat Khabar Digital Desk
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