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उत्तर भारत में मानसून बढ़ायेगा टिड्डियों का खतरा, एफएओ ने दी यह चेतावनी

कोरोना संकट के दौर में एक और संकट उत्तर भारत में मंडरा रहा है. यह खतरा टिड्डीयों (Locust swarm) से है. मॉनसून हवाओं (monsoon wind) के साथ यह खतरा और बढ़ सकता है. जानकारी के मुताबिक बीकानेर में टिड्डियों ने अंडे जिससे यह आशंका जतायी जा रही है कि उत्तर भारत में एक बार फिर टिड्डियों का अटैक (Locust Attack) हो सकता है. इस समय अगर टिड्डियों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इनकी संख्या काफ बढ़ सकती है, जो काफी नुकसान पहुंचा सकता है. फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (Food and agriculture organisation) द्वारा जारी की गयी ताजा चेतावनी के मुताबिक इस वक्त राजस्थान के जयपुर जिले के पश्चिम में टिड्डीयों का अडल्ट समूह मौजूद है.

कोरोना संकट के दौर में संकट एक और संकट उत्तर भारत में मंडरा रहा है. यह खतरा टिड्डीयों से है. मानसून हवाओं के साथ यह खतरा और बढ़ सकता है. जानकारी के मुताबिक बीकानेर में टिड्डियों ने अंडे जिससे यह आशंका जतायी जा रही है कि उत्तर भारत में एक बार फिर टिड्डियों का अटैक हो सकता है. इस समय अगर टिड्डियों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इनकी संख्या काफ बढ़ सकती है, जो काफी नुकसान पहुंचा सकता है. फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन द्वारा जारी की गयी ताजा चेतावनी के मुताबिक इस वक्त राजस्थान के जयपुर जिले के पश्चिम में टिड्डीयों का अडल्ट समूह मौजूद है.

चेतावनी के मुताबिक मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी टिड्डियों के झुंड मौजूद है. इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इनकी संख्या बढ़ रही है. चेतावनी यह भी है कि हार्न ऑफ अफ्रीका की तरफ से जुलाई के पहले हफ्ते में टिड्डियों का दल पश्चिमी मानसून हवाओं के साथ दिल्ली एनसीआर में प्रवेश कर सकता है. एलडब्ल्युओ को उप निदेशक ते मुताबिक जैसे ही बारिश शुरू होगी टिड्डियों का दल राजस्थान और मध्यप्रदेश से वापस रेगिस्तान में आने लगेंगे.

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इस समय जैसे ही टिड्डियों ने अंडे दना शुरू किया, उनसे टिड्डे निकलने शुरू हो जायेंगे. यही एक ऐसा समय होगा जब इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है. कीटनाशकों का छिड़काव करके इस खत्म किया जा सकता है. एफएओ ने इस लेकर भारत समेत पाकिस्तान, दक्षिणी सूडान, सूडान जैसे देशों के लिए भी चार सप्ताह का अलर्ट जारी किया है. एलडब्ल्यूओ के मुताबिक हार्न ऑफ अफ्रीका में टिड्डियों के कई ब्रीडिंग साइकल होते हैं. ब्रीडिंग साइकल पूरा करने के बाद यहां से टिड्डियां पश्चिम अफ्रीका की तरफ चली जाती है. कुछ साउदी अरब, ओमान और यमन की तरफ चलती है. इसके बाद एक लंबा सफर तय करके यह जुलाई तक भारत में प्रवेश करती है.

भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूर्वी प्रक्षेत्र रांची के कीट वैज्ञानिक डॉ. जयपाल सिंह चौधरी के मुताबिक यह ऐसा समय है जब टिड्डीयों से असली नुकसान हो सकता है. क्योंकि अब खेत में खरीफ फसल की बुवाई शुरू होगी. उन्होंने बताया कि टिड्डियों का दल दिन भर हवा की दिशा के साथ उड़ता है. इसके बाद रात में किसी एक जगह पर रुकता है. जहां पर ये रुकते हैं वहां की पूरी हरियाली यह नष्ट कर देते हैं. हालांकि वो नीम जैसे कड़वे पत्ते को छोड़ देते हैं. एक टिड्डी जमीन में 15 सेंटीमीटर अंदर में अंडे देती है. एक गड्ढे में वो 70-80 अंडे देती है. इसके बाद नमी मिलने पर अंडे से बच्चे निकलते हैं. जो वहां सतह पर मौजूद हरियाली को पूरी तरह नष्ट कर देते हैं. फिर इसके बाद यह बड़ी होती है और अपना रंग बदलकर भूरा हो जाती है. फिर वो उड़ जाते हैं. बारिश के मौसम में इन्हें या इनके अंडों को नष्ट करना मुश्किल होता है. क्लोरपाइरीफोस या मेलाथियान जैसे कीटनाशक का छिड़काव करके इनपर नियंत्रण पाया जा सकता है. पर ध्यान रहे कि छिड़काव रात में करें. इसके अलावा खेत के पास अवाज करके इन्हें खेत से भगाया जडा सकता है.

इधर दिल्ली और गुरूग्राम में भी टिड्डी दल के हमले को लेकर आईएमडी उनपर नजर रखे हुए हैं. आईएमडी का कहना है कि अगर हवाओं की दिशा बदलती है तो टिड्डियों को लेकर चेतावनी जारी की जा सकती है. फिलहाल हवाओं की वजह से उनका रूख गुरूग्राम से फरीदाबाद की तरफ हो गया है.

Posted By: Pawan Singh

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