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भारत का राष्ट्रपति चुनाव : झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू बनाई जा सकती हैं भाजपा उम्मीदवार

पार्टी के अंदरुनी सूत्र यह भी बताते हैं कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय और महिला वर्ग को अधिक तवज्जो दे सकती है. इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक और कश्मीर से कन्या कुमारी तक ओबीसी समुदाय के लोगों की बहुलता है.

नई दिल्ली : भारत में राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इसी सिलसिले में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अभी हाल ही में भाजपा का प्रतिनिधि बनकर अचानक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की है. हालांकि, 2017 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राजद के साथ गठबंधन के बावजूद नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था. इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के लिए सत्तारूढ़ भाजपा के प्रत्याशियों के तौर पर जिन राजनीतिक हस्तियों के नाम की चर्चा की जा रही है, उनमें झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी शामिल हैं. इसके अलावा, इस पद के प्रत्याशी के तौर पर तीन अन्य छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके, तमिलनाडु की राज्यापल तमिलिसाई सुंदरराजन और केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम भी सामने आ रहे हैं.

एससी प्रत्याशी पर नहीं होगा भाजपा का फोकस

भाजपा की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू समेत जिन चार नामों की चर्चा की जा रही है, उसके पीछे पार्टी का मकसद राष्ट्रपति चुनाव के बहाने 2024 के लोकसभा चुनाव के सामाजिक और राजनीतिक समीकरण को साधना बताया जा रहा है. पार्टी के सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का ध्यान अनुसूचित जाति के प्रत्याशी पर केंद्रित नहीं होगा. इसका कारण यह है कि भारत के वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इसी समुदाय से आते हैं.

महिला और ओबीसी प्रत्याशी को तवज्जो दे सकती है भाजपा

वहीं, पार्टी के अंदरुनी सूत्र यह भी बताते हैं कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय और महिला वर्ग को अधिक तवज्जो दे सकती है. इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक और कश्मीर से कन्या कुमारी तक ओबीसी समुदाय के लोगों की बहुलता है. सूत्र यह भी बताते हैं कि अभी हाल ही में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी में न रहते हुए भी ओबीसी समुदाय के लोगों का भाजपा को समर्थन मिला है. इसके साथ ही, भाजपा की सहयोगी दल जदयू समेत कई दलों ने ओबीसी मतदाताओं को साधने के लिए जातिगत जनगणना की मांग की है. ऐसे में, अगर भाजपा राष्ट्रपति चुनाव में ओबीसी प्रत्याशियों के नाम को आगे बढ़ाती है, तो उसे राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव में भी फायदा मिलने की उम्मीद है.

वेंकैया नायडू के नाम पर सहयोगी दलों से चर्चा कर सकती है भाजपा

पार्टी के सूत्रों का कहना है कि झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके और तमिलनाडु की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन के नाम को आगे बढ़ाने के पीछे भाजपा का मकसद महिला और ओबीसी समुदाय को आकर्षित करना है. वहीं, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम को आगे बढ़ाने के पीछे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को साधना असल मकसद बताया जा रहा है. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि इन नामों के अलावा, भाजपा राष्ट्रपति पद के लिए वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के नाम पर भी अपने सहयोगी दलों से चर्चा कर सकती है.

धर्मेंद्र प्रधान ने नीतीश कुमार से की मुलाकात

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति चुनाव में किला फतह करने के उद्देश्य से भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ संपर्क साधना शुरू कर दिया है. इस सिलसिले में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पिछले गुरुवार यानी 7 मई की शाम को सहयोगी दलों से संपर्क साधने के प्रयास में सबसे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, धर्मेंद्र प्रधान ने ऐसे वक्त में नीतीश कुमार से मुलाकात की है, जबकि अंदरुनी तौर पर भाजपा और जदयू में मतभेद उभरा है. हालांकि, 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन होने के बावजूद जदयू ने एनडीए के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन दिया था.

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इस बार के चुनाव में घट जाएगा सांसदों के मत का मूल्य

देश में राष्ट्रपति चुनाव के बनाए जा रहे तमाम राजनीतिक समीकरणों के बीच सबसे बड़ी बात यह भी सामने आ रही है कि इस बार के चुनाव में सांसदों के एक मत का मूल्य घट जाएगा. बताया यह जा रहा है कि इस चुनाव में सांसदों के एक मत का मूल्य 708 से घटकर 700 रह जाएगा. इसके पीछे अहम कारण यह है कि अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद घाटी में दो केंद्रशासित प्रदेशों का गठन कर दिया गया. इसके बाद से अभी तक वहां पर विधानसभाओं का गठन नहीं किया जा सका है. घाटी में दो केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 थी, लेकिन इस बार के चुनाव में जम्मू-कश्मीर के विधानसभा के गठन नहीं होने से सांसदों के मत में उसके 83 विधायकों के मत की गणना कम हो जाएगी. यही वजह है कि एक सांसद के मत का मूल्य 708 से घटकर 700 रह जाएगा.

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