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Explainer: मौसम के बदलाव ने बदल दी भारत की तकदीर, किसान भाइयों आपके लिए जानना है जरूरी

Explainer: मानसूनी वर्षा में कमी के कारण झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कुछ अन्य राज्यों में खेती का रकबा कम होने संबंधी खबरें सामने आ रही है. बता दें कि देश के कुल चावल का उत्पादन का 80 प्रतिशत खरीफ मौसम से प्राप्त होता है.

Explainer: मानसूनी वर्षा में कमी के कारण झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कुछ अन्य राज्यों में खेती का रकबा कम होने संबंधी खबरें सामने आ रही है. धान मुख्य खरीफ फसल है, जिसकी बुवाई जून में दक्षिण-पश्चिम मानसून (South West Monsoon) की शुरुआत के साथ शुरू होती है. बता दें कि देश के कुल चावल का उत्पादन का 80 प्रतिशत खरीफ मौसम से प्राप्त होता है. ऐसे में हम यहां विस्तार से चर्चा करने जा रहे है कि मौसम में हो रहे बदलावों का भारत के किसान भाइयों पर किस तरह से असर दिखाएगा.

उत्तर भारत में मानसून की सक्रियता में कमी

इस बीच, मौसम विज्ञानियों का कहना है कि उत्तर भारत में मानसून की सक्रियता कम है. इसके साथ ही आने वाले दिनों में भी इसकी कोई खास संभावना हाल फिलहाल नजर नहीं आ रही है. सितंबर के दूसरे व तीसरे हफ्ते से मानसून 2022 की विदाई भी शुरू हो जाएगी. बावजूद इसके बारिश का आलम यह है कि पूर्वी जिले को छोड़ अन्य सभी जिलों में 11 से 54 प्रतिशत कम वर्षा हुई है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) भारत के अनुसार, अगस्त तक मात्रात्मक रूप से पर्याप्त दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश हुई. मौसम संचयी वर्षा का आंकड़ा अब तक सामान्य से 9.5 फीसदी अधिक है. हालांकि, भौगोलिक रूप से बारिश का वितरण सामान्य से बहुत दूर रहा है.

उत्तर पूर्वी और पश्चिमी जिले में बारिश की कमी

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बरसात की सबसे अधिक कमी उत्तर पूर्वी और पश्चिमी जिले में बनी हुई है. यहां सामान्य से 54 प्रतिशत और 55 प्रतिशत कम बरसात हुई है. वहीं, पूर्वी जिला मौसम विभाग के नौ जिलों में सबसे अधिक बारिश वाली जगह है. इस जिले में सामान्य से 24 प्रतिशत ज्यादा वर्षा हुई है.

भारत में भी अब दिख रहा जलवायु परिवर्तन का असर

भारत में भी जलवायु परिवर्तन का असर अब साफ दिखाई दे रहा है. इस बार मानसून के सीजन में देश के कई हिस्सों में जहां मूसलाधार बारिश और बाढ़ से लोगों का जीना मुहाल रहा तो वहीं देश के कुछ इलाके ऐसी भी है जहां सूखा पड़ा रहा, यहां बारिश बहुत कम हुई. मानसून की शुरुआत में ही भारतीय मौसम विभाग और मौसम वैज्ञानिक मानसून को लेकर कई तरह की भविष्यवाणी करते हैं लेकिन इस बार मौसम ने कई बार अपनी गतिविधि बदली और सारी भविष्यवाणी फेल होती हुई दिखाई दीं.

इस साल औसत से ज्यादा दर्ज हुई बारिश

इस बार मानसून सीजन में देश भर में सामान्य से 9 फीसदी ज्यादा बारिश दर्ज की गई है, लेकिन वो कुछ ही इलाकों में हुई देश कई हिस्से ऐसे भी रहे जहां सूखा पड़ा रहा. यहां मानसून की गतिविधियां बिल्कुल ना के बराबर दिखीं या बहुत कम दिखाई दीं. देश भर में 16 अगस्त तक सामान्य रूप से 588 मिमी बारिश होनी चाहिए थी लेकिन अब तक 645.4 मिमी बारिश हुई है. मध्य भारत में 24 फीसदी दक्षिण भारत में 30 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है जबकि पूर्वोत्तर पूर्वी राज्यों में 17 फीसदी कम बारिश हुई है.

भारत में क्यों पैदा हुई ऐसी स्थित

इस बार देश में ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई, इस बारे में मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में जो लो प्रेशर एरिया बन रहे हैं वह लगातार पश्चिम दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. उड़ीसा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना को प्रभावित करते हुए यह दक्षिण में मध्य प्रदेश गुजरात और दक्षिणी राजस्थान की तरफ चले जा रहे हैं जिसकी वजह से उन राज्यों में मूसलाधार बारिश हो रही है. जब लो प्रेशर एरिया लगातार बनते हैं तब एक्सेस ऑफ मानसून ट्रफ उत्तर भारत में नहीं पहुंच पा रहा है.

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