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ड्रैगन का किला ऐसे भेदेगा स्वदेशी ड्रोन रुस्तम-2, जानें खासियत

रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन ने मध्यम ऊंचाई वाले ड्रोन रूस्तम-2 का सफल ट्रायल किया.

नयी दिल्ली: भारत की रक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने की दिशा में रक्षा एंव अनुसंधान विकास संगठन ने एक कदम और आगे बढ़ाया है. रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन ने मध्यम ऊंचाई वाले ड्रोन रूस्तम-2 का सफल ट्रायल किया. इस ड्रोन का परीक्षण कर्नाटक के चित्रदुर्ग परीक्षण केंद्र से किया गया. जानकारी के मुताबिक प्रारंभिक कई असफलताओं के बाद डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को सफलता मिली है.

चित्रदुर्ग परीक्षण केंद्र में हुआ ट्रायल

गौरतलब है कि कर्नाटक के चित्रदुर्ग परीक्षण केंद्र में रुस्तम-2 ड्रोन ने 8 घंटे तक उड़ान भरी और 16 हजार फीट की ऊंचाई हासिल की. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि रुस्तम 2 साल 2020 के अंत तक 26000 फीट की ऊंचाई और 18 घंटे की उड़ान क्षमता हासिल कर लेगा. रूस्तम 2 सिंथेटिक एपार्चर रडार, इलेक्टॉनिक इंटेलिजेंस सिस्टम और सिचुएशनल अवैयरनेस सिस्टम जैसी सुविधाओं से लैस है. रियल टाइम में जंग के मैदान तक आसान और त्वरित कम्युनिकेशन सुविधा उपलब्ध करवा सकता है.

रूस्तम 2 को किया जाएगा अपग्रेड

डीआरडीओ के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि भारतीय वायुसेना और नौसेना फिलहाल जिस इजरायली हेरॉन मानव रहित ड्रोन का इस्तेमाल कर रही है, रुस्तम 2 में भी वही सुविधाएं होंगी. डीआरडीओ ने इसके अपग्रेडेशन की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है. रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन के वैज्ञानिकों ने ये ड्रोन ऐसे वक्त में तैयार किया है जब पूर्वी और उत्तरी पूर्वी सीमा पर भारत और चीन के बीच खासा तनाव है.

चीन पूर्वी लद्दाख के कई इलाकों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास 1959 के कार्टोग्राफिक दावे के आधार पर कब्जे की कोशिशों में लगा है. पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के जवान सीमा पर उकसावे वाली कार्रवाई कर रहे हैं. पीएलए के पास विंग लुंग 2 नाम का सशस्त्र मानव रहित ड्रोन है.

इनमें से 4 ड्रोन चीन ने चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा और ग्वादर बंदरगाह की सुरक्षा में तैनात कर रखा है. जाहिर है कि भारत का रूस्तम ड्रोन वांग लिंग ड्रोन को कड़ी चुनौती देगा. हालांकि अभी रुस्तम ड्रोन को कई परीक्षणों से गुजरना है.

कई और परीक्षणों से गुजरेगा रुस्तम ड्रोन

भारतीय सेना में शामिल किए जाने से पहले रुस्तम 2 ड्रोन को कई परीक्षणों से गुजरना होगा. रक्षा मंत्रालय फिलहाल इस संबंध में इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्री से बात कर रहा है ताकि पहले से मौजूद हेरोन ड्रोन के बेड़े को अपग्रेड किया जा सके. ड्रोन की ऊंचाई और उसकी क्षमता में विस्तार करना जरूरी है. इसे इस तरीके से विकसित किया जाएगा ताकि मिसाइल और लेजर गाइडेड मिसाइलों से बचाया जा सके.

Posted By- Suraj Thakur

Prabhat Khabar Digital Desk
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