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Nature मैगजीन की कोरोना पर लेटेस्ट रिपोर्ट डराने वाली है, दिखने में स्वस्थ इंसान से फैल रहा वायरस, बाद में आते हैं लक्षण

coronavirus outbreak update, covid-19 cases, worldwide update of coronavirus: दुनियाभर में कहर बरपा रहे नॉवेल कोरोना वायरस (covid-19) संक्रमण को कम करने लिए कई देशों में शोध हो रहे हैं. ऐसे ही एक शोध में ऐसा खुलासा हुआ है जिससे अनुसंधानकर्ताओं/वैज्ञानिकों के कान खड़े हो गये हैं.

दुनियाभर में कहर बरपा रहे नॉवेल कोरोना वायरस (covid-19) संक्रमण को कम करने लिए कई देशों में शोध हो रहे हैं. ऐसे ही एक शोध में ऐसा खुलासा हुआ है जिससे अनुसंधानकर्ताओं/वैज्ञानिकों के कान खड़े हो गये हैं. अब तक का शोध यह बताता है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति में कोविड-19 का लक्षण( खांसी-बुखार) दिखने से पहले ही वो दूसरे लोगों को संक्रमित करने लगता है. चीन के मामलों पर किए गये शोध के बाद यह कहा गया है कि ऐसे हालात में उन सभी लोगों की ट्रेसिंग जरूरी है जिनसे कोरोना संक्रमित व्यक्ति मिला.

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अब तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब किसी शख्स में कोरोना का कोई भी लक्षण नहीं दिखा मगर, दो तीन बाद उसकी जांच रिपोर्ट कोराना पॉजिटिव आई. लक्षण दिखने के सात-आठ दिन बाद संक्रमण कम होने लगता है. मगर अब तक 44 फीसदी लोगों में संक्रमण उस शख्स से फैला जिसमें कोरोना का कोई भी स्पष्ट लक्षण नहीं दिखा. यह अध्यन विश्व की प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर मेडिसिन में छपी है. यह ऐसी खोज है जो इस महामारी को रोक पाने में जन स्वास्थ्य अधिकारियों की मदद कर सकती है. इस अध्ययन में वायरस से संक्रमित दो लोगों – वह व्यक्ति जो दूसरे को संक्रमित करता है और दूसरा संक्रमित होने वाला अन्य व्यक्ति- में लक्षण नजर आने में लगने वाले समय को माप कर कोरोना वायरस के सिलसिलेवार अंतराल का अनुमान लगाया गया है.

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इससे पहले के अध्ययन में कहा गया था कि कोरोना के लक्षण दिखने वाले से संक्रमण सिंगापुर में 48 फीसदी और चीन के तियांजिन में 62 प्रतिशत था. ऐसे में महामारी विशेषज्ञों ने उन मामलों पर फोकस किया जहां या तो कोरोना के लक्षण नहीं दिखे या फिर जिन्होंने भय से कोरोना जांच नहीं कराया. नया अध्यन ये बताता है कि कोरोना अपना लक्षण 2 से तीन दिन के बाद दिखाना शुरू करता है और सांतवे-आठवें दिन अपनी ऊंचाई पर होता है. जब लक्षण दिखना शुरू होता है उस वक्त उस शख्स से कोरोना उत्पादन सबसे ज्यादा होता है. करीब एक हफ्ते बाद उस शख्स के बॉडी में कोरोना भी कमजोर होता है.

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भारत में क्या है सबसे बड़ा चैलेंज

चूंकि भारत में वैसे ही व्यक्तियों की जांच की जा रही है जो कोरोना संदिग्ध है. अब यह जरूरी है कि कोरोना कलस्टर और हॉटस्पॉट क्षेत्र में व्यवस्थित तरीके से बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की जाए. कोरोना मरीजों की पहचान तब बहुत बड़ा चैलेंज हो जाएगा जब आधे से ज्यादा कोरोना कंफर्म मामले में लक्षण दिखने शुरू हो जाएंगे क्योंकि तब इसका प्रसार बहुत तेजी से होगा. हिंदुस्तान टाइम्स ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ हैदराबाद के डॉक्टर रमना धारा के हवाले से ऐसा लिखा है. कोरोना वायरस के कारण होने वाली बीमारी कोविड-19 के सबसे कॉमन लक्षण है बिना कफ वाली खांसी, तेज बुखार और सांस लेने में दिक्कत इत्यादि. अध्यन में बताया गया है कि कोरोना संक्रमित चार में से एक व्यक्ति में जुकाम, डायरिया या उल्टी का लक्षण दिख सकता है.

इस अध्यन के आधार पर कहा गया है कि कोरोना के कहर को कम करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि कॉंटेक्ट ट्रेसिंग किया जाए. जब लक्षण दिखने से पहले ही 30 फीसदी से ज्यादा संक्रमन फैल जाता है तो ऐसे में कम संख्या में कॉंटेक्ट ट्रेसिंग औऱ कम लोगों के आइशोलेसन से बड़ा फायदा नहीं होने वाला. फायदा तभी होगा जब एक एक संक्रमित शख्स का 90 फीसदी कॉंटेक्ट ट्रेसिंग कर लिया जाए. चीन औऱ हॉन्गकॉन्ग ने फरवरी में बिल्कुल ऐसा ही किया गया जिसका परिणाम आज सामने है. दोनों देशों में कोरोना का कहर करीब करीब थम चुका है. नेचर पत्रिका के मुख्य लेखक एरिक एचवाय हाउ ने ऐसा लिखा है. उन्होंने डब्लूएचओ और अन्य वैश्विक संस्थाओं से प्राप्त शोध के बाद अद्यन कर यह नतीजा निकाला है.

कोरोना वायरस फ्लू की तरह काफी तेजी से फैल सकता है. 2.2 और 2.5 कोरोना मरीज में हजार से लेकर लाखों वायरस उसके नाक और गले में रहता है. इसमें भी हजार गुना वायरस तब पैदा होता है जब वो संक्रमण के आंठवे दिन में होता है. ऐसे भी संक्रमित लोग जिनमें कोरोना का कोई भी लक्षण नहीं होता वो भी हजारों के मात्रा में वायरस उत्पन्न करते हैं जिससे दूसरों में संक्रमण का खतरा बढ जाता है. यह अध्यन हाल ही जर्मनी मेडरिक्स पत्रिका में छपा है.

इस अध्यन में चीन के वुहान स्थित क्लिन्कल लैब से से 26000 कंफर्म मामलों पर किया गया. बताया गया कि इस राज्य में 37400 मामले ऐसे भी आए जिसमें कोरोना का कोई भी लक्षण नहीं दिखा.

स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि संक्रमण की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब कहा जा सकता है कि ऐसे लोगों की ट्रेवल हिस्ट्री या हॉटस्पाट से कोई संबंध नहीं है. ये ऐसे संक्रमितों के साथ संपर्क में आ कर संक्रमित हुए जिनमें कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे थे. ऐसे मामले भी अब कम सामने आ रहे हैं क्योंकि कोरेंटाइन, सेल्फ आइशोलेशन और कॉटेक्ट ट्रेसिंग काफी तेज हुआ है. उन्होंने कहा कि इसी बात से समझा जा सकता है कि मास्क लगाना, बराबर हाथ धोना, सोशल डिस्टेंस, और लॉकडाउन इत्यादि चीजें कितनी जरूरी है. ऐसे ही कुछ उपाय है जिससे कोरोना के चेन को तोड़ा जा सकता है और संक्रमण पर काबू पाया जा सकता है.

इस मामले में डॉ धारा ने कहा कि भारत में केवल लॉकडाउन से कोरोना को नहीं रोका जा सकता. यहां के घरों के प्रकार और ऐसे नहीं है कि फिजिकल डिस्टेंस को मेंटेन किया जा सके. उदाहरण के लिए तेलंगाना में मास्क लगाना इसी कारण मेंडेटरी कर दिया गया है. ऐसा प्रायः नजर आता है कि बाजारों में, गलियों में लोग मास्क लगाकर नहीं चलते. जिन देशों में एक्टिव केस ज्यादा है वहां कि रिपोर्ट बताती है कि कोरोना लक्षण वालों की जल्द पहचान हो गयी. उशके बाद उन लोगों की पहचान की गयी जो उसके संपर्क आए. उनकी जांच हुई , उन्हें कोरेटाइन किया गया. इस काऱण संक्रमण को फैलने से रोका जा सका.

नेचर पत्रिका में प्रकाशित ये अध्यन बताता है कि भले ही लक्षण दिखने के आठ दिन बाद संक्रमण कम होता है, मगर कुछ मरीजों में 20 दिन बाद भी कोरोना का वायरस पाया गया जो 37 दिन तक रह सकता है.

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