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अमेरिका में बैंकिंग संकट : दुनिया पर असर को लेकर बड़ी चिंता, जानिए पूरा मामला

अमेरिकी सरकार की संस्था एफडीआइसी ने सिलिकॉन वैली बैंक पर छाये संकट के बाद इसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया और यह बैंक बंद हो गया. तालाबंदी के बाद सिग्नेचर बैंक के जमाकर्ताओं में भी अफरा-तफरी मच गयी और एफडीआइसी ने 12 मार्च को इसे भी बंद कर दिया. क्यों बंद हुआ एसवीबी, दुनिया पर क्या असर होगा?

आरती श्रीवास्तव

अमेरिका के दो बड़े बैंक- सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) और सिग्नेचर बैंक ठप हो गये हैं. जिसका असर दुनियाभर में देखने को मिल रहा है. वर्ष 2008 में आये वित्तीय संकट के बाद (जो अमेरिका से ही शुरू हुआ था), इस तरह का संकट पहली बार देखने में आ रहा है. दरअसल इन दोनों ही बैंकों के पास एक्सेस रिजर्व यानी सुरक्षित पूंजी का बड़ा भंडार है, इसके बावजूद इन दोनों बैंकों का ठप हो जाना कई प्रश्न खड़े करता है. आम तौर पर देखा जाता है कि जब किसी बैंक का बैड लोन (ऋणदाता द्वारा ऋण का भुगतान नहीं करना) बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो वह क्रेडिट रिस्क कहलाता है. इस स्थिति में बैंकों का कामकाज ठप हो जाता है. परंतु सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के साथ क्रेडिट रिस्क की कोई समस्या नहीं रही है. इन दोनों बैंकों के बंद होने का प्रमुख कारण ब्याज दरों में तेजी से हो रही वृद्धि और लिक्विडिटी यानी तरलता की समस्या बतायी जा रही है. वास्तविकता यह है कि दोनों बैंकों से ग्राहक बड़े पैमाने पर पैसे निकालने लगे, इस कारण बैंक धराशायी हो गये. इस संकट से भारत की सैकड़ों स्टार्टअप कंपनियों पर भी संकट मंडराने लगा है.

इस तरह बढ़ा बैंक का संकट

वर्ष 2020-21 में कोरोना महामारी के दौरान तकनीक में उछाल के साथ सिलिकॉन वैली बैंक ने बड़ी मात्रा में जमा, यानी डिपॉजिट प्राप्त किया और लंबी अवधि के लिए ट्रेजरी बॉन्ड में उस आय का निवेश किया, तब ब्याज दरें कम थीं. अन्य लोगों की तरह इस बैंक ने भी रिटर्न की आस में जमा राशि का बड़ा हिस्सा निवेश कर दिया और एक छोटा हिस्सा अपने पास रखा. बैंक की यह रणनीति एकदम सही तरीके से काम कर रही थी, जब तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को कम करने के लिए पिछले वर्ष ब्याज दरों को नहीं बढ़ाया था. लेकिन जब फेडरल रिजर्व ने टेक कंपनियों के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, तो बैंक का संकट बढ़ गया. इस वृद्धि के बाद निवेशकों में डर बैठ गया कि बैंक कंगाल हो जायेगा. इसी डर से बड़ी संख्या में संस्थागत निवेशकों ने एक साथ अपना पैसा निकाल लिया. इससे बैंक के शेयर 60 प्रतिशत से ज्यादा टूट गये और मामला तालाबंदी तक पहुंच गया.

असल में, स्टार्टअप कंपनियों की निकासी के अनुरोध को पूरा करने के लिए सिलिकॉन वैली बैंक को अपने कुछ निवेशों को उस समय बेचने को मजबूर होना पड़ा, जब उनका मूल्य कम था. इस क्रम में उसे करीब दो अरब डॉलर की हानि हुई.

निवेशकों में फैली दहशत के लिए ये कारण भी जिम्मेदार

एसवीबी के ग्राहकों में इसलिए भी दहशत फैली क्योंकि अमेरिकी एजेंसी, फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एफडीआईसी) ने शुरुआत में कहा था कि ग्राहकों द्वारा जमा 2,50,000 डॉलर तक की राशि का ही बीमा है और अगर किसी के खाते में इससे अधिक पैसे हैं, तो वे एक टोल नंबर पर संपर्क करें. इससे ग्राहकों में अफरा-तफरी मच गयी, क्योंकि अधिकांश ग्राहकों की एसवीबी में 2,50,000 डॉलर से अधिक की रकम जमा थी. ऐसे में वे जानते थे कि यदि बैंक धराशाई होता है, तो उनका पैसा सुरक्षित नहीं होगा. एसवीबी में मोटे तौर पर 88 प्रतिशत जमा राशि का बीमा नहीं था.

सिग्नेचर बैंक की रािश भी अबीमित

सिग्नेचर बैंक को भी एसवीबी के समान ही समस्या का सामना करना पड़ा. एसवीबी के बंद होने के बाद सिग्नेचर के ग्राहक भी डर गये और उन्होंने अपनी जमा राशि की निकासी शुरू कर दी, क्योंकि इस बैंक की लगभग 90 प्रतिशत राशि अबीमित थी.

12 वर्ष पूर्व जैसे हालात बनने के दिख रहे संकेत

अमेरिका के एक के बाद एक बैंक के धराशायी होने से 2008 जैसी स्थिति बनने की संभावना को बल मिलता दिख रहा है. वर्ष 2008 में जब अमेरिकी बैंकिंग फर्म लेहमन ब्रदर्स ने अपने आपको दिवालिया घोषित कर दिया था, उसके बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की चपेट में आ गयी थी. इसका दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ा था. अमेरिकी बैंकिंग इतिहास की पड़ताल करने से यह पता चलता है कि यहां के बैंकिंग सेक्टर पर 12 वर्ष पूर्व आये संकट के बाद दूसरा संकट बीते दिनों सिलिकॉन वैली बैंक के बंद होने के रूप में सामने आया. इसके तुरंत बाद सिग्नेचर बैंक बंद हुआ और अब फर्स्ट रिपब्लिक बैंक पर तालाबंदी का संकट मंडरा रहा है. हालांकि इस संकट से उबरने के लिए अमेरिकी अथॉरिटी ने हस्तक्षेप किया है. पर दिग्गज अमेरिकी निवेशक बिल अकमैन का मानना है कि अथॉरिटी के हस्तक्षेप के बाद भी बैंकिंग सेक्टर पर आया यह संकट कई और बैंकों को डूबा सकता है. एसवीबी का प्रभाव कई और बैंकों पर पड़ने की संभावना है.

क्या है ब्याज दर जोखिम

इंटरेस्ट रेट रिस्क, यानी ब्याज दर जोखिम की स्थिति तब आती है जब कम अवधि के भीतर ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी होती है. ऐसे में बैंकों के सामने दिक्कत पैदा हो जाती है. मार्च 2022 से अमेरिका में ऐसा ही हुआ है. फेडरल रिजर्व बैंक, यानी अमेरिका का केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों को बढ़ा रहा है, ताकि बढ़ती महंगाई पर काबू पाया जा सके. फेडरल रिजर्व बीते वर्ष से अब तक ब्याज दरों में 4.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि कर चुका है. नतीजा, ऋण पर ब्याज वसूली आनुपातिक दर से बढ़ी है. इसी कारण मार्च 2023 में एक वर्ष के अमेरिकी सरकारी ट्रेजरी नोट्स पर ब्याज वसूली 17 वर्ष के उच्चतम स्तर 5.25 प्रतिशत पर पहुंच गयी, जो 2022 की शुरुआत में 0.5 प्रतिशत से कम थी. जैसे-जैसे किसी प्रतिभूति, यानी सिक्योरिटी पर प्रतिफल बढ़ता है, उसकी कीमत घटती जाती है. इसी कारण इतने कम समय में ब्याज दरों में तेज वृद्धि पहले जारी किये गये ऋण, चाहे वह कॉरपोरेट बॉन्ड हों या सरकारी ट्रेजरी बिल, के डूबने का कारण बनी. ऐसा विशेष रूप से लंबी अवधि के ऋण के साथ हुआ. सिलिकॉन वैली बैंक की अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा, 55 प्रतिशत, निश्चित आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश किया गया था, उदाहरण के लिए अमेरिकी सरकार के बॉन्ड में.

ब्याज दर जोखिम की समस्या बननी

किसी प्रतिभूति के बाजार मूल्य में गिरावट के कारण ब्याज दर जोखिम तब तक एक बड़ी समस्या नहीं रहती है, जब तक प्रतिभूति लेने वाला परिपक्वता अवधि तक अपनी सिक्योरिटीजी को बनाये रखता है, जहां वह बिना किसी हानि के अपने उस मूल्य को प्राप्त कर सकता जो मूल रूप से पेपर में अंकित होता है, पर अगर प्रतिभूति लेने वाले को परिपक्वता से पहले ही ऐसे समय में अपनी प्रतिभूति को बेचना पड़ता है जब बाजार मूल्य उस पर अंकित मूल्य से कम होता है, तो बैलेंस सीट में छुपा अप्राप्त नुकसान वास्तविक नुकसान बन जाता है. एसवीबी के साथ इस वर्ष की शुरुआत में ठीक ऐसा ही हुआ था. जब उसके ग्राहकों ने नकदी की कमी से निपटने के लिए अपनी जमा राशि निकालनी शुरू कर दी थी. ऐसी स्थिति तरलता जोखिम, यानी लिक्विडिटी क्राइसिस को जन्म देती है.

लिक्विडिटी रिस्क के मायने

लिक्विडिटी रिस्क, यानी तरलता जोखिम उस स्थिति को कहते हैं, जब एक व्यक्तिगत निवेशक, व्यवसाय या वित्तीय संस्थान अपने अल्पकालिक ऋण दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ होते हैं. उदाहरण के लिए, यदि आप एक घर खरीदने के लिए अपनी बचत का 150,000 खर्च करते हैं और इसी दौरान आपको किसी अन्य आपात स्थिति से निपटने के लिए उसमें से कुछ या पूरे पैसे की आवश्यकता होती है, पर आप उसे आसानी से नकदी में नहीं बदल सकते, क्योंकि वह घर में फंसा हुआ है. ऐसी स्थिति में आप तरलता जोखिम के परिणाम का सामना कर रहे होते हैं, क्योंकि आपके पास नकदी की कमी होती है.

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • एसवीबी की स्थापना 1983 में हुई थी. यह अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक है.

  • एसवीबी सिलिकॉन वैली स्थित स्टार्टअप में मुख्यत: निवेश करती थी. यह वेंचर कैपिटलिस्ट के तौर पर स्टार्टअप को बैंकिंग से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराती थी.

  • एसवीबी ने अमेरिकी पूंजी समर्थित लगभग आधे स्टार्टअप में निवेश किया था. 31 दिसंबर, 2022 तक इस बैंक की कुल संपत्ति की कीमत लगभग 209 अरब डॉलर थी. जबकि इसके खातों में 1743.4 अरब डॉलर जमा थे.

  • बैंक की वेबसाइट की मानें, तो मौसम तकनीक और सस्टेनेबिलिटी सेक्टर में इसके साढे पंद्रह सौ से अधिक ग्राहक थे.

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