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90 के दशक की तरह फिर से शुरू हो जायेगा खून-खराबा, वाराणसी कोर्ट के फैसले पर भड़के असदुद्दीन ओवैसी

एआईएमआईएम (All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मध्यप्रदेश और दिल्ली में हुई हिंसक घटनाओं के बाद मांग की है कि मस्जिदों में कैमरे लगाये जाने चाहिए.

हैदराबाद: ज्ञानवापी-शृंगार गौरी कॉम्प्लेक्स पर वाराणसी कोर्ट के फैसले से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asadudding OWaisi) बौखला गये हैं. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से 1980-90 के दशक की तरह फिर से देश में हिंसा की घटनाएं होंगी. उन्होंने कहा कि जिस तरह से रथ यात्रा के बाद खून की नदियां बहीं थीं, इस फैसले से वैसे ही हालात लौट आयेंगे.

मस्जिदों में लगाये जाने चाहिए कैमरे

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एआईएमआईएम (All India Majlis-E-Ittehadul Muslimeen) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मध्यप्रदेश और दिल्ली में हुई हिंसक घटनाओं के बाद मांग की है कि मस्जिदों में कैमरे लगाये जाने चाहिए. दिल्ली के जहांगीरपुरी और मध्यप्रदेश के खरगोन में हुई हिंसक घटनाओं का हवाला देते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मस्जिदों में हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगाये जाने चाहिए, ताकि धार्मिक शोभायात्रा के दौरान अगर पत्थरबाजी की घटनाएं होती हैं, तो लोगों को पता चल सके कि किसने पत्थर फेंके.

ओवैसी ने केंद्र सरकार पर बोला हमला

AIMIM चीफ ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की केंद्र सरकार पर भी हमला बोला. ओवैसी ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार नफरत की राजनीति कर रही है. शनिवार सुबह ओवैसी ने ज्ञानवापी-श्रीनगर गौरी कॉम्प्लेक्स में सर्वे संबंधी वाराणसी कोर्ट के आदेश की निंदा की. उन्होंने कहा कि इस फैसले से एक बार फिर वैसा ही खून-खराबा शुरू हो सकता है, जैसा 1980-90 के दशक में मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी.

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वाराणसी कोर्ट का फैसला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का उल्लंघन

असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘काशी के ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का कोर्ट का आदेश ‘1991 प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट’ का उल्लंघन है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक, धार्मिक स्थलों की प्रकृति बदलना गैरकानूनी है. अपने ट्वीट के बारे में पूछे जाने पर ओवैसी ने कहा कि भारत सरकार और उत्तर प्रदेश की सरकार को कोर्ट को यह बताना चाहिए था कि संसद ने ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजंश) एक्ट 1991’ पास किया है. यह कहता है कि 15 अगस्त 1947 के पहले जिन धार्मिक स्थलों का अस्तित्व नहीं था, उनसे छेड़छाड़ नहीं किया जायेगा. उन्होंने कोर्ट को ये बातें नहीं बतायीं.


नफरत की राजनीति के लिए केंद्र ने साधी चुप्पी

ओवैसी ने कहा कि मोदी सरकार यह जानती है कि जब बाबरी मस्जिद पर सिविल कोर्ट का जजमेंट आया था, उसमें 1991 के कानून को संविधान के मूल ढांचे से जोड़ा था. यह सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी थी कि वह कोर्ट को बताये कि वह जो फैसला देने जा रहा है, वह गलत है. लेकिन, सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली, क्योंकि उन्हें नफरत की राजनीति करनी है.

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