नयी दिल्ली : देशभर में रंगों की त्योहार होली धूमधाम से मनायी गयी. राजधानी दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सो में लोगों ने रंग और गुलाल की होली खेली. पाकिस्तान में भी हिंदूओं ने होली मनायी. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने सभी हिंदूओं को होली की शुभकामनाएं दी. वहीं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी होली की शुभकामनाएं दी.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी होली के अवसर पर अपने ट्विटर संदेश में कहा, ‘देशवासियों को होली के पावन पर्व पर शुभकामनाएं.’ उन्होंने कहा कि रंगों का यह त्योहार भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को एकजुट करता है. उन्होंने कहा, ‘वसंत के आगमन का प्रतीक यह पर्व सभी के लिए आशा, प्रसन्नता और कामनाओं की पूर्ति का अग्रदूत है. रंगों का यह त्योहार एकता के इंद्रधनुष में भारतीय संस्कृति के विविध रंगों का समुच्चय है.’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘इस दिन हमें जरूरतमंदों और वंचितों में खुशियां फैलाने का काम करना चाहिए. यह त्योहार सभी लोगों के बीच भाईचारा और सौहार्द को मजबूत करता है.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर के जरिए देशवासियों को शुभकामना संदेश देते हुए लिखा, ‘होली के पावन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.’ उन्होंने रंगों के त्योहार पर शुशी और भाईचारे के बढ़ने की कामना की.
क्यों मनाते हैं होली
पौराणिक मान्यता के अनुसार होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है. प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके. न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए.
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा. हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ. प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे.
प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया. उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था. उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी.
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनायी. होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धू करती आग में जा बैठी. प्रभु-कृपा से वह चादर वायु के वेग से उड़कर बालक प्रह्लाद पर जा पड़ी और चादर न होने पर होलिका जल कर वहीं भस्म हो गयी.
इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गयी. तभी से होलिका जलाने की परंपरा शुरू हुई. उसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.