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पत्नी अगर माता-पिता से अलग रहने का दबाव बनाए तो पति उसे दे सकता है तलाक

नयी दिल्‍ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि एक हिंदू समाज में अभिभावकों की देखरेख करना बेटे का दायित्व है और पत्नी का अपने पति को उसके परिवार से अलग करने का सतत प्रयास ‘क्रूरता’ होता है जिसके चलते पति उसे तलाक दे सकता है. न्यायमूर्ति अनिल आर दवे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर […]

नयी दिल्‍ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि एक हिंदू समाज में अभिभावकों की देखरेख करना बेटे का दायित्व है और पत्नी का अपने पति को उसके परिवार से अलग करने का सतत प्रयास ‘क्रूरता’ होता है जिसके चलते पति उसे तलाक दे सकता है. न्यायमूर्ति अनिल आर दवे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की एक पीठ ने कर्नाटक के एक व्यक्ति द्वारा तलाक की मांगी गई अनुमति को मंजूरी देते हुए यह व्यवस्था दी. इसके साथ ही पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें बेंगलूर की परिवार अदालत द्वारा वर्ष 2001 में दी गई तलाक की अनुमति को खारिज कर दिया गया था.

साथ रहने का आदेश यौन संबंधों के लिए मजबूर नहीं कर सकता

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा कि साथ रहने का निर्देश अलग रह रहे दंपति के बीच यौन संबंधों पर लागू नहीं होता और यह आदेश ‘ज्यादा से ज्यादा’ उन्हें साथ रहने के लिए मजबूर कर सकता है. न्यायमूर्ति प्रदीप नांद्राजोग और न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने स्पष्ट किया कि अगर पति या पत्नी में से कोई एक साल तक साथ रहने के आदेश का उल्लंघन करता है तो यह आदेश तलाक मंजूर करने का आधार हो सकता है.

अदालत ने कहा कि दाम्पत्य अधिकार बहाल करने के आदेश का उद्देश्य पक्षों को साथ लाना है ताकि वे वैवाहिक घर में मिलजुलकर रहे सकें. अगर एक साल की अवधि में दाम्पत्य अधिकार के फैसले का पालन नहीं किया जाता है तो यह हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक का आधार बन जाता है. अदालत ने कहा कि कानूनी स्थिति यह है कि दाम्पत्य अधिकार बहाल करने के आदेश से ज्यादा से ज्यादा यह किया जा सकता है कि कानून सहजीवन के लिए मजबूर कर सकता है, यौन संबंधों के लिए नहीं.

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