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“गोरक्षकों” को प्रधानमंत्री का कड़ा संदेश : क्या है मायने ?

देश में बढ़ रहे दलित हमले की घटनाओं को लेकर प्रधानमंत्री ने कठोर रूख अपनाया है. कल "टाऊन हॉल" में उन्होंने "गौ रक्षकों" को कड़ा संदेश दिया . वहीं आज हैदराबाद में भी उन्होंने अपने संदेश को दोहराया. कठोर शब्दों में की गयी निंदा के कई मायने निकाले जा रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री अब इन […]

देश में बढ़ रहे दलित हमले की घटनाओं को लेकर प्रधानमंत्री ने कठोर रूख अपनाया है. कल "टाऊन हॉल" में उन्होंने "गौ रक्षकों" को कड़ा संदेश दिया . वहीं आज हैदराबाद में भी उन्होंने अपने संदेश को दोहराया. कठोर शब्दों में की गयी निंदा के कई मायने निकाले जा रहे हैं. क्या प्रधानमंत्री अब इन मामलों को लेकर गंभीर हो गये हैं ? गौरतलब है कि दो दिन के अंतराल में नरेन्द्र मोदी ने दूसरी बार अपना संदेश दुहराया है.

पिछले दो सालों से देश के कई राज्यों में गौरक्षकों की गतिविधियां बढ़ गयी थी. हरियाणा में कई मामले सामने आये वहीं हालिया गुजरात में दलितों की पिटाई के बाद मुद्दा गरमा गया. शुरुआत में सरकार ने इसे छोटी घटना समझकर टाल दिया था लेकिन हालिया गुजरात के ऊना में दलित पिटाई मामले के बाद मोदी सरकार बैकफुट पर आ गयी थी.
विदेशों में छवि हो रही है खराब
गौरक्षकों के करतूतों से विदेशों में भारतीयों की छवि खराब हो रही है. प्रधानमंत्री दिल्ली में कुर्सी संभालने के साथ ही पूरी दुनिया को संदेश देना चाहते थे कि भारत एक तेजी से प्रगति करने वाला देश है लेकिन पिछले दो साल में अखलाक की हत्या , गुजरात के दलित कांड व रोहित वेमुला प्रकरण ने इस अभियान को धक्का पहुंचाया है. इन नकरात्मक खबरों का असर देश में आने वाले विदेशी निवेश पर भी पड़ता है.
दलित वोट बैंक पर असर
2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में दलितों ने नरेंद्र मोदी को वोट दिया था . चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा ने दलित वोट बैंक को बरकरार रखने की कोशिश की. बीजेपी ने आंबेडकर जयंती भी मनाया लेकिन भाजपा के इस कोशिश पर ब्रेक लग गया. देश मेंइस तरह की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंचों से गौ -रक्षा दलों पर हमला बोलना शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री ने कहा कि "मुझे गोली मार दो लेकिन दलित भाईयों पर हमला बंद कर दो"
अखलाक से ऊना की घटना तक
गोमांस के नाम पर नोएडा के दादरी गांव में अखलाक की हत्या कर दी गयी थी. तब मीडिया में इस घटना को लेकर मोदी सरकार की आलोचना हुई थी. साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटाये और केंद्र सरकार के खिलाफ मीडिया में नकरात्मक माहौल बना. शुरूआत में मोदी सरकार ने इसे मीडिया की सुर्खियां समझकर टाल दिया था लेकिन ऐसी घटनाएं थमी नहीं है. हालिया गुजरात की घटना ने पीएम मोदी की चुप्पी तोड़ने को मजबूर किया.

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