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भोपाल गैस पीड़ितों के बच्चों का इलाज भगवान भरोसे

भोपाल : वर्ष 1984 में हुई दुनिया की भीषणतम औद्योेगिक त्रासदी, भोपाल गैस हादसे की 31 वीं बरसी के एक दिन पहले गैस पीडितों के इलाज के लिये काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एनजीओ ‘संभावना ट्रस्ट’ के अध्ययन में गैस पीड़ित या बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास के इलाकों के प्रदूषित भूजल […]

भोपाल : वर्ष 1984 में हुई दुनिया की भीषणतम औद्योेगिक त्रासदी, भोपाल गैस हादसे की 31 वीं बरसी के एक दिन पहले गैस पीडितों के इलाज के लिये काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एनजीओ ‘संभावना ट्रस्ट’ के अध्ययन में गैस पीड़ित या बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास के इलाकों के प्रदूषित भूजल से पीड़ित माता-पिता के जन्मजात विकृतिग्रस्त पैदा हुए 2500 बच्चों की पहचान करने का दावा करते हुए संगठन ने सरकार से ऐसे और बच्चों का पता लगाने और उनका समुचित इलाज कराने की मांग की है.

‘संभावना’ के प्रबंध न्यासी सतीनाथ सारंगी ने आज ‘पीटीअाई-भाषा’ से कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार को यूनियन कार्बाइड के जहर से पीड़ित माता-पिता के जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो रहे बच्चों की पहचान कर और उनके इलाज की पूरी व्यवस्था करनी चाहिये. भोपाल गैस कांड के पीडितों और प्रदूषित भूजल प्रभावितों को मुफ्त इलाज देने वाली संभावना क्लिनिक ने हाल में बंद पड़े यूनियन कार्बाइड के कारखाने के आसपास में रहने वाले 20 हजार से ज्यादा परिवारों के एक लाख से अधिक लोगों पर अध्ययन पूरा किया है. उन्होंने बताया कि समान आबादी वाले चार समुदाय पर जो अध्ययन हुआ है, उसमें 1984 में गैस से प्रभावित, प्रदूषित भूजल से प्रभावित, गैस और प्रदूषित भूजल दोनों से प्रभावित और अप्रभावित वर्ग के लोग शामिल हैं.

सारंगी ने कहा, ‘‘पिछले तीन साल में क्लिनिक के अनुसंधान कर्मियों ने चिकित्सक द्वारा प्रमाणित टी.बी., कैंसर, लकवा, महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य और शिशुओं एवं बच्चों के शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास की जानकारी इकट्ठा की है. संभावना के कर्मियों ने इस आबादी में 2500 से ज्यादा ऐसे बच्चों की पहचान की है जो संभवत: जन्मजात विकृतिग्रस्त हैं जबकि देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 30 चिकित्सकों ने 1700 से अधिक बच्चों को जन्मजात विकृति से ग्रस्त प्रमाणित किया है.’ संभावना ट्रस्ट के इस अध्ययन के क्षेत्रीय समन्वयक रीतेश पाल के अनुसार अनुसंधान के आंकडों का विश्लेषण जारी है. बहरहाल, प्राथमिक अवलोकन से यह तथ्य सामने आया है कि अपीड़ित आबादी के मुकाबले जहरीली गैस या प्रदूषित भूजल से प्रभावित आबादी में जन्मजात विकृतियों की दर कहीं ज्यादा है. उन्होंने बताया कि अगले छह महीने में अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जाएंगे.

पाल की सहयोगी आफरीन ने कहा कि वे सिर्फ बच्चों की विकृति के बारे में ही जानकारी नहीं जुटा रहे हैं बल्कि ऐसे बच्चों को इलाज मुहैया कराने में भी मदद कर रहे हैं. उनके अनुसार अब तक मंदबुद्धि, सेरेब्रल पॉल्सी, अण्डकोष की विकृति, सिन्डेक्टिली-पॉलिटेक्टिली ऊंगलियों की विकृति और अन्य जन्मजात विकृतियों वाले 164 बच्चों को इलाज के लिए सरकारी और गैर सरकारी चिकित्सा केंद्रों में भेजा जा चुका है. इनमें से 43 बच्चों का इलाज पूरा हो चुका है. सारंगी ने बताया कि संभावना ट्रस्ट क्लिनिक में गैस पीड़ित एवं कारखाने के पास रहने वाले प्रदूषित भूजल पीड़ित 31 हजार से ज्यादा लोग पंजीकृत हैं. इस क्लिनिक की विशेेषता है कि इसमें अंग्रेजी, आयुर्वेद एवं योग तीनों विधियों से समेकित इलाज किया जाता है. क्लिनिक को चलाने के लिए आर्थिक मदद भारत और ब्रिटेन में 15,000 से अधिक लोगों के दान से आता है. अंतरराष्ट्रीय लेखक डॉमिनिक लेपियर संभावना द्वारा संचालित स्त्री रोग क्लिनिक एवं अनौपचारिक विद्यालय के लिए पैसे जुटाते हैं.

द्वारका नगर की 42 वर्षीय शांतिबाई ने संपर्क करने पर बताया कि उसने वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में जहरीली गैस सांस ली थी. संभावना के चिकित्सकों द्वारा उसके 12 साल के लड़के अभिषेक को जन्मजात हृदय रोगी बताने के बाद भोपाल मेमोरियल अस्पताल में उसका सफल ऑपरेशन हो गया. न्यू आरिफ नगर की आयशा 40 ने अपने 8 साल के बेटे अमन का हमीदिया अस्पताल में अण्डकोष की विकृति के लिए किए गए ऑपरेशन की सफलता पर खुशी जाहिर की. आयशा ने कहा जब वह 20 साल की थी और काजी कैम्प इलाके में रहती थी तब हुई गैस त्रासदी की रात उसने जहरीली गैस सांस में ली थी. उसके बेटे का केवल एक अण्डकोष था और दो साल पहले उसका ऑपरेशन किया गया. उसने बताया कि अमन पढ नहीं सका क्योंकि वह विद्यालय में बैठ तक नहीं सकता था. भोपाल में 1984 में हुई गैस हादसे में जहरीली गैस से लगभग तीन हजार लोगों की मौत उसी दौरान हो गई थी. जबकि स्वतंत्र संगठन के एक अनुमान के मुताबिक इस हादसे के बाद पर्यावरण पर पडे दुष्परिणामों के चलते कई साल तक कई हजार लोगों की इससे मौत होती रही.

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