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जम्मू कश्मीर में युद्ध विराम का उल्लंघन व अतिवाद : क्या जम्मू कश्मीर के हालात 1990 के दौर में पहुंच गये हैं?

इंटरनेट डेस्क देश में विकास और उपलब्धियों के सपनों के बीच जम्मू कश्मीर में हालात चिंताजनक हैं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू कश्मीर के हालात 1990 के दौर में पहुंच रहे हैं, जब वहां अलगाववाद चरम पर था. पाकिस्तानी सेना लगातार जम्मू कश्मीर में संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रही है और बेकसूर […]

इंटरनेट डेस्क
देश में विकास और उपलब्धियों के सपनों के बीच जम्मू कश्मीर में हालात चिंताजनक हैं. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू कश्मीर के हालात 1990 के दौर में पहुंच रहे हैं, जब वहां अलगाववाद चरम पर था. पाकिस्तानी सेना लगातार जम्मू कश्मीर में संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रही है और बेकसूर भारतीय उनकी गोली के शिकार हो रहे हैं. पिछले दस दिनों से वह लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है. इस वर्ष पाकिस्तान ने 240 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है. सिर्फ अगस्त महीने के 18 दिनों में अबतक वह संघर्ष विराम का 45 बार उल्लंघन कर चुका है. कल रात भी आरएसपुरा व अरनिया सेक्टर को निशाना बनाया गया. पाकिस्तानी रेंजर मोर्टार बम का भी उपयोग कर रहे हैं. इससे लोगों का घरों से निकलना तो मुश्किल हो ही रहा है, खेतीबारी भी प्रभावित हो रही है. लोगों को पलायन भी करना पड रहा है. पाकिस्तान द्वारा भारत के स्वतंत्रता दिवस 15 व 16 अगस्त को किये गये संघर्ष विराम में छह लोगों की मौत हो गयी. इसके बाद भारत ने पाक उच्चायुक्त को भी तलब किया.
पाकिस्तान के साथ एनएसए स्तर की वार्ता में उठेगा मुद्दा
पाकिस्तान के साथ भारत की एनएसए स्तर की वार्ता 23 अगस्त को होने की संभावना है. भारत इस बैठक में इन मुद्दों को उठायेगा. हालांकि पाकिस्तान भी बलूचिस्तान व अन्य मुद्दों को उठा कर भारत पर झूठे आरोप मढने के मूड में है. पाकिस्तान उच्चायुक्त अब्दुल बासित का यह बयान अहम है कि जम्मू कश्मीर के लोगों के स्वतंत्रता संघर्ष को हम समर्थन देते रहेंगे. दरअसल, जम्मू कश्मीर में अलगाववाद व आतंकवाद पाकिस्तान पोषित है. हाल में भी उसका जीवित आतंकी नावेद गिरफ्तार किया गया. भारत जब भी वहां के लोकतांत्रिक सरकार से वार्ता की गंभीर पहल करता है, पाकिस्तान की सेना व खुफिया एजेंसी उकसाने वाली कार्रवाई शुरू कर देती है. कल पीएम ने भी दबई में अपने भाषण में पाकिस्तान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिना नाम लिये साफ संदेश दिया कि गुड तालिबान व बेड तालिबान, गुड टेरेरिज्म व बेड टेरेरिज्म अब नहीं चलेगा और अपना स्टैंड स्पष्ट करना होगा कि आप आतंकवाद के साथ हैं या खिलाफ.
कश्मीर के पढे लिखे युवाओं का नया रुख
जम्मू कश्मीर के पढे लिखे युवाओं में एक बार फिर भ्रम की स्थिति दिख रही है. अतिवाद की ओर उनका रुझान दिखना खतरनाक संकेत है. कश्मीर के युवा आज पाकिस्तान व आइएस के झंडे लहरा रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जून के बीच कम से कम 34 युवाओं को कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के रास्ते को अपना लिया है. इसमें 22 लडके दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा, सोफिया व अवंतीपुरा के हैं. जमीनी हकीकत बताते हैं कि आतंकवाद की यह नयी पौध पूर्व से अधिक प्रभावी व कुशल है.
महत्वपूर्ण बात यह कि ये युवा अत्यधिक सक्रिय हथियारबंद आतंकी समूहों हिजबुल मुजाहीदीन व लश्कर ए तैयबा से नहीं जुड रहे हैं. हालांकि आधिकारिक तौर पर आतंरिक खतरों को लेकर जिम्मेवार लोग इस बात को खारिज करते रहे हैं. डेलीओ डॉट इन पर कश्मीर मामलों के जानकार गौहर गिलानी ने एक स्टोरी लिखी हैं, जिसमें वे एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी, जो जम्मू कश्मीर के डीजीपी भी रहे हैं, की उस पंक्ति का उल्लेख करते हैं कि जम्मू कश्मीर के मौजूदा हालात की तुलना 1990 के दौरे से नहीं की जा सकती है. उनके अनुसार, पूरी दुनिया में वर्तमान में आइएसआइएस के झंडे लहराये जा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि युवा अतिवाद की ओर जा रहे हैं. यह जम्मू कश्मीर के लिए कोई मुद्दा नहीं है.
इसी बात का समर्थन करते हुए एक सैन्य अधिकारी का भी उल्लेख किया गया है. श्रीनगर के 15वीं कोर में तैनात लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत शाह के एक इंटरव्यू के हवाले से उन्होंने लिखा है कि कश्मीर घाटी की तुलना 1990 से नहीं की जा सकती. एक इंटरव्यू में जनरल शाह ने कहा कि 2015 में मात्र 40 लोगों ने आतंकी समूहों के प्रवेश किया है, जो पिछले साल से कम है. उनके अनुसार, आर्मी का ऑपरेशन भी तेज चल रहा है. जम्मू कश्मीर में कुल सक्रिय आतंकी 170 से 180 के बीच बताये जा रहे हैं.
युवाओं के अतिवाद की ओर जाने के क्या हैं कारण?
गौहर गिलानी ने अपने लेख में कश्मीर के युवाओं के अतिवाद की ओर बढने के कुछ अहम कारणों को रेखांकित किया है. वे लिखते हैं कि कश्मीर में विश्वविद्यालयों में छात्रों के लिए लोकतांत्रिक विमर्श की जगह नहीं बची है. जम्मू कश्मीर छात्र संघ को पूरी तरह बैन कर दिया गया है. वे यह भी लिखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर केंद्रित राजनीतिक संबंध पाक से बनाये थे और कश्मीर को लेकर परस्पर भरोसा बहाली की कोशिश की थी. वे यह भी लिखते हैं कि कश्मीर में हिंदुत्व व घर वापसी का भय है. उनके अनुसार, इन कारणों से कश्मीर के युवा भ्रमित है और अतिवाद की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
आइएसआइएस के खतरे
जुलाई के अंतिम दिनों में खबर आयी थी कि आइएसआइएस भारत पर हमले के फिराक में है. अमेरिका में वहां प्रतिष्ठित यूएसए टूडे में इस आशय की रिपोर्ट छपी थी. अमेरिकन मीडिया इंस्ट्टियूट ने इसे रिपोर्ट किया जो 32 पन्नों के उस उर्दू दस्तावेज पर आधारित थी, जो पाकिस्तानी तालिबान से संंबंध रखने वाले एक पाकिस्तानी नागरिक से जब्त किया गया था. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पाकिस्तान व अफगान तालिबान को एकीकृत करने की कोशिशें जारी हैं. इस रिपोर्ट की अमेरिका के तीन इंटेलीजेंट अधिकारियों ने समीक्षा की और इसे प्रमाणिक करार दिया.
Prabhat Khabar Digital Desk
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