इंफाल: धरती का फेफड़ा कहे जाने वाले ब्राजील स्थित अमेजन के जंगलों में पिछले दो सप्ताह से भीषण आग लगी है. इस आग की वजह से वहां पेड़ों की विभिन्न मूल्यवान प्रजातियों सहित जैवविविधता को भी काफी नुकसान पहुंचा है. केवल अमेजन ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रकृति को मानवीय गतिविधियों से काफी नुकसान पहुंचा है. चाहे वो अंटार्कटिका के ग्लेशियर हों या फिर दिल्ली स्थित अरावली की पहाड़ियां.
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से आई सुखद खबर
चारों तरफ प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाली खबरों के बीच से एक सुखद खबर सामने आई है. खबर पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की है जहां 46 साल के मोइरंगथेम लोइया ने प्रकृति प्रेम का अनूठा उदाहरण पेश किया है. इलाके में हरियाली लाने कवायद में जुटे मोइरंगथेम ने साल 2002 से पेड़ लगाने का काम शुरू किया जिसका परिणाम 300 एकड़ के बड़े इलाके में जंंगल के रुप में विद्यमान है. उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों ने चावल की खेती करने के लिए जंगलों को साफ कर दिया था और पौधों तथा झाड़ियों में आग लगा दी थी. इससे उनका मन क्षुब्ध था.
Manipur: Moirangthem Loiya from Uripok Khaidem Leikai in Imphal West, has replanted Punshilok forest in Langol hill-range in 17 years, says,"Today,forest area covers 300acres. 250 species of plants&25 species of bamboo grow here&its home to a variety of birds,snakes&wild animals" pic.twitter.com/PIP0GQXydM
— ANI (@ANI) August 30, 2019
300 एकड़ के इलाके में जंगल तैयार किया
आखिरकार उन्होंने चिकित्सक प्रतिनिधि के तौर पर अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पेड़ लगाने के लिए इलाके की तलाश शुरू कर दी. उनकी तलाश मारू लांगोल पहाड़ी श्रृंखला पर खत्म हुई. वे वहीं झोपड़ी बनाकर रहने लगे और पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया. लोइया ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अभूतपूर्व काम किया है. प्रकृति प्रेमी मोइरंगथेम ने 17 वर्षों के अथक प्रयास के बाद 300 एकड़ के क्षेत्रफल में घना जंगल उगा दिया. वे बताते हैं कि इस विशाल वनक्षेत्र में पौधों की 250 से अधिक प्रजातियां हैं. उन्होंने कहा कि यहां केवल बांस की 25 प्रजातियां हैं. उन्होंने कहा कि यहां बड़ी मात्रा में विभिन्न प्रकार के पक्षी, सांप और जंगली जानवर रहते हैं.
मोइरंंगथेम लोइया ने एक मिसाल पेश किया
मोइरंगथेम लोइया द्वारा ये जंगल पश्चिमी इंफाल के खैडेम लईकाई के पुन्शिलोक वन इलाके में बनाया गया है. बता दें कि हमेशा से पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को अथाह बन संपदा और जैवविविधता वाला इलाका कहा जाता रहा है. यहां घने वन हैं और सबसे ज्यादा बारिश भी यहीं होती है. हमेशा से उत्सुकता रहती है कि आखिर क्या कारण है कि इस राज्य में प्रकृति इतना फलती-फूलती हैं. जब मोइरंगथेम की कहानी सामने आयी तो समझ आता है कि इन जैसे प्रकृति प्रेमियों की बदौलत राज्य वन संपदा से इतना गुलजार है.