नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवारको कहा कि विश्व प्रसिद्ध ताजमहल की सुरक्षा और संरक्षा के लिए प्रदूषण और हरित क्षेत्र जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापक परिप्रेक्ष्य में दृष्टिपत्र तैयार करना चाहिए क्योंकि इस धरोहर के संरक्षण के लिए दूसरा अवसर नहीं मिलेगा.
शीर्ष अदालत ने कहा कि निश्चित ही इस मामले में ताजमहल को केंद्र में रखते हुए ही विचार करना होगा, लेकिन इसके साथ ही दृष्टिपत्र तैयार करते समय वाहनों के आवागमन, ताज ट्राइपेजियम जोन में काम कर रहे उद्योगों से होनेवाला प्रदूषण और यमुना नदी के जल स्तर जैसे मुद्दों पर भी गौर करना चाहिए. ताज ट्राइपेजियम जोन करीब 10,400 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है जिसके दायरे में उत्तर प्रदेश का आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, हाथरस और एटा तथा राजस्थान का भरतपुर जिला आता है. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने दृष्टिपत्र तैयार करने की प्रक्रिया में शामिल परियोजना समन्वयक से कहा, ‘यदि ताजमहल खत्म हो गया तो आपको दुबारा अवसर नहीं मिलेगा.’
पीठ ने कहा कि ताजमहल को संरक्षित करने के लिए प्राधिकारियों को अनेक बिंदुओं पर विचार करना होगा. पीठ ने हरित क्षेत्र के साथ ही इस इलाके में कार्यरत उद्योगों तथा होटल और रेस्तरां की संख्या के बारे में जानकारी चाही. उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता और अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि दिल्ली में नियोजन एवं वास्तुकला विद्यालय एक दृष्टिपत्र तैयार कर रहा है. ताजमहल के संरक्षण के अलावा वह इन सभी बिंदुओं से निबटने के लिए भी एक व्यापक योजना पर विचार कर रहा है.
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने कहा कि न्यायालय के आदेश के बाद उसे आगा खान फाउंडेशन, इंटैक और अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद जैसी विशेष दक्षता वाली संस्थाओं से भी इस बारे में सुझाव मिले हैं. नाडकर्णी ने कहा कि केंद्र ने आगरा ‘धरोहर शहर’ घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव भेजने के लिये केंद्र को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भी ताज के लिए धरोहर योजना तैयार करने की प्रक्रिया में है जिसे तीन महीने के भीतर यूनेस्को के पास भेज दिया जायेगा. उप्र सरकार ने कहा कि आगरा को ‘धरोहर शहर’ घोषित करने के बारे में एक महीने के भीतर केन्द्र के पत्र का जवाब दिया जायेगा.
इससे पहले, ताजमहल के संरक्षण के लिए जनहित याचिका दायर करनेवाले पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चंद्र मेहता ने कहा कि यहां हरित क्षेत्र कम हो गया है और यमुना नदी के तट के आसपास अतिक्रमण है. शीर्ष अदालत के 1996 के आदेश का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इस इलाके में अनेक उद्योग शुरू हो गये हैं जिनमें से अनेक अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय के इस आदेश के अनुसार इलाके में 511 उद्योग थे. न्यायालय ने कहा था कि इनमें से 292 के मामले में अलग से विचार किया जायेगा.
उप्र सरकार की वकील ऐश्वर्या भाटी ने जब यह कहा कि इस समय इलाके में 1167 प्रदूषण फैलानेवाली इकाईयां हैं तो पीठ ने कहा, ‘1996 में न्यायालय से जो कहा गया था उसमें अब काफी बदलाव आ चुका है. पहले 511 उद्योग थे और अब इनकी संख्या 1167 हो गयी है. क्या इन सब पर विचार किया गया है?’ इस पर परियोजना समन्वयक ने कहा कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखा गया है. इस मामले में अब 25 सितंबर को आगे विचार किया जायेगा.