नयी दिल्ली : जनसरोकार की पत्रकारिता के लिए प्रख्यात वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सदस्य हरिवंश द्वारा लिखी गयी किताब ‘दिल से मैंने दुनिया देखी’ का गुरुवार को विमोचन किया गया. इस किताब में उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं का जिक्र किया है और वहां के संस्मरण को बहुत ही सरल,सहज और रोचक अंदाज में आम लोगों तक पहुंचाने का काम किया है.
जानिए किताब की खासियत
इस किताब की खासियत यह है कि इसमें यात्रा के तथ्य और विवरण के अलावा संवदेना और मानवीय प्रसंगों का बखूबी विवरण दिया गया है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में इस किताब का विमोचन गुरुवार को किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि इस किताब की कई विशेषताएं हैं. पहली विशेषता यह है कि यह पढ़ने में काफी रोचक है. दूसरी विदेश यात्राओं का जिक्र छोटे-छोटे लेखों में समेटने की कोशिश की गयी है. इसमें साहित्य संवेदना का स्वर भी है.
उन्होंने कहा कि आम लोग सोचते होंगे कि सबसे ताकतवर देश अमेरिका का राष्ट्रपति जिस व्हाइट हाउस में रहता है, वह काफी आलीशान होगा और उसकी तुलना भारत के राष्ट्रपति भवन से करते होंगे, लेकिन किताब में जिस प्रकार व्हाइट हाउस का जिक्र किया गया, उससे लोगों को पता चलेगा कि सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति एक छोटे मकान में रहता है. इस किताब में काफी जानकारी है. इस यात्रा वृतांत में सूचना का अंबार है. एक रिसर्च इसमें दिखता है.
भारत में सही तरीके से नहीं हो पाया है उदारीकरण
उन्होंने कहा कि भारत में उदारीकरण सही तरीके से नहीं हो पाया, जबकि किताब में मलेशिया में उदारीकरण के जिक्र से पता चलता है कि पूंजी निवेश देशों को अपनी शर्त पर करना चाहिए. इस किताब की भाषा, शैली, छोटे-छोटे लेखों के जरिये अधिक से अधिक बात कहने की क्षमता साफ दिखती है.
इस अवसर पर संस्था के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि हरिवंश ने अपनी किताब में आंख नहीं, मन से दुनिया को देखने की कोशिश की है. इसमें विदेश दौरों को अपने समाज, परिवेश और देश के नजरिये से समझने की कोशिश की गयी है. किताब में मन का भाव साफ दिखता है. दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन की प्राकृतिक सुंदरता को देखते ही उनके मन में झारखंड की तस्वीर उभर जाती है. केपटाउन के सौंदर्य को देखकर उन्हें संसाधनों के मामले में संपन्न होने के बावजूद झारखंड की दुर्दशा परेशान करती है. हर विदेश यात्राओं की तुलना भारत से करने की सफल कोशिश की गयी है. इस किताब में शाब्दिक आडंबर नहीं है.
जानिए, क्या कहते हैं मैनेजर पांडेय?
साहित्यकार मैनेजर पांडेय ने कहा कि मौजूदा समय में कुछ देश और समाज अतीत से मुक्त होना चाहते हैं लेकिन भारत इसके बोझ से मुक्त नहीं होना चाहता है. भारतीय मानसिकता गुलामी से मुक्त नहीं होना चाहती है. अतीत से प्रेरणा लेना ठीक है, लेकिन मुक्त होना जरूरी है. हरिवंश की किताब में हर जगह संकल्प, साहस और श्रम की तारीफ की गयी है और भारत में उसके अभाव का वर्णन है. यात्राओं से विविधताओं का साक्षात्कार होता है. भारतीयों में यात्रा करने की प्रवृति कम है, इसलिए वे कम सीखते हैं. किताब में सिर्फ संवेदना नहीं ज्ञान भी है.
राजनीति नहीं कर सकती समाज बदलने का काम : हरिवंश
किताब के लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राज्यसभा सांसद हरिवंश ने कहा कि साहित्य ही समाज बदलने का काम करती है. समाज बदलने का काम राजनीति नहीं कर सकती है. आज देशों के बीच दूरियां कम हो गयी है और कम होती दूरियों ने संस्कृति को प्रभावित करने का काम किया है. गांधी के रास्ते पर चलते, तो भारत की स्थिति आज ऐसी नहीं होती. सत्य और अहिंसा समाज को एकजुट करने का काम करती है.
पोस्को कैसे बनी दुनिया की सबसे बड़ी स्टील कंपनी?
उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे देशों ने संकल्प से अपनी नियति बदली है. 1966 में दक्षिण कोरिया में स्टील प्लांट लगाने के लिए विश्व बैंक को प्रस्ताव भेजा गया, लेकिन वित्तीय आधार पर विश्व बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया, लेकिन वहां की सरकार ने संकल्प से स्टील प्लांट बनाया और आज पोस्को दुनिया का दूसरी सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गयी है. सिंगापुर से जापान, मलेशिया इसके उदाहरण है. आज भारत में बैंकों की स्थिति से सभी वाकिफ है. बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है और वे डूबने की कगार पर हैं. देश में बदलने वाली धारा मजबूत करने की जरूरत है.
सुरेश चंद्र शर्मा ने किया है किताब का संपादन
किताब का संपादन करने वाले सुरेश चंद्र शर्मा ने कहा कि इस यात्रा वृतांत का लेखन अन्य से अलग है. इसमें पत्रकारिता और साहित्य का समन्वय है. विचार के साथ संवदेना को समझा जा सकता है. यात्रा के साथ अंतर्यात्रा करते हुए इसे लिखा गया है. जनसरोकार के कारण ही यह काफी रोचक है. इस किताब का प्रकाशन राजकमल ने किया है और कीमत 350 रुपये है.