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खत्‍म हो जायेगा रेल का लाल-हरा सिग्‍नल, जानें क्‍या होगी नयी प्रणाली

नयी दिल्‍ली : हाल के दिनों में हुई रेल दुर्घटनाओं को ध्‍यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार देशभर में मौजूदा रेल सिग्‍नल प्रणाली को पूरी तरह बदलने पर विचार कर रही है. अगर इसमें बदलाव हुआ तो वर्षों से चली आ रहे लाल और हरे सिग्‍नल की व्‍यवस्‍था पूरी तरह समाप्‍त हो जायेगी. बजट […]

नयी दिल्‍ली : हाल के दिनों में हुई रेल दुर्घटनाओं को ध्‍यान में रखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार देशभर में मौजूदा रेल सिग्‍नल प्रणाली को पूरी तरह बदलने पर विचार कर रही है. अगर इसमें बदलाव हुआ तो वर्षों से चली आ रहे लाल और हरे सिग्‍नल की व्‍यवस्‍था पूरी तरह समाप्‍त हो जायेगी. बजट सत्र में सरकार इसकी घोषणा कर सकती है.

आपको बता दें कि लोकोमोटिव चालकों के लिए देशभर में लाल और हरे रंग के सिग्‍नलों का इस्‍तेमाल किया जा रहा है. सुरक्षा के मद्देनजर सरकार इसको बदलकर दूसरी सिग्‍नल प्रणाली अपनाना चाहती है.

देशभर के सिग्‍नल प्रणाली को बदलवे में 60,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आने का अनुमान है.

रेल सिग्‍नल प्रणाली पर कई कंपनियां काम कर रही है. अलस्‍टॉम, एनल्‍सडो, सीमंस, बोम्‍बार्डियर, थेल्‍स सहित यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्‍टम (ETCS) की कई कंपनियां रेल सिग्‍नल पर काम कर रही हैं. रेलमंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हम मौजूदा सिग्‍नल प्रणाली को पूरी तरह बदलने की योजना बना रहे हैं. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा बदलाव होने जा रहा है.

बिजनेस स्‍टैंडर्ड की एक खबर के अनुसार सूत्र ने बताया कि इस पूरे कार्यक्रम को एक नये वित्तीय मॉडल की जरुरत है, क्‍योंकि इसके लिए बहुत अधिक धन की आवश्‍यकता होगी. इसके वित्तपोषण का एक तरीका एन्‍युटी मॉडल हो सकता है, जिसमें कंपनियों को टुकड़ों में भुगतान किया जाता है. इस योजना को मंजूर करवाने के लिए मंत्रीमंडल की आर्थिक मामलों की समिति के समक्ष रखा जायेगा.

क्या है यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्‍टम

यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्‍टम (ETCS) में ट्रेन चालक के लिए एक बार के साथ एक डैशबोर्ड होता है जो यह बताता है कि कितनी दूरी आगे बढ़ने के लिए सुरक्षित है. इसमें एक स्पीडोमीटर लगा होता है जो हरे रंग में रफ्तार की सीमा निर्धारित करता है और पीले रंग में ट्रेन की रफ्तार दिखाता है. जैसे ही चालक ट्रेन की रफ्तार तेज करता है यह डैशबोर्ड पर लाल रंग का अलर्ट दिखाता है.

अगर चालक तेज गति के साथ 5 किमी की दूरी तय करता है तो ट्रेन पर अपने आप ब्रेक लग जाता है. फिलहाल लोकोमोटिव चालकों के पास ट्रेन चलाने के लिए कोई तकनीकी मदद उपलब्ध नहीं है. वे पूरी तरह स्टेशनों के आगे चले सिग्नल पर निर्भर हैं. कोहरे और खराब मौसम में जरा सी चूक भी दुर्घटना का कारण बन सकती है.

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