नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आधार नंबर को लेकर निजता के अधिकार के मुद्दे पर विचार के लिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्णय किया है. यह संविधान पीठ फैसला करेगी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है. प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि खड़क सिंह और एमपी शर्मा के मामलों में सुनाये गये दो फैसलों की सत्यता के पहलू का वृहद पीठ परीक्षण करेगी. इन फैसलों में कहा गया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है. खड़क सिंह प्रकरण में 1960 में छह सदस्यीय पीठ ने फैसला सुनाया था, जबकि एमपी शर्मा प्रकरण में 1950 में आठ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपनी व्यवस्था दी थी.
इस खबर को भी पढ़ेंः ‘आधार’ की वैधता पर बार-बार उठे हैं सवाल, निजता के अधिकार पर संविधान पीठ का फैसला आना अभी बाकी
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे. इस पीठ ने कहा कि नौ सदस्यीय संविधान पीठ कल से सुनवाई शुरू करेगी और निर्णय करेगी कि क्या संविधान के भाग के तहत परिभाषित मौलिक अधिकारों में निजता का अधिकार भी शामिल है.
अदालत ने यह आदेश आधार योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिया. इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि आधार योजना ‘निजता के मौलिक अधिकार’ का अतिक्रमण करती है. ये याचिकाएं 2015 में वृहद पीठ के पास भेजी गयी थीं, जब तत्कालीन अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत द्वारा पहले सुनाये गये फैसलों में भिन्नता है. उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे को हल करना होगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं.