नेशनल कंटेंट सेल
इतिहासकारों का मानना है कि साबुन सबसे पहले लैवेंट में बनाया गया था. जब रोमन धर्मयुद्ध के दौरान यूरोप की यात्रा पर निकले तो साबुन उत्पादन की कला का प्रसार सीरिया के अलेप्पो व फिलीस्तीन के नबलुस तक हुआ. लेकिन लगातार युद्ध में रहने के कारण साबुन बनाने की परंपरागत विधि इन शहरों से विलुप्त हो गयी.
हाल के दिनों में अलेप्पो में साबुन के पुराने कारखाने के अवशेष मिले हैं. नबलुस में फिलहाल दो साबुन बनाने के कारखाने हैं. युद्ध ग्रस्त इन देशों से पलायन करनेवाली महिलाएं जो जॉर्डन में शरणार्थी के रूप में रह रहीं हैं. इन्होंने साबुन बनाने की उन पुरानी कलाओं के द्वारा खुद को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहीं है. नजवा साल 2013 से साबुन बना रहीं हैं. वे सीरिया के दारा से हैं. दो बच्चों की मां नजवा जॉर्डन की राजधानी अम्मान के उत्तर-पूर्व में जर्का में रहती है. यहां वह अपने जैसे सीरियाइ शरनार्थी उम्मा के साथ साबुन बनाने का काम करती हैं. उम्मा बताती हैं कि सीरिया में युद्ध से पहले, हम सामान्य जीवन जी रहे थे हमारे पास कार, एक घर, अच्छा जीवन था हम खुश थे. फिर साल 2011 में 27 दिसंबर, को पूरा देश आंदोलन की आग में जल उठा. पुलिस ने मेरे बेटे को सड़क पर गोली मार दी. जबकि मेरा बेटा कभी अशद के खिलाफ किसी आंदोलन में शामिल नहीं था.
वह बेहद ही शालीन लड़का था जो हमारा कहना मानता था. उम्मा के पति को बाद में बेटे की मौत की जांच के लिए गिरफ्तार किया गया था. चार महीने तक जेल में उसे प्रताड़ित किया गया. इसके बाद उसे काम मिलना मुश्किल हो गया. इसके बाद उन्होंने 2013 में परिवार के साथ सीरिया छोड़ दिया और अम्मान आ कर रहने लगीं. लेकिन, राजधानी में रहना उनके लिए काफी महंगा था. इसलिए वे कामकाज की तलाश में जार्का आकर रहने लगीं. इस दौरान उम्मा के पति की तबीयत खराब रहने लगी और कम के लिए उम्मा को बाहर निकलना पड़ा. कुछ दिन उम्मा ने एक परिवार के यहां कुक के रूप में काम किया. फिर वह जार्का में सीरिया की महिलाओं के लिए काम करनेवाले लाइफ सेंटर के संपर्क में आयीं. यहां से उन्होंने अरबी और अंगरेजी की शिक्षा ली. इन्होंने लाइफ सेंटर को बताया कि वह साबुन बनाना जानती हैं और इसे वह महिलाओं के लिए बड़े पैमाने पर करना चाहती हैं. सेंटर के सहयोग से उम्मा और उनके जैसे कई महिलाएं आज खुद अपना घर चला रहीं हैं.
लाइफ सेंटर के सहयोग से शुरू किया उद्यम
लाइफ सेंटर के सहयोग से उम्मा और नजवा ने अपने जैसी कई महिलाओं को इकट्ठा कर साबुन बनाने का एक छोटा सा केंद्र विकसित कर लिया. लाइफ सेंटर इन्हें साबुन बनाने की सामग्री देता है और मुनाफे में दोनों की आधी-आधी हिस्सेदारी होती है. वे परंपरागत नाबुलसी नुस्खे के प्रयोग से साबुन बनाती हैं. इसमें जैतून का तेल, पानी और एक सोडियम मिलाते हैं. यहां काम करनेवाली महिलाएं प्रति माह लगभग 100 जॉर्डनियाइ दिनार (लगभग 141 डॉलर) कमा लेती हैं. इसके साथ ही साबुन को स्थानीय बाजार व अम्मान के स्टोरों में बेच भी बेचा जाता है. उम्मा कई महिलाओं को साबुन बनाना सिखाती हैं. अब वह अपने परिवार को अकेले चला रहीं हैं.