-हरिवंश-
11, 12 और 13 अक्तूबर को देवस्थली (संवरा, बलिया) में जनता पार्टी का अधिवेशन हुआ. 11 अक्तूबर को ही जेपी के गांव सिताबदियारा में जेपी स्मारक का उदघाटन भी. इन आयोजनों के संबंध में हरिवंश की रिपोर्ट.
यह स्मारक जेपी के पुश्तैनी घर के बगल में है. उपेक्षा एवं निरंतर बाढ़ के कारण जेपी का घर व आश्रम दोनों गिरने की स्थिति में थे. पिछले 37 वर्षों में जो सरकार इस बदनसीब इलाके में विकास का एक कार्य न करा सकी, उसे जेपी के ढहते मकान व घर से क्या लेना-देना था? चंद्रशेखर ने स्वयं पहल की व एक ट्रस्ट बनवाया. जेपी के आजीवन सहयोगी जगदीश बाबू को साथ ले कर करीब चार माह पूर्व चंद्रशेखर ने यहां कार्य आरंभ किया.
जयप्रकाशनगर पहुंचने के रास्ते में हेगड़े का जो स्वागत हुआ. लोगों ने जिस आतुरता से उनकी प्रतीक्षा की. उससे स्पष्ट था कि हेगड़े विरोध पक्ष के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है. उदघाटन समारोह में धैर्य व खामोशी के साथ लोगों ने हेगड़े सुना. जेपी स्मारक उनके विचारों का वाहक बने, यही हेगड़े की कामना थी. जेपी के गांव से 50 किलोमीटर दूर देवस्थली में आयोजित जनता पार्टी का तीन दिवसीय अधिवेशन (11 से 13 अक्तूबर) उपर्युक्त समारोह के विपरीत महज रस्म अदायगी था.
1980 व 1983 में सारनाथ व पटना में हुए अधिवेशनों में भी पार्टी ने लंबे-चौड़े प्रस्ताव पास किये, स्वयं को कांग्रेस का ‘एकमात्र विकल्प’ माना, लेकिन ठोस उपलब्धियों के नाम पर पार्टी के पास गिनाने के लिए कुछ नहीं है. वैसे भी पिछले दो दशकों से कार्यक्रमों के आधार पर किसी भी पार्टी की पहचान मुश्किल हो गयी है. लंबे-लंबे ऊबाऊ प्रस्तावों को पढ़ने का धैर्य अब किसी के पास नहीं है. अंतिम दिन पार्टी अध्यक्ष ने आगामी छह मास तक सरकार की नीतियों के खिलाफ जनमत संगठित करने व संघर्ष छेड़ने की बात कही. मगर यह संघर्ष किनके खिलाफ? किसलिए? यह सवाल अहम है. कांग्रेसी कल्चर के खिलाफ कांग्रेस से बहष्किृत लोगों को साथ ले कर संघर्ष नहीं हो सकता. यह सही है कि आज भी देश में संघर्ष हो, तो चंद्रशेखर, जॉर्ज जैसे लोग जेल जाने या लड़ने से नहीं कतरायेंगे, लेकिन महज सेनापतियों के बल पर संघर्ष नहीं होता.
पार्टी अधिवेशन में राजनीतिक, आर्थिक, वैदेशिक आदि सभी मामलों पर प्रस्ताव पारित हुए, आर्थिक प्रस्ताव पर जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता एस.एम. जोशी ने विस्तार से ‘वैकल्पिक व्यवस्था’ की बात बतायी. उनकी निगाहों में यह व्यवस्था गांधी के विचारों पर ही आधारित हो सकती है. लेकिन पार्टी कार्यकर्ता या नेता कितना तन्मय हो कर इसे सुन रहे थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आर्थिक प्रस्ताव पर जब एसएम जोशी व हेगड़े के भाषण खत्म हुए, भीड़ उठ कर चल दी.