-हरिवंश-
उन्हें मालूम है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत के औद्योगिक नक्शे पर जो राज्य काफी अग्रणी था. अब वह सबसे अधिक पिछड़ गया है. यहां प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है. प्रति एकड़ औसत कृषि उत्पादन देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले काफी कम है. यद्यपि उद्योग-धंधे नहीं हैं, लेकिन बिहार में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है. केंद्र सरकार की विकास कार्यों से जुड़ी एजेंसियां कृषि, उद्योग आदि के विकास के लिए भरपूर मदद दे सकती है.
बिहार में सर्वाधिक सस्ता श्रम और प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, इस कारण बाहरी पूंजीपति बाकी कठिनाइयों को नजरअंदाज कर यहां उद्योग लगाते हैं. कुछ ऐसे भी पूंजीपति हैं, जो दिल्ली या कलकत्ता में बैठ कर बिहार में उद्योग लगाने के नाम पर वित्तीय संस्थाओं से अरबों रुपये का ऋण ले चुके हैं. चूंकि बिहार उद्योग की दृष्टि से पिछड़ा है, इसिलए केंद्र सरकार वहां उद्योग लगाने के लिए जो रियायतें देती हैं, उसका लाभ दिल्ली, कलकत्ता और बंबई के पूंजीपति उठाते हैं. अगर बिहार की सरकार यह वित्तीय अनुशासन लाने और बिहार के नाम पर सरकारी वित्तीय संस्थाओं से लिये गये ऋणों को बिहार में ही निवेश कराने में सफल होती है, तो औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में बिहार का कायापलट हो जायेगा. छोटानागपुर या उत्तर बिहार के मजदूर पंजाब या दूसरे राज्यों में जाने के लिए विवश नहीं होंगे.
इसके बाद उन्होंने जिलेवार विकास की योजनाएं बनवायीं. रोहतास में मजदूरों-पिछड़ों को सहकारी संस्था बनवा कर ईंट-भट्ठे के लिए ऋण दिया. कपड़े की बुनाई के लिए मजदूरों-पिछड़ों को सहकारी संस्था बना कर उन्हें ऋण दिया. पलामू के ताराचंडी में बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के बाद उनके लिए सहकारी संस्था बनवा कर उन्हें ऋण दिया. उनका कहना है कि इन जिलेवार योजनाओं से लाखों मजदूरों के जीवन में कायापलट हो गया है. इन क्षेत्रों से प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दूसरे राज्यों में जानेवाले मजदूर अब यहीं रह कर काम करते हैं. श्री गो का मानना है कि इन विकास कार्यों का प्रभाव इन मजदूरों की अगली पीढ़ी पर परिलक्षित होगा.
इसी तरह मधुबनी जिले के विकास के लिए राज्य सरकार के सहयोग से उन्होंने अलग योजना बनायी है. मधुबनी में पैदा होनवाला मखाना लगभग 20 रुपये प्रति किलो बिकता है और दिल्ली, पंजाब में 60-80 रुपये प्रति किलो. ‘यह देख कर हमने इस जिले के विकास के लिए गरीब उत्पादकों की सहकारी समितियां बनवायीं और राज्य सरकार से संपर्क कर उन्हें ऋण दिया,’ वह कहते हैं. उल्लेखनीय है कि इस जिले से सर्वाधिक मजदूर प्रतिवर्ष पंजाब या दूसरे राज्यों में जाते हैं. पंजाब नेशनल बैंक के ऐसे कार्यों से वहां भी बाहर जानेवाले मजदूरों की संख्या में कमी आयी है.