-हरिवंश-
गांव समिति ने सार्वजनिक रूप से दोषी व्यक्ति को प्रताड़ित करने के लिए शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक दंड तय किया. शारीरिक दंड के तहत दोषी व्यक्ति को पइन (कांटेदार पत्ता) के ऊपर नंगा लेटने को कहा गया. सामाजिक दंड के तहत तय हुआ कि लोग उस पर थूकेंगे और वह चाटेगा. तदोपरांत बाल मुंडवा कर घुमाया जायेगा. आर्थिक दंड के रूप में उसे गांव के एक गरीब हरिजन की बेटी की शादी का खर्च वहन करने को कहा गया.
एक रोचक तथ्य है कि जहानाबाद इलाके में भूमि हदबंदी के बहुत कम मामले हैं. कुछ उच्च न्यायालय में लंबित हैं. गैरमजरुआ जमीन पर विवाद से संबंधित बहुत मामले नहीं है. लेकिन पुलिस, जिला नागरिक प्रशासन पर दोषारोपण कर अपना काम खत्म मान लेती है.
पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी यह कहते हैं कि जिला नागरिक प्रशासन की चूकों के कारण भूमि बंटवारे जैसे अहम मुद्दों पर कारगर कार्रवाई न होने से ही यह स्थिति बनी है. लेकिन जिला प्रशासन के कुछ समझदार अधिकारी मानते हैं कि सामंतवादी रुझान के खिलाफ यह मानवीय चीत्कार है. मानवीय गरिमा की लड़ाई है. आज प्रशासन के पास उन हरिजनों-पिछड़ों की लिखित शिकायत पहुंचती है कि अमुक गांव के अमुक द्विज व्यक्ति या सामंत या बड़े किसान ने मुझसे ठीक से बात नहीं की. साथ में नहीं बैठाया. समानता का व्यवहार नहीं किया. छुआछूत बरती. वस्तुत: पिछले हजारों वर्षों से जिन जुबानों में ताले लटका दिये गये थे, अब सामाजिक चेतना की लहर ने उन्हें एकाएक खोल दिया है.
लेकिन इस अंचल में सामाजिक चेतना की लहर किसने पैदा की? गांवों में जिन समिति ने प्रशासन को अप्रासंगिक बना दिया है, वे कौन हैं? किन लोगों की हुकूमत इधर कारगर है? पुलिस खुद आतंकित क्यों है? प्रशासन इस चुनौती से निबटने में कारगर साबित क्यों नहीं हुआ? केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय, योजना आयोग के डॉ मनमोहन सिंह व ग्रामीण विकास के सचिव विनोद पांडेय के नेतृत्व में आयी समितियां भी इस इलाके के संघर्ष के बारे में कुछ खास नहीं बता सकीं.
इन सवालों के जवाब या इनके बारे में पूर्ण जानकारी पटना या स्थानीय प्रशासन को पूरी तरह नहीं है. इस अंचल में बिहार राज्य किसान सभा का भी प्रभाव है. यह इंडियन पीपुल्स फ्रंट से जुड़ा संगठन है. उपलब्ध जानकारियों के अनुसार विनोद मिश्र का गुट ‘लिबरेशन ग्रुप’ इसे भूमिगत रह कर हरसंभव संरक्षण-सहायता देता है. सटे औरंगाबाद-गया में माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर का दबदबा है. हाल ही में प्राप्त सूचना के अनुसार माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) और पीपुल्स वार ग्रुप (आंध्रप्रदेश) के बीच समझौता हुआ है. पीपुल्स वार ग्रुप के नेतृत्व ने एमसीसी को तीन माह का समय दिया है.
आगामी तीन माहों में एमसीसी को अपना सांगठनिक स्वरूप-ढर्रा पीपुल्स वार ग्रुप की तरह विकसित करना है. वही तौर-तरीके-कार्यशैली अपनायी है. इस मापदंड पर खरा उतरने पर ही अंतिम रूप से विलय का निर्णय होगा. प्रशासन की जानकारी के अनुसार एमसीसी भी जहानाबाद में पांव पसार रहा है. एमसीसी और लिबरेशन ग्रुप, पूरी तरह भूमिगत संगठन है. इनके नेताओं के बारे में पुलिस को कुछ अता-पता नहीं है.
लेकिन इस पूरे अंचल में और खास तौर से जहानाबाद में जो संगठन सबसे लोकप्रिय व मजबूत है, वह है मजदूर किसान संग्राम समिति, (एमकेएसएस), जिसके अध्यक्ष डॉ. विनयन हैं. फिलहाल इस जनसंगठन पर प्रतिबंध लगा हुआ है. पहले इस संगठन का पार्टी यूनिटी (भूमिगत रह कर काम करनेवाला क्रांतिकारी संगठन – अरविंद गुट) से तालमेल था. जहां अति आवश्यक होता था, वहां एमकेएसएस की ओर से पार्टी यूनिटी के हथियारबंद दस्ते कार्रवाई करते थे. वस्तुत: डॉ. विनयन की लोकप्रियता और प्रतिबद्धता का लाभ उठाने के लिए पार्टी यूनिटी ने हरसंभव कोशिश की.
माकपा (एमएल) के 27 छोटे-मोटे संगठन-उपसंगठन मध्य बिहार में कार्यरत हैं. इनमें से एक संगठन है, पार्टी यूनिटी. वामपंथी अतिवादी के शिकार इस संगठन के कुछ नेताओं में जब आत्मपरीक्षण की बात उठी, तब तय हुआ कि किसी जनसंगठन से जुड़ कर काम करने में लाभ मिलेगा. इस अंचल में सामंतवाद के खिलाफ सबसे सक्रिय और खुली लड़ाई डॉ. विनयन के नेतृत्व में एमकेएसएस चला रहा था. पार्टी यूनिटी ने इस व्यापक जनसंगठन को देखते हुए इनसे मिल कर काम करने का स्वांग दिखाया. इसी कारण आज पूरे देश, बिहार के प्रशासन, पुलिस व लोगों के दिमाग में यह बात पैठ गयी है कि मजदूर किसान संग्राम समिति एक खूंखार नक्सली संगठन है, जो ‘सफाया आंदोलन’ चला रही है. स्थानीय पुलिस तो इसे ही ‘मुड़ी कटवा’ (इस इलाके में छह इंच छोटा करने यानी सिर कलम कर लेने की घटनाएं) और असली नक्सली संगठन मानती है.
हकीकत यह है कि मजदूर किसान संग्राम समिति बेवजह हिंसा में विश्वास नहीं करती. इनकी बैठक, कामकाज और तौर-तरीके सभी एक खुले संगठन की तरह हैं. प्रतिबंध के बावजूद इस वर्ष मई दिवस के अवसर पर इस संगठन ने एक से दस मई तक पिंजौरा, बड़की बमनपुरा, माया बोधा, मंझौस, सलारपुर, खनैटा, टेहटा, सद्दोपुर, उत्तर सिरथु, दौलतपुर में सार्वजनिक सभाएं कीं. इन सभाओं को कई जगह खुद डॉ. विनयन ने संबोधित किया. उनकी गिरफ्तारी पर एक लाख रुपये का इनाम भी है. लेकिन एमकेएसएस की ही सभा में पहुंच कर मंच तोड़ने, कार्यकर्ताओं को परेशान करनेवाली पुलिस डॉ. विनयन को पकड़ नहीं सकी.
बहरहाल, इस पूरे इलाके के गरीबों-मजलूमों का जो स्नेह-सम्मान डॉ. विनयन को प्राप्त है. उसे देख कर यह नामुमकिन लगता है कि पुलिस उन्हें पकड़ पायेगी. जहानाबाद के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो कबूल किया कि डॉ. विनयन की गिरफ्तारी करने से खुद पुलिस कतरा रही है. एमकेएसएस के जंग बहादुर सिंह और विसुनदेव सिंह पर भी पचास-पचास हजार रुपये के इनाम हैं, लेकिन दोनों खुली सभाओं में भाग लेते हैं. हाल ही इन सभाओं में बड़े पैमाने पर महिलाओं ने शिरकत की. इस संगठन ने इन सभाओं की घोषणा काफी पहले अखबारों में की व परचे छाप कर वितरित कराये.
लेकिन पुलिस की निगाह में एमसीसी, लिबरेशन ग्रुप, पार्टी यूनिटी और एमकेएसएस में खास अंतर नहीं है. लेकिन डॉ. विनयन के शब्दों में, ‘पार्टी यूनिटी और संग्राम समिति शुरू से ही बुनियादी तौर पर दो अलग-अलग संगठन हैं. कामकाज, तौर-तरीके व कार्यशैली में भी पार्टी यूनिटी पुराने नक्सली आंदोलन से निकला एक संगठन है. उसके सभी नेता पुराने नक्सली हैं. वह गुप्त संगठन है. वह दुश्मनों से ही नहीं, दोस्तों से भी गुप्त है. पार्टी यूनिटी के सचिव आदि कौन हैं, वह एमकेएसएस आदि को भी नहीं बताया गया. उनके पास हथियारबंद दस्ते हैं. इसके ठीक विपरीत एमकेएसएस खुला जनसंगठन है. यह बिहार स्तरीय संगठन है. इसके सभी नेता कार्यकर्ता बिहार के हैं. संग्राम समिति के पास कभी भी हथियारबंद दस्ते नहीं रहे.’
दोनों संगठनों में तालमेल के वस्तुत: दो आधार थे. माकपा (पार्टी यूनिटी ग्रुप एमएल) अपने अतीत के आत्ममंथन-आत्म आलोचना के दौर से गुजर रही थी. विचार मंथन के दौरान उन्होंने ‘सफाया’ की लाइन का विरोध किया. उसी दौरान एमकेएसएस न्यूनतम मजदूरी के सवाल पर जन आंदोलन खड़ा कर रहा था. चुकता हुआ सामंतवाद खूंखार और हिंसक होता है, यह विनयन को पता था. इसलिए रणनीति के तौर पर उन्होंने सुरक्षा के ठोस व मुकम्मल बंदोबस्त के उपाय की बात सोची. इसी मजबूरी के तहत दोनों संगठन साथ आये.
लेकिन कुछ ही दिनों बाद एमकेएसएस को पता चला कि पार्टी यूनिटी के हथियारबंद दस्ते स्वतंत्र कार्रवाई करते हैं. पार्टी यूनिटी के स्वतंत्र कामों से दोनों गुटों में वैचारिक मतभेद उभरे, तो इसे सुलझाने के लिए एक समिति बनी, लेकिन पार्टी यूनिटी का मकसद अपनी जड़ें जमाना था, इसलिए वे लोग अपना काम करते रहे. बदनामी या आरोप एमकेएसएस पर लगते रहे. दर्जनों हत्याएं, हथियार छीनने की घटनाएं एमकेएसएस की जानकारी में नहीं हुईं. पार्टी यूनिटी हिंसा करती थी, तो उग्र होकर दूसरे लोग एमकेएसएस के लोगों को मारते थे.
13 मार्च ’87 को औरंगाबाद के तेतरिया मोड़ गांव में जब एक भूमिहीन की अवैध भूमि को मुक्त कराने के लिए संग्राम समिति ‘फसल जब्ती’ कार्यक्रम चला रही थी, तो पार्टी यूनिटी के हथियारबंद दस्ते ने उक्त भू-स्वामी के 10 वर्ष के एक बच्चे का अपहरण कर लिया. अपहरण के बाद भू-स्वामी से 10 हजार रुपये और एक राइफल की मांग की गयी. इसमें रघुराज सिंह, भुनेश्वर सिंह और 60 वर्ष के बुजुर्ग व सेवामुक्त प्रधानाध्यापक यमुना सिंह फंसाये गये. पार्टी यूनिटी के लोग पुलिस की वरदी में रहते हैं, जोर-जुल्म करते हैं, लेकिन उनके बारे में कुछ पता नहीं होने के कारण किसान संग्राम समिति ही प्रशासन या सामंतों की प्रताड़ना-हिंसा या जोर-जुल्म का शिकार होती है.
डॉ. विनयन को जब इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने तत्काल बैठक कर इस घटना की भर्त्सना की और बिना शर्त बच्चे को रिहा करने के लिए प्रस्ताव पारित हुआ, संग्राम समिति की सर्वोच्च समिति ने भी निंदा प्रस्ताव पास कर पार्टी यूनिटी से कहा कि वह खुद परचा बांट कर इस घटना की जिम्मेदारी ले. ऐसे अपराधों के कारण दोनों संगठनों की दूरी बढ़ती गयी. अंतत: 20 जून ’87 को डॉ. विनयन ने घोषणा की कि पार्टी यूनिटी और किसान संग्राम समिति ने अपने संबंध तोड़ लिये हैं. इससे पार्टी यूनिटी के लोग डॉ. विनयन और एमकेएसएस से खफा हो गये. डॉ. विनयन को भी खत्म करने की धमकी दी गयी. समिति के कट्टर नौजवान सदस्य महेश को तीन बार पार्टी यूनिटी के लोगों ने लखीसराय, अलीगंज व पिंजौरा में पकड़ा. घड़ी छीनी, पैसे ले लिये. हर बार महेश की गिरफ्तारी की सूचना समिति के लोगों को समय से मिल गयी. भारी तादाद में महिलाओं ने पार्टी यूनिटी के अपहरणकर्ताओं को धर दबोचा और महेश को छुड़ा लिया. वस्तुत: पार्टी यूनिटी के लिए किसान संग्राम समिति एक ‘नकाब’ था.
मजदूर किसान संग्राम समिति गांव में बढ़ती चोरी, अपराध, डकैती, शराबखोरी के खिलाफ सशक्त अभियान चला रही है. इस प्रयास में समिति को अभूतपूर्व सफलता मिली है. समिति के ऐसे कामों से इस संगठन के प्रति लोगों की आस्था और मजबूत हुई है. चंद दिनों पूर्व ही काको प्रखंड के नेचुआ गांव में एक मोची की लड़की से एक पासवान के लड़के ने बलात्कार किया. मजदूर किसान संग्राम समिति की जन अदालत ने फैसला किया कि दोषी को माथा मुंडवा कर और अंधेरी रात में उसके गले में लालटेन लटका कर घुमाया जाये.
दूसरी ओर इस अंचल में सक्रिय लिबरेशन ग्रुप, पार्टी यूनिटी और एमसीसी हैं. इन तीनों के लिए हथियारबंद कार्रवाई ही मुख्य का कारगर रणनीति है. मार-काट इनका पेशा है. अंतत: बंदूक के बल अपराधियों के हाथ में सत्ता सिमट रही है. जनता पीछे छूट रही है. हत्यारे दस्ते प्रमुख बन गये हैं. अब तो हालात यह है कि इन लोगों में आपस में ही स्पर्द्धा-मार-काट आरंभ हो गयी है. ये लोग गांवों को मुक्त (लिबरेशन) करा रहे हैं. लिबरेशन गुट अगर किसी भू-स्वामी पर आरोप लगाता है, तो पार्टी यूनिटी उसे संरक्षण दे देता है. बेला-बिर्रा में इन्हीं दोनों गुटों की लड़ाई में पार्टी यूनिटी का राजदेव पासवान मारा गया. मुठेर में भी एक घटना हुई. वहां के भू-स्वामी रामानंद सिंह पर पार्टी यूनिटी ने आरोप लगाया कि पहले वह भूमि सेना के समर्थक थे. इस कारण वह पार्टी यूनिटी को एक राइफल दें. लिबरेशन गुट ने उन्हें अपनी जमात में शामिल कर लिया. दोनों गुटों में मुठभेड़ हुई. उनका घर-सामान लूटा गया. इसी तरह धुरिया ब्लॉक में रामाशीष शर्मा की हत्या पार्टी यूनिटी ने की. वह लिबरेशन गुट के संरक्षण में थे.
काको ब्लॉक के खालिसपुर की घटना दोनों के बीच खूनी मुठभेड़ का सबसे ताजा प्रमाण है. सादोपुर गांव में एमसीसी वालों ने अभियान चला रखा है कि लोग ताड़ी नहीं पीयेंगे. दर्जनों गांवों में यह आंदोलन चल रहा है. अब लिबरेशन गुट का दस्ता वहां जाकर लोगों से ताड़ी पीने के लिए कह रहा है. दोनों के अपने तर्क हैं. दोनों हथियारबंद दस्तों के बीच आम आदमी का जीवन दूभर बनता जा रहा है. प्रशासन या पुलिस का तो सुदूर गांवों में नामोनिशान तक नहीं है. अब बड़े भू-स्वामियों ने इन हत्यारी दस्तों का संरक्षण ले लिया है. माहवारी रकम दे कर इन नक्सली (हत्यारे) गुटों से भू-स्वामी संरक्षण और मदद पा रहे हैं. मध्य बिहार में नक्सलवाद की अंतिम परिणति अपराधी गिरोह कायम कर टैक्स वसूलने तक ही रह गयी है. इस गांव में एक गुट कहता है कि ताड़ी से नुकसान होता है, तो दूसरा कहता है कि यह गरीबों का मुख्य धंधा है. इसी तरह जानकी कुंज गांव में दोनों गुटों की आपसी लड़ाई में एक आदमी मारा गया. अब इन हथियारबंद दस्तों का मुख्य काम मात्र अपना प्रभाव या आतंक पैदा करना है.
इन संगठनों के विपरीत एमकेएसएस खुले तौर पर काम करता है. मजदूरों-किसानों में एका कर निरर्थक हिंसा का विरोध करता है. मध्य बिहार को अगर हथियारबंद दस्तों की खूनी लड़ाई से बचाना है, तो तत्काल मजदूर किसान संग्राम समिति से प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए, जिन तथ्यों को नौकरशाह नहीं भांप सके, इसे बिहार के मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने कम समय में ही समझ लिया है. इस कारण जब उन्होंने नक्सली नेताओं से बातचीत करने की बात कही, तो खुले दिमाग के लोगों ने इस कदम का स्वागत किया. विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार डॉ. विनयन और मुख्यमंत्री के बीच बातचीत हो चुकी है और भविष्य में पुन: होनेवाली है. मध्य बिहार को खून-खराबी से बचाने का यह सर्वोच्च विकल्प है.
इस अंचल का ‘लीड बैंक’ पंजाब नेशनल बैंक है. इस बैंक के महाप्रबंधक नारायणन गो के मुताबिक जो गरीब-गुरबा इस अंचल में आइआरडीपी के अंतर्गत ऋ ण लेते हैं, वे समय से ऋ ण लौटाते हैं. इस इलाके में वसूली 60 फीसदी हो रही है. जो एक आश्चर्यजनक तथ्य है. पटना के गांव भी इस समस्या का गंभीर रूप से आक्रांत हैं. इस इलाके में सांसद और बिहार के चंद समझदार नेताओं में से एक डॉ सीपी ठाकुर बताते हैं कि योजनागत विकास के फल नहीं मिलने से लोगों में निराशा फैली. श्री ठाकुर ने कुछ वर्षों पूर्व पटना में एक सेमिनार आयोजित किया था, जिसमें अनेक युवा नक्सली नेता शामिल हुए थे. उन्होंने बातचीत में डॉ ठाकुर से स्वीकार किया कि काम न मिलने से निराश होकर वे नक्सली हो गये हैं. श्री ठाकुर एक बार एक मुक्त गांव ‘सलेमपुर’ में पैदल चल कर गये, तो वहां पाया कि काफी औरतें बैठक में आयीं और प्रशासनिक भूलों के बारे में तीखे सवाल किये.
मार्च के अंतिम सप्ताह में एक दिन रामजी अपने समर्थकों के साथ जहानाबाद गया. दिन-दहाड़े चौराहे पर जिला कार्यालय से 100 फर्लांग की दूरी पर उसकी हत्या कर दी गयी. हत्यारों ने पत्थर-लाठी व ईंटों से कुचल कर उसका सिर क्षत-विक्षत कर दिया. लोग देखते रहे और हत्यारे आराम से फरार हो गये. इसके बाद गांव से दोनों गुटों के लोग अपने-अपने घरों में भाग गये.
इस गांव में तैनात पुलिस टुकड़ी के अधिकारी ने बताया कि रात में वे लोग गांवों में जाने से कतराते हैं, क्योंकि कभी-कभार दोनों गुटों के लोग टोह लेते हुए गांव में आते हैं. साबका होते ही गोली चलने लगती है. गांव के बाहर पुलिसवाले चौकन्ने रहते हैं कि उन पर कोई हमला न कर दे. गोली की आवाज सुन कर भी वे गांव में नहीं जाते.
इसी गांव के बाहर संयोग से भुनेश्वर देवी से मुलाकात हुई, वह इसी गांव की रहनेवाली हैं. बताती हैं, आज से तीन-चार वर्षों पूर्व यहां आपस में झंझट या फसाद नहीं था. यह लड़ाई इसलिए हो रही है कि लिबरेशन गुट चाहता है कि पूरा गांव उनका समर्थक हो जाये, पर पार्टी यूनिटी के समर्थक इसके लिए तैयार नहीं हैं. वह कहती हैं कि मेरे बेटे दीना को बराबर मारने की धमकी मिल रही है. लिबरेशन गुट के लोग कहते हैं कि जो उनके समर्थक नहीं हैं, ‘उन सब कर मुड़ी छोप ले तई’ (यानी उनका गला उतार लिया जायेगा.) इसके बाद से पूरे गांव में ही आतंक और श्मशान-सी खामोशी छा गयी है.
पार्टी यूनिटी के बारे में पुलिस या प्रशासन के पास जानकारी नहीं है. लेकिन विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार देव कुमार उर्फ अरविंद उर्फ विकास पार्टी यूनिटी की केंद्रीय टुकड़ी का संचालक है. वह सुकुलचक का रहनेवाला है. इसमें सिकरिया या महेंद्र भी शामिल है, जिसका असली नाम सतेंद्र है. नन्हें नामक एक मुसलमान नौजवान भी है. ये लोग नौ, आठ, छह या 12 की टुकड़ियों में रहते हैं. 15 या 20 पुलिस की राइफलें इनके पास है. तकरीबन 60 दोनाली बंदूके हैं. 7 राउंड वाली 50 या 60 राइफले हैं. दो स्टेनगन हैं और असीमित देसी राइफल व पिस्तौल हैं. इन लोगों ने खरी मोड़, सिकिरया व पाइबीघा में पुलिस कैंपों को लूट कर हथियार हथियाये. कुछ बाहर से आये बंगाली सज्जन इन्हें प्रशिक्षित करते हैं. कानपुर, रामगढ़ व रांची से इनको गोलियों की निरंतर आपूर्ति होती है. हाल ही में पार्टी यूनिटी के नेता एक कार में भर कर रांची से कारतूस लाये हैं. अपहरण और अपराध के द्वारा भी ये लोग फिरौती राशि वसूलते हैं.
कुछ ही दिनों पूर्व मोकर दौलतपुर के बाल्मीकि शर्मा को पार्टी यूनिटी ने अगवा कर लिया. महेंद्र व देवकुमार इस टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे. इन लोगों ने एक लाख रुपया, एक राइफल और कारतूस लेकर उन्हें छोड़ा, अब गांवों में मवेशी चोरी जाते हैं, तो कथित क्रांतिकारी फिरौती ले कर उन्हें मुक्त कराते हैं. सेवनन गांव से पिछले माह चार भैंसें चुरा ली गयीं. अब कथित नक्सली भैंस मालिकों को कह रहे हैं कि पनहा दीजिए, तो भैंस का पता लगा देंगे. विश्वनाथ सिंह दौलतपुर के बस मालिक हैं. वह हाल में अपनी लड़की की शादी तय करने जा रहे थे. उनका अपहरण कर लिया गया. 90 हजार रुपये लेकर उन्हें मुक्त किया गया.
सेवनन गांव के सिद्दी सिंह को गांव के बदमाशों ने शाम 7 बजे ही मार डाला. मारनेवालों ने स्वयं को नक्सली बताया. कहा कि नक्सली संगठनों से उनकी पुरानी अदावत थी. इसलिए वर्ग शत्रु को खत्म कर दिया गया. अब उनका एक लड़का किसी तरह नौकरी कर परिवार का गुजारा कर रहा है. दूसरा (14 वर्ष) डर से गांव छोड़ कर दिल्ली भाग गया है.
तथ्य यह है कि अपराधी, नक्सलवाद की छतरी लगा कर अपना स्वार्थ पूरा कर रहे हैं. चूंकि पुलिस-प्रशासन लोगों को सुरक्षा नहीं दे सकते. अत: हर आदमी अब किसी न किसी गिरोह से संरक्षण पाने के लिए लालायित है. पिछले दिनों सेवनन के ही राजेश्वर सिंह और हरिहर सिंह को अपराधी नक्सली उठा ले गये. एक खेत में पकड़ कर बैठाये रखा. घर पर फिरौती की खबर भेजी, हरिहर सिंह के परिवार से राइफल व राजेश्वर सिंह के परिवार से बंदूक भेजी गयी, तब जा कर इनकी मुक्ति हुई.
अब खालिसपुर या इन आपराधिक वारदातों की तोहमत पुलिस मजदूर किसान संग्राम समिति पर थोप रही है. सही सूचना के अभाव के कारण ऐसा है. पार्टी यूनिटी सेंटर ने तो बाकायदा प्रस्ताव पास कर डॉ. विनयन और जंग बहादुर गुट को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने का संकल्प किया है. अपने पोस्टरों में पार्टी यूनिटी सेंटर ने ऐसा छपवाया भी था. फिर भी दोनों के एक होने की बात पुलिस प्रचार करती है.
अपनी इस मनोवृत्ति के कारण पुलिस सबसे अधिक मजदूर किसान संग्राम समिति के लोगों को परेशान कर रही है. हाल ही में एमकेएसएस के प्रमुख नेताओं बिंदेश्वरी प्रसाद निराला, प्रभा कुमारी और हरि यादव को पुलिस ने काफी तंग किया. 19 अप्रैल को एमकेएसएस ने काफी पहले घोषणा कर के अरवल दिवस का आयोजन किया. इस अवसर पर समिति के लोग पकड़े गये. 21 अप्रैल को इनकी जमानत का आदेश हुआ. 22 को रिलीज आदेश दे दिया गया. इन्हें गया जेल में बंद किया गया था. गया, जहानाबाद की दूरी मुश्किल से 45 किमी है, लेकिन रिलीज ऑर्डर जारी होने के 14 दिनों बाद 6 मई को इन्हें छोड़ा गया.