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अमेरिका में कैदी बढ़ रहे हैं

-हरिवंश- 28 सिंतबर को हमारा दिन शुरू होता है, सुबह 8.15 से ही पहली मुलाकात है, अमेरिकन सिविल प्लबर्टीज यूनियन के फील्ड डायरेक्टर जेन गुरेरो से. फिर ओहियो से जीते कांग्रेस प्रतिनिधि टानी पी हाल के प्रमुख सहायक रिक कार्ने और उनके विधायिका सहायक वाब जेरिच से. इसके बाद अमेरिकी संसदीय समिति की कार्यवाही देखना […]

-हरिवंश-

28 सिंतबर को हमारा दिन शुरू होता है, सुबह 8.15 से ही पहली मुलाकात है, अमेरिकन सिविल प्लबर्टीज यूनियन के फील्ड डायरेक्टर जेन गुरेरो से. फिर ओहियो से जीते कांग्रेस प्रतिनिधि टानी पी हाल के प्रमुख सहायक रिक कार्ने और उनके विधायिका सहायक वाब जेरिच से. इसके बाद अमेरिकी संसदीय समिति की कार्यवाही देखना और मानवाधिकार के लिए वकीलों की समिति के वाशिंगटन कार्यालय के निदेशक जोसेफ एलरिज से मुलाकात.
जेन गंरेरो बताते हैं कि उनकी संस्था 1920 से ही कार्यरत है. वह अमेरिका में मानवाधिकारों के उल्लघंन और अंदरूनी समस्या का ब्योरा देते हैं. पूरे देश में ‘क्राइम बिल’ (अपराध-नियंत्रण के लिए कानून) पर चल रही बहस का उल्लेख करते हैं. बढ़ते अपराध से अमेरिकी चिंतित और बेचैन हैं. क्लिंटन के ‘क्राइम बिल’ के बारे में आलोचक कहते हैं कि यह चुनावी स्टेट हैं. नवंबर में प्रतिनिधियों के चुनाव हैं. अमेरिका में बढ़ते अपराधों का ब्योरा यहां मिलता है. अन्य औद्योगिक देशों के मुकाबले अमेरिका में तीन से दस गुना अधिक अपराध हो रहे हैं. 1943 में न्ययार्क शहर में बंदूक से 44 हत्याएं हुई थीं.

1992 में एक छोटे शहर में यह संख्या बढ़ कर 1499 हो गयी. आकलन है कि कक्षा सात में पढ़नेवाले एक विद्यार्थी को अपने जीवन में हिंसक अपराध झेलने की 80 फीसदी संभावना है. आधे से अधिक अपराध के शिकार वे लोग है, जिनकी आय 15 हजार डॉलर से कम है.1980 के दशक में अमेरिका के वयस्क जनसंख्या में 13 फीसदी वृद्धि हुई, लेकिन अपराधियों की संख्या में 139 फीसदी. इसका एक मुख्य कारण था अमेरिका द्वारा ‘ड्रग के खिलाफ युद्ध’ (वार आन ड्रग) की नीति पर सख्त अमल. कोकीन, हेरोइन, मारीजुआना खानेबेचने-रखने वाले धड़ाधड़ बंद होने लगे. 1992-93 में अमेरिकी जेलों में बंद लोगों का व्यापक सर्वे-अध्ययन किया गया. इसके निष्कर्ष दिलचस्प हैं.

1. रूस ने जेलों में बंद लोगों के संदर्भ में अब अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. प्रत्येक एक लाख में 558 लोग वहां जेलों में है.
2. अमेरिका में लगभग एक करोड़ 30 लाख बंदी हैं. प्रत्येक एक लाख में से 519 बंदी हैं. 1989 के बाद इस संख्या में 22 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है
3. रंगभेद के आधार पर किये गये सर्वे का परिणाम है कि अफ्रीकी-अमेरिकन, गोरे लोगों की अपेक्षा छह गुना अधिक जेलों में हैं. प्रत्येक एक लाख काले लोगों में से 1947 जेलों में हैं. जबकि प्रति एक लाख में 306 गोरे जेलों में हैं.
4. जेलों पर अमेरिका का खर्च 26.8 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष है. काले बंदी लोगों पर यह खर्च 11.6 बिलियन डॉलर है.
5. काले पुरूष लोगों की अमेरिकी जेलों में संख्या है कुल 5,83,000, जबकि उच्च शिक्षा क्षेत्र में काले पुरूष विद्यार्थियों की पंजीकृत संख्या है, 5,37,000.
दुनिया के सबसे संपन्न देश में प्रति एक लाख में सबसे अधिक लोग जेलों में हैं. यह अमेरिका के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है. पर अमेरिकी अमेरिकी नागरिकों-सचेत लोगों और राष्ट्र के प्रति समर्पित लोगों के बीच यह बेचैनी का मुद्दा है. रास्ता तलाशने की बेचैनी है. यह अमेरिका के बेहतर भविष्य की सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण पूंजी है.कांग्रेस प्रतिनिधि टानी पी हाल के प्रतिनिधियों से दिलचस्प बातचीत होती है. अंतरराष्ट्रीय से लेकर घरेलू मुद्दों के उन पहलुओं को ये लोग बताते हैं, जो अमेरिका में चिंता-बहस और कार्यक्रम की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं कि हम सारी कमियों को दूर कर लेंगे.

आत्मविश्वास के साथ पाल केनेडी की चर्चित पुस्तक ‘द राइज एंड फाल ऑफ ग्रेट पावर्स’ में अमेरिका के भविष्य को लेकर व्यक्त चिंता के संदर्भ में उत्तर देते हैं, हम सपने पालते हैं और हमारे सपने यही हैं कि विश्व का अगुआ अमेरिका भविष्य में भी वैसा ही बना रहे, जैसा अब है. जोर देकर दुहराते हैं कि यह बनी रहेगी. नाम चास्की द्वारा अमेरिका को ‘मिलिट्री कांप्लेक्स इंस्टीट्यूशन्स’ मुहावरे के संदर्भ में या चीन को व्यपार की दृष्टि से अति निम्न वर्ग (मोस्ट फेवर्ड नेशन) देशों में रखने या इराक पर हमले या हैती या वियतनाम के संदर्भ में अमेरिका की कटु आलोचना का भी धैर्य, संयम और प्रखरता से उत्तर देते हैं. आम अमेरिकी लोगों का कटु आलोचना की स्थिति में भी आत्म संयम, धैर्य उल्लेखनीय है.

वहीं कांग्रेस समिति की बैठक है. इसमें ‘कांग्रेस ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स’, ‘हाऊस ऑफ रिप्रजेटेटिव’, ‘कमिटी आन फॉरेन एफेयर्स’, ‘सब कमिटी ऑन अफ्रीका’ के सदस्य मौजूद हैं. सुननेवाले लोग हैं. हम भी प्रवेश करते हैं. समिति के अध्यक्ष बैठने का संकेत करते हैं. शांति पूर्वक कार्रवाई चलती है. सरकार के विदेश विभाग के प्रमुख लोग हैं. कटु से कटु सवाल होते हैं, आत्मीय माहौल में. भारत में संसद या विधानमंडलों की समितियों की बैठक खानापूर्ति भर रह गयी है.

कोई सामान्य नागरिक प्रवेश नहीं कर सकता. अगर किसी गोपनीय मसले या राष्ट्र सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत होती है, तो आगंतुकों-अतिथियों से उतने समय के लिए बाहर रहने की गुजारिश होती है. अमेरिकी संसद में अति मामूली सुरक्षा है. संस्थान जन प्रतिनिधियों का मंच है, यह लगता है. चौकस पहरेदार हैं, पर वैसा रोक-टोक निगरानी नहीं है, जैसा भारत में है. भारत में कलक्टर, एसपी या एसडीओ से मिलना-प्रवेश करना कठिन है, पर अमेरिका के ‘कैपिटल’, ‘व्हाइट हाउस’, ‘संसद’ में प्रवेश करना-घूमना-मिलना-बहस करना आसान है.

दिन की अंतिम मुलाकात है, मानवाधिकारों के लिए वकीलों की समिति के वाशिंगटन डायरेक्टर जोसेफ एलरिज से. पहले वह क्षमा मांगते है. कि भारत के बारे में उनकी जानकारी कम है. पर ऐसा है, नहीं यह अदब और विनम्रता का संकेत है, फिर भारत के बारे में जानना चाहते हैं. कहते हैं कि आज पूरी दुनिया कश्मीर मुद्दे से चिंतित है. उनकी दृष्टि में पूरी दुनिया को लग रहा है कि कश्मीर में आणविक युद्ध की सबसे अधिक संभावना है. उनकी चिंता पूरे अमेरिका में देखी जा सकती है.

हर मुलाकात-भेंट में कश्मीर का सवाल अवश्य उछलता-उठता है.यहीं पर हमें बहुचर्चित पुस्तक मिलती है ‘ट्रेंडिंग अवे द फ्यूचर’ ‘चाइल्ड लेबर इन इंडियाज एक्सपोर्ट इंडस्टीज’. फेरिस जे हार्वे और लारेन रिगिन ने ‘इंटरनेशनल लेबर राइट्स एडूकेशन एंडरिसर्च फंड’ के तत्वावधान में यह काम किया है. इस पुस्तक को केंद्र बना कर भारत के कालीन उद्योग वगैरह (जहां बच्चे काम करते हैं) पर पाबंदी की मांग चल रही है. निश्चित रूप से यह मानवाधिकार का मामला हैं, पर इसकी तह में भी बहुत कुछ है. कालीन उद्योग वगैरह से भारत काफी विदेशी मुद्रा अर्जित करता रहा है. बड़े पैमाने पर उसका आयात होता है. अगर यह आयात बंद होता है, तो भारत का बड़ा नुकसान होगा.

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