मैं बचपन से अपनी दादी की कहानी में यह सुनती आयी थी कि पिता वो होता है, जो खुद तवे की तरह आग पर तपता है और अपने परिवार का बच्चों का पालन-पोषण करता है. सच्चाई से इसका सामना तब हुआ जब मैं बड़ी होने लगी और अपने पिता को उसी रूप में देखा. मेरे पापा, जिन्होंने कभी अपने सुख-सुविधा की चिंता नहीं की और हमेशा अपने बच्चों और परिवार के बारे में सोचते रहे. हम दो बहन और एक भाई थे, पापा के साथ समय कम ही बितता था, क्योंकि वे अकसर काम के सिलसिल में बाहर रहते थे, लेकिन जब भी आते, तो घर में रौनक आ जाती, हम बच्चों के लिए उनके पसंद की चीजें लेते, हमारे साथ खेलते. लेकिन पिता का प्यार और उसका संरक्षण क्या होता है, यह मैंने तब जाना जब बाहर जाकर पढ़ाई का सोचा.
चूंकि हम संयुक्त परिवार में रहते थे, इसलिए घर में कई लोगों ने विरोध किया. लेकिन उस वक्त पापा मेरे साथ खड़े थे और उनकी एक बात मन में ऐसी घर कर गयी कि आज भी याद करती हूं तो आंसू आ जाते हैं. दादा-दादी के साथ ही पूरा परिवार मेरे बाहर जाकर पढ़ाई करने का विरोध कर रहा था. दादा-दादी तो खैर पुराने जमाने के थे, लेकिन चाचा-चाची और बुआ का विरोध समझ से परे था. मैंने तो आस ही छोड़ दी थी कि मैं दिल्ली जाकर पढ़ाई कर पाऊंगी, लेकिन पापा ने सब के सामने कह दिया, मेरी बेटी जो चाहती है, वो करेगी, उसके कोई सपने नहीं टूटेंगे, मैं अभी जिंदा हूं उसके हर सपने को पूरा करने के लिए पापा के यह कहते ही सबका विरोध शांत हो गया. हालांकि मेरी पढ़ाई के कारण खर्च बढ़ गया और पापा के घर पर रहने का समय और घट गया. मां बताती थी कि अब पापा देर रात घर लौटते हैं.
कभी-कभार फोन पर बात होती तो पापा ज्यादा बात नहीं करते, बस पूछते कैसी हो, खाना खाया, पढ़ाई ठीक चल रही ना? मैं भी बस हां-ना में जवाब देती. पापा से बात कम होती. मेरे और पापा के बीच बातचीत कम होती थी. इसलिए मैं ठीक से नहीं जान पाती थी कि उनकी हमारे लिए फीलिंग क्या है. कई लड़कियां अपने पापा के बारे में खूब बातें करतीं, तब मैं चुप रहती थी, क्योंकि हमारे बीच बातचीत कम होती थी, इसलिए मेरे पास शेयर करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता था. कभी-कभी सोचती ये लड़कियां खुशकिस्मत हैं, जो इन्हें ऐसे पापा मिले, मेरे पापा तो बात ही नहीं करते. लेकिन जिंदगी के एक अहम मोड़ पर मेरे साथ जो हुआ उसके बाद मैं कह सकती हूं कि मेरे पापा जैसे किसी के पापा नहीं हैं और प्यार वो एहसास है जो बोलकर नहीं बतायी जा सकती, इसकी गहराई तो महसूस की जाती है.
हां मुझे आज भी याद है वह लम्हा, जब मेरे प्रेम विवाह को पूरे परिवार ने अस्वीकार कर दिया था, लेकिन पापा मेरे साथ खड़े थे, यह घटना भी कोई अनहोनी नहीं थी, लेकिन उस दिन जब दीपक ने मुझे जिंदगी की राह में अकेले छोड़ दिया और पूरा दिन भटकने के बाद मैंने रात को अपने घर का दरवाजा खटखटाया था. पूरा परिवार मुझे ताने दे रहा था और मैं डर से कांप-कांप कर रो रही थी, तभी मेरे पापा घर लौटे उन्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं पड़ी वो सब समझ गये. मेरे पास आकर बैठे और मुझे सीने से लगा लिया. सबसे कहा, सब शांत रहें और अपने कमरे में जायें, यह मेरी बेटी है, कल भी यह घर इसका था और आज भी है. मैं कोई दिक्कत नहीं तो किसी और को भी इसके यहां रहने से दिक्कत नहीं होनी चाहिए. जिसे ज्यादा दिक्कत हो, वो मुझसे अपना रिश्ता तोड़कर इस घर से जा सकता है. पापा की यह बात सुनकर मेरे आंखों से जो आंसू बह रहे थे, उन्होंने अपना रूप बदले और बेहताशा बहने लगे. आज वेलंटाइन डे के मौके पर यह मैं बताना चाहती हूं कि मेरा और मेरे पापा का प्रेम अद्भुत हैं और मेरे पापा ही मेरे जीवन में प्रेम का साक्षात स्वरूप हैं, यानी मेरे वेलंटाइन हैं. लव यू पापा.
प्रियंका यादव, रांची