बेहतर जीवन जीने और अवसाद मुक्त रहने की तकनीक
सांस जीवन के लिए इतना जरूरी है कि इसके बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है. शरीर और मन के कामकाज के लिए भी इसका काफी महत्व है.
चीन के ताओ और हिंदू धर्म ने शरीर के अंदर प्रवेश करने वाली वायु को एक प्रकार की ऊर्जा का माध्यम बताया, और श्वसन को इसकी अभिव्यक्तियों में से एक के रूप में देखा. भारत में हम इस क्रिया को अनुलोम विलोम कहते हैं,जो सदियों से यहां प्रचलित है. अब योग की इस विधा को विदेशों में कार्डियक ब्रीथिंग कहा जा रहा है और वहां यह काफी लोकप्रिय भी हो रहा है.
जर्मन मनोचिकित्सक जोहान्स हेनरिक शुल्त्स ने 1920 के दशक में ‘ऑटोजेनिक प्रशिक्षण’ को विश्राम की एक विधि के रूप में विकसित किया.
यह दृष्टिकोण आंशिक रूप से धीमी और गहरी सांस लेने पर आधारित है और संभवतः पश्चिम में यह विधि आज भी विश्राम के लिए सबसे प्रसिद्ध श्वास तकनीक है. इसी तकनीक को 2017 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के मार्क क्रास्नोव ने भी विकसित किया और इसे ‘कार्डियक ब्रीथिंग’ नाम दिया. इसमें प्रति मिनट छह बार सांस लेने और छोड़ने को कहा जाता है. इसे दिन में कम-से-कम तीन बार (हर बार पांच सेकेंड के लिए सांस छोड़ें) करने को कहा गया है.
इसे 365 दिन दुहराने की सलाह भी दी गयी है. क्रास्नोव के मुताबिक, गहरी सांस लेने और छोड़ने से हमारा दिमाग उचित तरीके से काम करता है. तंत्रिका तंत्र को अतिरिक्त ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है. हमारा दिमाग शांत और स्थिर होता है. भारत में हम इसे वर्षों से प्राणायाम के रूप में देखते आये हैं.
कार्डियक ब्रीथिंग प्राणायाम का दूसरा रूप
अवसाद दूर करने के छह तरीके
1. तनकर सीधे खड़े हों. 2. अपनी सांस को नियंत्रित करें. 3. सांस लेते हुए हवा को पहले पेट में भरें. जैसे ही पेट फूलने लगे, हवा को छाती में भरें. लेटकर भी इसे किया जा सकता है. लेटकर करते समय पेट पर अपना एक हाथ रखें. 4. सांस छोड़ते थोड़ी देर सांस रोकें. दिमाग में 1, 2, 3 गिनें. सांस लेते समय भी इसे दुहरायें. 5. सांस लेते समय एक बार में नाक के एक छिद्र का इस्तेमाल करें. अगली बार दूसरे छिद्र का. 6. सांस लेते समय दिमाग में अच्छे विचार रखें.