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जिंदगियों को बचाने की जिंदादिली, जीने की जिद में मिसाल पेश कर रहे भारतीय मूल का अमेरिकी दंपती
मिसाल : जीने की जिद में अनूठी मिसाल पेश कर रहा भारतीय मूल का अमेरिकी दंपती सोनिया की मां कामिनी वल्लभ एक ऐसी बीमारी से पीड़ित थीं, जिसकी वजह से जीवित होते हुए भी दुनिया से बिल्कुल कट चुकी थीं. उन्हें कुछ भी याद नहीं था. हमेशा कंफ्यूजन और बेचैनी महसूस करती थीं. उन्हें इस […]
मिसाल : जीने की जिद में अनूठी मिसाल पेश कर रहा भारतीय मूल का अमेरिकी दंपती
सोनिया की मां कामिनी वल्लभ एक ऐसी बीमारी से पीड़ित थीं, जिसकी वजह से जीवित होते हुए भी दुनिया से बिल्कुल कट चुकी थीं. उन्हें कुछ भी याद नहीं था. हमेशा कंफ्यूजन और बेचैनी महसूस करती थीं.
उन्हें इस बात का भी आभास नहीं होता था कि वह कब जागी हुई हैं या फिर कब उन्हें नींद आ रही है. इस बीमारी का पता चलने के करीब एक साल बाद उनकी मौत हो गयी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि सोनिया की मां एक असाधारण बीमारी ‘फेटल फैमिलियल इनसोमनिया’ से पीड़ित थीं.
इसे ‘प्रिअन डिसीज’ कहा जाता है. यह एक ऐसी आनुवांशिक बीमारी है, जो लाखों लोगों में से किसी एक को होती है. इस बीमारी के कारण एक तरफ तो मस्तिष्क में बननेवाले प्रोटीन की मात्रा में धीरे-धीरे कमी आने लगती है, वहीं दूसरी ओर नये प्रोटीन सेल्स निर्मित नहीं हो पाते. फलस्वरूप व्यक्ति का दिमाग काम करना बंद कर देता है और वह जीवित होते हुए भी बाहरी दुनिया से बिल्कुल विलग हो जाता है.
इस बात का पता लगते ही सोनिया ने भी अपना ब्लड टेस्ट करवाया. पता चला उसने भी अपनी मां से इस बीमारी का डीएनए प्राप्त कर लिया है. सोनिया उस वक्त 33 वर्ष की थीं. आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण प्रभावित लोगों में 50 वर्ष की उम्र के बाद परिलक्षित होते हैं. सोनिया नहीं चाहती थीं कि उनकी जिंदगी इस बीमारी के इंतजार या फिर इसके प्रभाव में बीते.
चुनौती थी अपने लिए नये रास्तों की तलाश : सोनिया में अभी तक इस बीमारी के लक्षण उभरने शुरू नहीं हुए थे. ऐसे में कौन-सी चिकित्सकीय प्रक्रिया किस दिशा में शुरू की जाये, यह पता नहीं चल पा रहा था. सोनिया और उनके पति एरिक ने अल्जाइमर बीमारी के इलाज पर काम कर रहीं न्यूरोलॉजिस्ट डॉ रेसा स्पर्लिंग के साथ मिल कर इस बीमारी का इलाज पता लगाने का निश्चय किया.
दोनों ने बॉयोलॉजी तथा न्यूरोसाइंस विषय की पढ़ाई लिए नाइट क्लास ज्वाइन की. नौकरी छोड़ दी और मैसाचुसेट्स स्थित मास जनरल लैब ज्वॉइन कर लिया. जल्दी ही दोनों मानव मस्तिष्क में मौजूद कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को समझने में कामयाब हो गये. अब वे उससे संबंधित ट्रीटमेंट मेथड्स पर काम भी कर रहे हैं.
जब दिखी उम्मीद की एक किरण
दोनों ने ‘प्रिअन अलायंस’ नामक एक समूह बनाया, जिसका उद्देश्य इस दिशा में किये जानेवाले रिसर्च के लिए धन एकत्र करना है. इनके द्वारा विकसित स्पाइनल फ्लूड के सैंपल्स का चूहों पर प्रयोग कामयाब रहा है.
अब वे इन्हें वैसे लोगों पर आजमाने की तैयारी में जुड़े हैं, जो प्रिअन डिसीज से जूझ रहे हैं या उससे प्रभावित हैं. सोनिया के अनुसार, अगर हम अपने प्रयोग में फेल भी हुए, तो हमें अफसोस नहीं होगा, क्योंकि इससे हमें अपनी कमियों को जानने और आगे की दिशा निर्धारित करने में मदद तो मिलेगी ही.
सोनिया ने इसी माह एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया है. उनकी बेटी में प्रिअन डिसीज के आनुवांशिक लक्षण नहीं हैं.हालांकि इसके लिए उन दोनों को इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक का सहारा लेना पड़ा. फिर भी वे इस बात से बेहद संतुष्ट हैं कि वे इस बीमारी को आगे आनेवाली पीढ़ी में हस्तांतरित होने से रोक पाने में कामयाब हो सके. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही वे ऐसी दवा विकसित जरूर कर लेंगे, जिससे सोनिया एक स्वस्थ जिंदगी जी पायेंगी.
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