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स्वास्थ्य की असली कुंजी है ध्यान
डॉ ओशो शैलेंद्र ओशोधारा नानक धाम, सोनीपत, हरियाणा बीमार न होने का मतलब स्वस्थ होना नहीं होता. कुछ और भी चाहिए. ध्यान वही चीज है. यह हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. जो ध्यानी होगा, वह अकारण ही संतोष, आनंद और मस्ती में दिखेगा. वह दूसरों से […]
डॉ ओशो शैलेंद्र
ओशोधारा नानक धाम, सोनीपत, हरियाणा
बीमार न होने का मतलब स्वस्थ होना नहीं होता. कुछ और भी चाहिए. ध्यान वही चीज है. यह हमारे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. जो ध्यानी होगा, वह अकारण ही संतोष, आनंद और मस्ती में दिखेगा. वह दूसरों से तुलना नहीं करेगा. जागरण की यह अवस्था सबके प्रति सहज सम्मान जगाती है और आपके मन को शांति देती है.
खुदको पहचानने की क्षमता बढ़ाता है ध्यान
ध्यान स्व-यथार्थ बोध यानी सेल्फ-एक्चुआलाइजेशन में मददगार है. यह सेवा कार्य में आपकी रुचि बढ़ाता है. आत्म-ज्ञान की संभावना का द्वार ध्यान से ही खुलता है और न सिर्फ खुद के बारे में, बल्कि दूसरों की भी गहरी समझ पैदा होती है. यह ध्यान ही है, जिससे तन-मन और चेतना के बीच के सामंजस्य की अखंडता को समझना और उसे साधना संभव होता है. इससे आध्यात्मिक विश्राम की गहराई में डुबकी लगती है और व्यक्ति षटरिपुओं से मुक्त होने लगता है, जिससे दूसरों की उन्नति के प्रति सहर्ष स्वीकार का भाव बनता है. ध्यान करनेवाला वहीं नहीं रह जाता, जो पहले था. जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बदल जाता है. उसके भीतर मैत्री भाव भी होगा और क्षमाभाव भी. यह उसे ध्यान की उच्चतर अवस्था में ले जाने अर्थात समाधि में उतारने में सहायक होता है. इससे व्यक्ति का परमात्मा के साथ एक गहरा संबंध स्थापित होता है. वास्तविक योग यही तो है.
ध्यान से उत्तर नहीं मिलते, प्रश्न खत्म हो जाते हैं
यह धारणा गलत है कि जो ज्ञान को उपलब्ध हो गये, उन्हें सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गया. जो ध्यान में डूबते हैं उन्हें कोई उत्तर नहीं मिलता. इतना जरूर है कि उनके सवाल खत्म हो जाते हैं. स्मरण रखिए, ध्यान बिल्कुल निःशुल्क है. इसके लिए कोई उपकरण नहीं चाहिए. ध्यान को समझना बिल्कुल आसान है. बच्चे-युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित सभी इसे कर सकते हैं. किसी भी समय, कहीं भी इसका अभ्यास किया जा सकता है. ध्यान का अभ्यास अलग से समय नहीं लेता. जो कार्य कर रहे हैं, उसी को ध्यानपूर्वक करें. ध्यान के कोई नकारात्मक साइड इफेक्ट भी नहीं हैं. जिस ध्यान के इतने लाभ हैं, उसके बारे में आपको खुद से जरूर पूछना चाहिए-
‘मैं अभी तक ध्यान क्यों नहीं रहा हूँ?’
‘ॐ’ मंत्र का उच्चारण
‘ॐ’ मंत्र का उच्चारण करने से हमारे मस्तिष्क के बीटा, अल्फा और डेल्टा तीनों तरंग संतुलित होने लगते हैं, जिसका सीधा संबंध शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर होता है. यही कारण है कि ‘ॐ’ के उच्चारण करने के तुरंत बाद हम स्वयं को शारीरिक और मानसिक स्तर पर पूर्णत: शांत और तनाव से मुक्त अनुभव करते हैं. अत: सुबह की शुरुआत और रात में सोने के पूर्व ‘ॐ’ का उच्चारण करना काफी लाभकारी होता है. अत: आज के आधुनिक युग में हर किसी को प्राणायाम और ‘ॐ’ मंत्र का उच्चारण करना अत्यंत लाभकारी और प्रभावकारी होगा.
प्राणायाम से मन को मिलती है शीतलता
आधुनिक मानसिकता के कारण हजारों बीमारियां साइकोलॉजिकल कारणों से हो रही हैं. इस विषम अवस्था में योग, खास कर ‘प्राणायाम’ का अत्यधिक महत्व है. प्राणायाम का प्रभाव सीधे तौर पर हमारी तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है, जिससे हमारे अंदर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति अपनी समस्याओं से बाहर निकालने में सफलता प्राप्त करता है. मन का शांत होना अहम है. इसके लिए सांसों का नियंत्रण जरूरी है.
नाड़ी शोधन : इसे ‘अनुलोम-विलोम’ प्राणायाम के रूप में भी जाना जाता है. इसमेें एक नाक से सांस लेकर दूसरे नाक से छोड़ा जाता है. यह हमारे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है. इस प्राणायाम से मन में शांति, विचारों में स्पष्टता और एकाग्रता की प्राप्ति होती है. अत: जो लोग मानसिक कार्यों में लगे रहते हैं, उन्हें यह अभ्यास जरूर करना चाहिए.
भ्रामरी प्राणायाम : इस प्राणायाम में कानों और आंखों को बंद कर काले भौरे की तरह गुंजन करते हैं. इससे मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है. क्रोध, चिंता और अनिद्रा भी दूर होती है और रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है. सर्जरी के दर्द को हील करने में भी यह सहायक है. यह अभ्यास भी ध्यान के अभ्यास के पूर्व यदि किया जाये, तो ध्यान में काफी मदद मिलती है.
उज्जायी प्राणायाम : यह प्राणायाम मन को शांत तथा तनाव से मुक्त करने में काफी सहायक है. योगोपचार में इसके अभ्यास से तंत्रिका तंत्र और मन को शांत करने में मदद मिलती है. अनिद्रा, उच्च रक्तचाप आदि में लाभकारी है. इससे शरीर में सप्त धातुओं रक्त, अस्थि, मज्जा, मेद, वीर्य, त्वचा एवं मांस की व्याधियों को दूर करता है.
शीतली प्राणायाम : इस अभ्यास में जीभ को एक पाइप का आकार देकर मुंह से सांस लेते हैं तथा नाक से सांस को छोड़ा जाता है. यह अभ्यास मन और शरीर को शीतलता प्रदान करता है. सोने के पूर्व इसका अभ्यास काफी लाभकारी होता है. शीतकारी प्राणायाम : इस प्राणायाम में दांतों को बाहर रखते हुए मुंह से सांस लिया जाता है तथा नाक से छोड़ा जाता है. यह अभ्यास भी शारीरिक और मानसिक स्तर पर शांति प्रदान करता है. यह मानसिक उत्तेजनाओं को शांत करता है. पाइरिया की शिकायत रहती है उनकी भी काफी लाभ पहुंचाता है.
(योग विशेषज्ञ धर्मेंद्र सिंह से बातचीत पर आधारित)
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