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Period Leave: ‘विशेष सुविधा’ या उन दिनों की जरूरत,कई देशों में पीरियड लीव का प्रावधान, भारत में क्या है स्थिति

बीते दिनों स्पेन की संसद में पीरियड्स लीव को अंतिम मंजूरी दी गयी. इसके साथ ही स्पेन पीरियड लीव कानून को लागू करने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया. दुनिया के कई देशों में पहले से ही महिला कर्मचारियों को पीरियड्स लीव मिल रही है.

बीते दिनों स्पेन की संसद में पीरियड्स लीव (Period Leave) को अंतिम मंजूरी दी गयी. इसके साथ ही स्पेन पीरियड लीव कानून को लागू करने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया. दुनिया के कई देशों में पहले से ही महिला कर्मचारियों को पीरियड्स लीव मिल रही है, जबकि भारत में दो राज्यों (बिहार तथा तमिलनाडु) तथा निजी क्षेत्र की कुछ गिनी-चुनी कंपनियों को छोड़ कर पीरियड लीव का यह मुद्दा अब तक मेनस्ट्रीम मुद्दा नहीं बन पाया है. गत सप्ताह माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पीरियड लीव से जुड़ी एक याचिका पर सुनवायी करने से इंकार करते हुए इसे सरकार के नीतिगत दायरे के तहत शामिल मुद्दा मानते हुए इसके लिए याचिकाकर्ता को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को अप्रोच करने का निर्देश दिया. इसे लेकर एक बार फिर से देश में पीरियड लीव के मुद्दे पर बहस छिड़ गयी है.

पीरियड लीव आधी आबादी के कानूनी हक और उनके स्वास्थ्य से जुड़ा एक बेहद संवेदनशील मसला है. गौरतलब है कि स्पेन की संसद में पीरियड्स के दौरान छुट्टी के मुद्दे पर लंबे वक्त से बहस चल रही थी, जो बीते दिनों 185 मतों के साथ पारित हुआ. इस अवसर पर स्पेन की समानता मंत्री इरेन मोंटेरो ने ट्वीट किया- ‘नारीवादी प्रगति के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है.’ स्पेन की संसद द्वारा विगत 16 फरवरी को बहुमत से मेंस्ट्रुअल लीव कानून पारित होने के साथ ही अब महिलाओं को हर महीने पीरियड्स के दौरान 3 से 5 दिनों की पेड लीव मिलेगी. अब सभी शैक्षणिक केंद्रों, जेलों और सामाजिक केंद्रों में सैनिटरी पैड और टैम्पॉन जैसे पीरियड हाइजीन से जुड़े प्रोडक्ट मुफ्त दिये जायेंगे. हालांकि यह जानना भी दिलचस्प है कि यूरोप में, जहां 40 फीसदी देशों की कमान महिला लीडरों के हाथों में है, स्पेन के अलावा और किसी देश में महिलाओं को अब तक यह सुविधा नहीं मिल सकी है.

कई देशों में है पीरियड लीव का प्रावधान

विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अबॉर्शन राइट्स से लेकर पेड पीरियड लीव राइट्स संबंधी महिलाओं के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करने वाला दुनिया का पहला देश था रूस, जहां वर्ष 1920 में पहली बार महिला वर्करों के लिए पेड पीरियड लीव का प्रावधान किया गया. लेकिन आज इन सारे मानदंडों पर यह देश बहुत पिछड़ चुका है. अब तक एक सदी से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन चंद देश ही कामकाजी महिलाओं की पीड़ा को समझने की जहमत उठायी है. पीरियड्स लीव का प्रावधान फिलहाल दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, ब्रिटेन, चीन, जापान, ताइवान और जांबिया में लागू हैं. भारत में अब भी यह मामला वैधानिक प्रावधान तथा नीतिगत निर्णयों के बीच उलझा है. हालांकि बिहार तथा केरल सरकार सहित निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियां पहले से ही अपने यहां कार्यरत महिलाओं को पीरियड्स लीव दे रही हैं.

सर्वोच्च न्यायालय का नजरिया

इस वर्ष 11 जनवरी को वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं को पीरियड लीव देने का प्रावधान लागू करने संबंधी जनहित याचिका दायर की गयी थी. इस जनहित याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र व सभी राज्यों को छात्राओं व कामकाजी महिलाओं के लिए उनके कार्यस्थल पर मासिक धर्म के दौरान पेड लीव की मांग की गयी थी. याचिका का आधार यह था कि पेड पीरियड लीव कोई लग्जरी नहीं, बल्कि महिलाओं की बिलकुल सहज और प्राकृतिक जरूरत है. पीरियड को लेकर संवदेनशीलता न बरतने का प्रभाव महिलाओं के काम, प्रोडक्टिविटी और करियर पर पड़ता है. हालांकि 25 फरवरी को न्यायालय ने सुनवायी से इंकार करते हुए कहा कि यह एक नीतिगत मसला है. इसके लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को ज्ञापन दिया जाना चाहिए. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिंहा और जे बी पारडीवाला की खंडपीठ के समक्ष उपस्थित इस मामले के बारे में उन्होंने माना कि पिछले कुछ समय में देश को सशक्त बनाने में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. वर्तमान दौर में महिलाएं कुशल व अकुशल श्रमिक के रूप में हर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है. ऐसी स्थिति में पीरियड्स लीव का प्रावधान महिलाओं के वर्किंग स्किल को प्रभावित कर सकता है और कंपनियां महिलाओं को काम पर रखने से परहेज कर सकती हैं. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट ने पीरियड्स लीव को महिलाओं के लिए अलाभकारी निर्णय बताया है.

पीरियड लीव को लेकर तर्क-वितर्क

भारत में अभी तक कोई मेंस्ट्रुअल लीव पॉलिसी तो लागू नहीं है, पर कई कंपनियां‌ हैं, जो अपने कर्मचारियों को वेतन सहित मेंस्ट्रुअल लीव देती हैं. इस मुद्दे के पक्ष में जितने तर्क हैं, उतने तर्क विपक्ष में भी हैं. क्यों जरूरी है मेंस्ट्रुअल लीव? क्या महिलाएं इतनी कमजोर हैं कि उन्हें हर महीने ‘एक्सट्रा लीव’ की जरूरत पड़े? क्या इस तरह वे कंपनी की जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा पायेंगी? क्या इस तरह कंपनी को नुकसान नहीं होगा? इस दिशा में किये तमाम अध्ययनों में यह अनुमान लगाया गया कि महिला कर्मचारियों को दो से तीन दिन की पेड लीव देने का अतिरिक्त बोझ कंपनियों के सिर पर आयेगा, जिसका उनकी उत्पादकता पर असर पड़ेगा और कुल मिलाकर नतीजा जीडीपी की हानि होगी.

अब तक भारत में क्या है स्थिति

  • भारत में करीब 110 वर्षो पूर्व मेंस्‍ट्रुअल लीव दिये जाने का एक छोटा-सा वाकया मिलता है. इतिहासकार और मलयालम साहित्य क्षेत्र के प्रसिद्ध आलोचक पी भास्कररुन्नी ने अपनी किताब ‘केरल इन नाइनटींथ सेंचुरी’ में जिक्र किया है कि ‘एर्णाकुलम में एक स्कूल में महिला शिक्षकों और छात्राओं को पीरियड के दौरान छुट्टी दी जाती थी.’

  • जनवरी 2023 में केरल सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग के तहत आने वाले सभी राज्य विश्वविद्यालयों में छात्राओं को मासिक धर्म की छुट्टी देने का ऐलान किया.

  • मार्च 2021 में दिल्ली सरकार ने भी महिला कर्मचारियों को मेंस्ट्रुअल लीव देने की घोषणा करते हुए कहा था कि इस छुट्टी को कामकाजी महिलाएं मासिक चक्र के किसी भी दिन ले सकती हैं और इससे उनकी बाकी छुट्टियों में कटौती नहीं की जायेगी.

  • वर्ष 1992 में बिहार सरकार ने महिला कर्मचारियों के लिए दो दिनों के मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत की.

  • जनवरी, 2018 में अरुणाचल प्रदेश के सांसद निमोंग एरिंग द्वारा लोकसभा में एक बिल ‘मेंस्ट्रुअल बेनेफ़िट’ के नाम से पेश कियाा गया, जिसमें कामकाजी महिलाओं के लिए मेंस्ट्रुअल लीव यानी पीरियड्स के दौरान छुट्टी की मांग की गयी थी.

  • वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ ने यूपी महिला आयोग, मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मांग की.

    सोनम लववंशी

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