Chanakya Niti: हम सभी जिंदगी में कभी न कभी ऐसे दौर से गुजरते हैं जब दुख हमारे जीवन का हिस्सा बन जाता है. उस समय हम उम्मीद करते हैं कि हमारे अपने हमारे साथ खड़े रहें. लेकिन जब वही अपने उस दुख की घड़ी में साथ छोड़ दें, तो मन में सवाल उठता है कि फिर जब सुख आए तो क्या हमें उन्हें उसमें शामिल करना चाहिए? चाणक्य नीति की यही बात आज भी कई लोगों के दिल को छूती है.
Lessons from Chanakya Niti on Happiness | Share Happiness Wisely: जब दुख में साथ नहीं तो सुख में क्यों बांटना?

कई बार ऐसा होता है कि जब हम परेशान होते हैं, तकलीफ में होते हैं, या जिंदगी से थक चुके होते हैं, तब हमारे आसपास वही लोग नहीं होते जिन पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं. दुख के समय में अकेलापन हमें बहुत कुछ सिखा जाता है. और इसी अनुभव से एक अहम सबक मिलता है – जो लोग आपके दुख में आपके साथ नहीं होते, उन्हें आपके सुख का हिस्सा बनने का हक नहीं है.
यह विचार सुनने में थोड़ा सख्त लग सकता है, लेकिन इसका मर्म गहरा है. सोचिए, जब आप आर्थिक या मानसिक परेशानी में थे, तब जिन लोगों ने फोन तक नहीं उठाया, आपके हाल तक न पूछे, वो क्या वाकई आपके सुख में शामिल होने के काबिल हैं?
दुख में अकेलापन – एक उदाहरण से समझें
रवि एक मध्यम वर्गीय युवक था जिसने अपनी जिंदगी में काफी संघर्ष किया. जब उसकी नौकरी चली गई, तब उसके दोस्तों ने धीरे-धीरे उससे दूरी बना ली. कोई मिलने नहीं आया, न किसी ने हाल पूछा. लेकिन जब कुछ सालों बाद वह एक बड़ी कंपनी में मैनेजर बन गया, तो वही दोस्त पार्टी मांगने और घूमने की प्लानिंग करने लगे. रवि ने तब तय किया कि जिन लोगों ने उसके कठिन समय में साथ नहीं दिया, उनके साथ वह अपनी खुशियां भी साझा नहीं करेगा.
सुख और दुख दोनों ही जीवन के अहम हिस्से हैं. लेकिन अगर कोई सिर्फ आपके सुख में साथ होना चाहता है और दुख में आपका हाल तक नहीं पूछता, तो उसे आपके जीवन की खुशी में भी हिस्सा लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए. रिश्तों को निभाने की असली परख मुश्किल समय में होती है. इसलिए, अगर आपने दुख अकेले झेला है, तो अपने सुख का हकदार सिर्फ आप हैं.
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