10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

विश्व पर्यावरण दिवस 2023 : आदिम नदियों का प्रदेश है झारखंड

विश्वभर में 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाना और प्रकृति संरक्षण है. प्रभात खबर के द्वारा झारखंड के नदियों के ऐतिहासिक मायने और वर्तमान स्थिति पर एक सीरीज शुरू किया जा रहा है, ताकि लोगों में जागरूकता फैलें.

रांची, कुशाग्र राजेंद्र और विनीता परमार. पंचमहाभूतों से जीवन की उत्पति में पानी ने हमेशा ही अपनी विशेष उपस्थिति दर्ज की है. शुरु से ही पानी को जीवन से ओत-प्रोत माना गया है. पानी अपने चंचल और शीतल स्वभाव के साथ गतिशील है. पानी का वत्सल स्वभाव एक छोटे बच्चे के मुख से उच्चरित पहला शब्द मम् में पूर्णरूप से परिलक्षित होता है. बचपन से ही हमारी आंखों के सामने दो पहाड़ों के बीच उगा सूरज और उसके सामने बहती नदी अपने पानी से उस कठोर पहाड़ को भी जीवंत करती प्रतीत होती है. पहाड़ों का पीछा करता मनुष्य नदियों की उत्पति स्थल को देख आह्लादित होता है. हमारा देश भारत नदियों का देश है,जहां नदियां जीवन का आधार हैं. हमारे देश में किसी भी पूजा या आस्था के पूर्व स्वत: ही मुंह से निकल पड़ता है, “गंगे च यमुने चैव गोदावरी च सरस्वती, नर्मदे, सिंधु, कावेरी जलेस्मिन सन्निधिम्म कुरु

कृषि जीवन की सांसें हैं तो नदियां धमनियां हैं. उन्हीं प्रमुख अंगों में से एक राज्य झारखण्ड जिसकी धमनियां यानी नदियां, कृषि के साथ खनिजों से भरी हुई है. झारखण्ड आदिम मनुष्यों का राज्य, जहां आदिम आदतों ने प्रकृति को बड़ी ही नजाकत से संभाले रखा है. झारखण्ड राज्य भारत के नवीनतम राज्यों में से एक है जिसका सामान्य शाब्दिक अर्थ है झाड़ों का प्रदेश. लेकिन इसका भौगोलिक संदर्भ प्राचीन ग्रंथों में भी दर्ज है.

संस्कृत में एक श्लोक है. उसमें झारखण्ड की पौराणिक एवं सांस्कृतिक पहचान की झलक मिलती है.

‘अयस्क: पात्रे पय: पानम, शाल पत्रे च भोजनम् शयनम खर्जूरी पात्रे, झारखंडे विधिवते.’

‘झारखण्ड में रहनेवाले धातु के बर्तन में पानी पीते हैं, शाल के पत्तों पर भोजन करते हैं, खजूर की चटाई पर सोते हैं.’

आधुनिक ब्रिटिशकाल में यह झारखण्ड नाम से जाना जाने लगा. यह पूरा राज्य ही छोटानागपुर का पठार है, जहां प्रकृति ने अपनी मोहिनी माया का अद्भुत जाल फैलाकर रखा है. मानो प्रकृति ने सुषमा सौन्दर्य के महीन धागों से विविध प्रकार के वस्त्रों को बुनकर इस अरण्यक भूमि के तन को ढक दिया है. यहां सारंडा जैसे घने वन, पर्वत श्रेणियों की नीची ऊंचाई की शृंखला, आड़ी-तिरछी-गहरी घाटियां और घाटियों में बहनेवाली नदियां. नदियां कहीं श्वेत तो कहीं लाल चादर ताने अपनी पेटियों में मनोरम दृश्य उत्पन्न करती हैं.

झारखण्ड की नदियों को जानने समझने के लिए यहां की भूगर्भिक संरचना और उसकी उत्पति को जानना होगा जो कई परतों में है और काफी जटिल भी है. यहां हेडियन- आर्कियन से लेकर भूगर्भीय वर्तमान तक में बनी संरचनाएं विद्यमान हैं. जिसके फलस्वरूप झारखण्ड की वर्तमान भू-आकृति और नदियों की उत्पति हुई है. झारखण्ड या यूं कहे कि छोटानागपुर पठार आदिम भूखंड गोंडवाना के इंडियन प्लेट का हिस्सा रहा है जो एक बड़े काल-खंड लगभग 20 करोड़ साल में अनेक भूगर्भीय प्रक्रियाओं का साक्षी रहा और सुदूर दक्षिणी ध्रुव से उत्तर की एक बड़ी दूरी तय कर और कई भागों में विभाजित हो गया. जिसमें अफ्रीकन, ऑस्ट्रेलियन, मेडागास्कर प्लेट शामिल हैं और अंततः पांच करोड़ साल पहले यूरेशियन प्लेट से आ मिला, जिससे भारत का वर्तमान स्वरूप उभर कर आया.

झारखण्ड के धरातल निर्माण प्रक्रिया को चार प्रमुख समय काल में बांट सकते हैं, प्री- कैम्ब्रियन या आर्कियन (धारवाड, विंध्यन), पेलियोजोइक् (कार्बेनिफेरस), मिसोजोइक् (गोंडवाना) सिनोजोइक् कालखंड. सबसे प्राचीन प्री- कैम्ब्रियन काल (लगभग 55 करोड़ साल पहले) इसका विस्तार झारखण्ड के 90% भाग पर है. जिनसे कोल्हान पठार, रोहतास का पठार और पारसनाथ की पहाड़ी बनी जो मुख्यतः ग्रेनाईट, निस, सैंड्स्टोन, लाइमस्टोन के रूप पाया जाता है और जिसके अपरदन से झारखण्ड का अधिकांश भू-भाग बना है. उसके बाद पेलियोजोइक् काल हिमयुग आया और झारखण्ड सहित पूरा क्षेत्र बर्फ की मोटी चादर से करोड़ों साल के लिए ढंक गया. हिमयुग के ग्लेशियर के घर्षण से पिछली सारी स्थलाकृतियां और उच्चावच विलोपित हो गये. इस प्रकार सारा पठार एक समतल मैदान ‘छोटानागपुर पेनिप्लेन’ में बदल गया.

पूरे पठार के समतलीकरण से उस समय की नदियों का बहाव और कटाव धीमा पड़ने लगा, जो नदियों की वृद्धावस्था का द्योतक है. अगला कालक्रम मिसॉज़ोइक एक लम्बा समय अंतराल (27 से 7 करोड़ साल तक) है, जिस दौरान दामोदर और सोन नदी भ्रंश का निर्माण हुआ. इन विशाल भ्रंशों में सघन वनस्पतियों के जीवाश्मीकरण से कोयला (गोंडवाना) में परिवर्तन और आखिर में जवालामुखीय निक्षेपण से राजमहल ट्रैप का निर्माण हुआ. यही से झारखण्ड की वर्तमान नदियों के बनने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है. जो नदियां हिमयुग के बाद तात्कालिक छोटानागपुर के समतलीकरण से वृद्ध पड़ चुकी थी. अब उन प्राचीन नदियों की नवीनीकरण की प्रक्रिया शुरु होती है. स्थानीय नदियों के नवीनीकरण और उनके वर्तमान स्वरूप तक पहुंचने में भूगर्भीय कालखंड का चौथा और नवीनतम चरण सिनोजोइक् (6 करोड़ साल से शुरू होकर वर्तमान तक) टेक्टानिक रूप से बहुत ही उथल-पुथल वाला रहा है.

इसी दौर में इंडियन प्लेट (जिसका एक छोटा पूर्वी भाग छोटनागपुर का पठार है) और यूरेशियन प्लेट की टक्कर से हिमालय का निर्माण शुरू होता है. जिसका व्यापक प्रभाव कम से कम तीन महत्वपूर्ण चरणो में निवर्तमान झारखण्ड की धरा पर स्पष्ट रूप देखा जा सकता है. दोनों प्लेटों की शुरुआती टक्कर (लगभग 5 करोड़ साल पहले) के साथ ही नेतरहाट के क्षेत्र में पठार काफ़ी ऊँचा उठ जाता है, जिसे पाट पठार का निर्माण होता है. छोटानागपुर पेनीप्लेन के ऊपर उठने की प्रक्रिया क्रमशः अगले दो चरणों तक जारी रहता है, जिसमें पाट पठार, संयुक्त राँची पठार (जो दामोदर भ्रंश के बनने से हज़ारीबाग़ पठार से अलग होता है), हज़ारीबाग़ पठार और छोटनागपुर पठार के निचले हिस्से क्रमश: और ऊंचा उठते हैं. जिससे पठार को व्यापक रूप से उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूरब की ओर हल्की तिरछी ढलान मिलती है.

तीन चरणो में मिली तिरछी ढलान के साथ नई ऊंचाई से मंद पड़ी नदियों को नई ऊर्जा मिलने के साथ उनकी अपरदन क्षमता में बेतहाशा बढ़ोतरी होतीं है और बेजान पड़ी प्राचीन नदियां पुनर्जीवित हो उठती हैं. सीधी ढलान वाली नदी घाटी, सर्पिली घुमावदार बहाव और ढेर सारे नदी जलप्रपात झारखण्ड की नदियों की विशिष्ट पहचान है. पठारी उदगम के साथ ही सर्पिली घुमावदार बहाव छोटनागपुर पेनिप्लेन के समय की प्राचीन नदियों के बहाव की निशानी है जिसपर नई आई उच्चावच से नदियों का वर्तमान स्वरूप करोड़ों साल के बहाव और अपरदन से बना है. वही नदी जलप्रपात और तीखी ढलान वाली नदी घाटियां क्रमशः नदी मार्ग के अचानक उठ जाने और नदी द्वारा अत्यधिक वर्टिकल कटाव का द्योतक है. नदियों की ये तीनों विशेषताएं पठार के उच्चावच और नदियों के नवीनीकरण (रिजुविनेशन) को इंगित करता है. जो झारखण्ड के भूगर्भीय इतिहास के अनुरूप भी है.

इसके बाद के झारखण्ड का भूगर्भीय इतिहास प्रमुख रूप से नई ऊर्जा से ओत-प्रोत नदियों के अपरदन और भारी मात्रा में निक्षेपण से बनी स्थलाकृतियों का है. जिसमें मुख्य रूप से पठार के ढलान और नदी भ्रंशों के अनुरूप विभिन्न नदी बेसिन और पठार के आसपास निम्न भूमि या मैदान का निर्माण शामिल है. क़ोल्हान, राजमहल, देवघर निम्न भूमि, पंचपरगना का मैदान भूगर्भीय लिहाज से आधुनिक निक्षेपण हैं. उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, शंख, अजय आदि बेसिन सापेक्षिक रूप से नये निर्माण हैं. वहीं दामोदर और सोन भ्रंश से बनी नदी बेसिन झारखण्ड का वर्तमान स्वरूप देने में महत्वपूर्ण है.

यह बात साफ है कि झारखण्ड की नदियों को पहले डूबना पड़ा फिर पठारों को चीरकर निकलना पड़ा. डूबती-उतराती नदियां आज बारह प्रमुख नदी-बेसिन में बंटी हुई हैं. समुद्र में मिलने से पहले ही यहां की लगभग सारी नदियां दूसरी नदी के साथ संगम बनाती है. स्वर्ण रेखा इकलौती नदी है जो अकेले सागर में मिल जाती है. लेकिन इस प्रदेश की अधिकांश नदियां भारत की अन्य नदियों से भिन्न है. मैदानी भाग की नदियों से इतर झारखण्ड में कठोर चट्टानों के कारण भूमिगत जल का स्तर नदियों से अलग रह जाता है.

ये नदियां कठोर, पथरीले और पहाड़ी भू-भाग से प्रवाहित होने के कारण बिहार एवं उत्तर प्रदेश की नदियों की तरह अपने मार्ग नहीं बदलती हैं, साथ ही साथ यहां की नदियों का प्रवाह भू-आकृति के कारण नियंत्रित रहता है. कमो-बेस झारखण्ड की सभी नदियां बरसाती हैं, अत: बरसात के दिनों में उमड़ पड़ती है परन्तु गर्मियों के दिनों में अल्प मात्रा में जल रहता है या लगभग सूख जाती हैं. इस प्रदेश में उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली नदियां मैदानी भाग में प्रवेश करने के कारण मंद पड़ जाती हैं और कम कटाव कर पाती हैं. जबकि ठीक इसके विपरीत दक्षिण की ओर बहने वाली नदियां दूर तक तीव्र गति से बहती हैं. अत: वे अधिक कटाव कर पाती हैं. एक बात और ध्यान देने योग्य है प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के संबंध में झारखण्ड के आदिम समाज का कोई सानी नहीं है. झारखण्ड के समाज की पहुंच को उनके द्वारा नदियों के नामकरण में देखा जा सकता है. नदी का मतलब ही होता है प्रवाह, भारतीय अधिकांश नदियों के नाम स्त्रियों के नाम पर हैं यानी नदी के गुण और मातृशक्ति को मान्यता देना. झारखण्ड में प्रकृति की कोमलता को देखते हुए कोयल, मयूराक्षी जैसे नाम दिए गये तो कुछ नदियों के ही नाम पुरुष परक है जिनमें दामोदर प्रमुख है. इन नदियों की सहायक नदी बराकर, लोहित, अजय वगैरह नाम भी पुरुष वाले हैं. ध्यान देने योग्य बात है कि नदियों के प्रवाह की तेजी, कठोर चट्टानों का पेट यानी परष गुणों को देखते हुए झारखण्ड की कुछ नदियों का नाम पुरुष वाले हैं.

हालांकि झारखण्ड के पुरातात्विक खोजों में मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास की ‘जंगलकथा’ सामने आयी है यानी जंगल में छुपी थी झाड़ प्रदेश की सभ्यता. पुरातात्विक सामग्रियों के अध्ययन-विश्लेषण से उससे बड़ा यह तथ्य उभरता है कि झारखण्ड क्षेत्र में जनजीवन को मुख्यत: ‘जंगल’ ही सदियों से सभ्यता और संस्कृति की राह दिखाता आ रहा है. झारखण्ड क्षेत्र में पुरातात्विक अन्वेषण से जो औजार और उपकरण मिले हैं, वे मैदानी या नदी-घाटी क्षेत्रों में प्राप्त सामग्रियों जैसे ही हैं लेकिन उनसे मानव सभ्यता-संस्कृति की ‘जल-यात्रा’ और ‘जंगल-यात्रा’ के बीच के फर्क को पहचाना जा सकता है. झारखण्ड की नदियों में पठारी प्रवृति और ऊबड़-खाबड़ बहाव की वजह से नाव नहीं चलती इस कारण ये आवागमन के साधन नहीं बन पाये. हालांकि झारखण्ड की अर्थव्यवस्था में कृषि और कृषि सम्बंधित गतिविधियां मुख्य आधार हैं. राज्य में कुल बुवाई का क्षेत्र लगभग 1.57 लाख हेक्टेयर है जिसमें से 8 प्रतिशत क्षेत्र में ही नदियों द्वारा सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो पाती है. झारखण्ड की नदियां अपने डैमों और तापबिजली घरों से बिजली उत्पादन के लिए जानी जाती हैं.

यह विडंबना ही है कि लगभग दो सौ नदियों का आदिम प्रदेश पीने के पानी के लिए नदियों पर आश्रित होते हुए भी कुछ प्रकृति की मार तो कुछ मानवजनित करतूतों की वजह अपने लगभग दो-तिहाई नदियों के पानी को हर साल गर्मी के दिनों में सूखा हुआ पाता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel