Prabhat Khabar Ground Report: गुमला से 26 किमी दूर सिसई प्रखंड के लकेया गांव में रोजगार नहीं है. लोग गरीबी में जी रहे हैं. ऐसे में पेट की आग बुझाने व बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए गांव के 40 प्रतिशत लोग दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं. कई घरों में तो ताला लटका हुआ है. इसी लकेया गांव की तीन महिला मजदूर की सोमवार को पटना में मौत हो गयी है. महिलाओं की मौत से गांव का माहौल गमगीन है. मृतकों में शीला देवी (35), सुगंती देवी (35) व घुरनी देवी (45) है. सुगनती की वृद्ध सास लक्ष्मी तुरी, ससुर गंदूर तुरी व 10 वर्षीय बेटा सूरज तुरी का रो-रोकर बुरा हाल है. ग्रामीण व रिश्तेदार उन्हें ढाढस बंधा रहे हैं.
लकेया गांव की तीन महिलाओं की मौत
पटना से मृतका सुगनती देवी के पति मेघनाथ तुरी ने फोन पर बताया कि सोमवार को साप्ताहिक छुट्टी होने के बाद भी मालिक द्वारा कार्य कराया जा रहा था. सुबह करीब आठ बजे भट्ठे की दीवार गिर गयी, जिसके नीचे आठ मजदूर दब गये. सभी को निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया. जहां डॉक्टरों ने लकेया गांव के तीन एवं एक स्थानीय मजदूर को मृत घोषित कर दिया. चार लोगों का गंभीर स्थिति में इलाज चल रहा है. मालिक द्वारा पोस्टमार्टम कराकर आनन फानन में हमारे मर्जी के खिलाफ सभी शवों का अंतिम संस्कार करा दिया गया. मुआवजा देने का आश्वाशन दिया गया है. सभी मजदूर गांव वापस आने के लिए मंगलवार को बस बैठ गये हैं.
लकेया में सुविधाओं का घोर अभाव
लकेया गांव प्रखंड मुख्यालय से सटा हुआ है. बस्ती की आबादी 1200 से अधिक है. मुख्यालय से सटा होने के बावजूद गांव में मूलभूत सुविधा व रोजगार का घोर अभाव है. 90 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि व मजदूरी पर निर्भर है. गांव के 40 प्रतिशत से अधिक आबादी रोजगार की तलाश में कुछ घरों में ताला लगाकर तो कुछ बूढ़े बुजुर्गों के भरोसे छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर अन्य राज्य पलायन किये हैं.
बांस का समान बनाकर बेचते हैं
गांव के गंदूर तुरी, झुलु तुरी, सागर तुरी, शिवराम तुरी, विश्राम तुरी, बुधराम तुरी, रामदयाल तुरी ने बताया कि गांव में 40-42 तुरी परिवार है. इनका मुख्य पेशा बांस का समान बनाना व मजदूरी है. लकेया गांव के सभी परिवार पूर्व में बांस का सूप, दाउरा जैसे समान बनाकर व मजदूरी कर जीविका चलाते थे. बांस के समानों की घटती मांग व गांव में काम नहीं मिलने के कारण मजबूरी में सभी सितंबर व अक्टूबर माह में पलायन कर जाते हैं. बरसात शुरू होते ही घर लौट आते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि मनरेगा से कोई काम नहीं मिलता है. कभी कभार एक दो सप्ताह के लिए काम भी मिलता है, तो मजदूरी राशि मिलने में परेशानी होती है.
गांव में काम मिले, पलायन रुकेगा : समाजसेवी
समाजसेवी सुशील उरांव व रूपु महली ने बताया कि वर्तमान में छिटपुट आवास को छोड़कर मनरेगा से कोई काम नहीं चल रहा है. मजदूर वर्गों को गांव में काम मिलने से पलायन कम हो सकता है. बीपीओ गीता कुमारी ने कहा लकेया के आसपास मनरेगा से दीदी बाड़ी, बागवानी, शेड, टीसीबी जैसी 22 योजना चल रही है. प्रति दिन पंचायत से 52 से 53 मानव दिवस कार्य दिया जा रहा है.
गांव के तुरी परिवार भूमिहीन हैं : गंदौरी देवी
लकेया बस्ती की गंदौरी देवी (55) ने बताया तुरी जाति का मुख्य पेशा बांस का सूप दाउरा बनाकर जीविका चलाना है. बाजार में बांस के समानों की मांग कम हो गयी है. शादी विवाह पर्व में कुछ मांग रहती है. पूंजी के अभाव व मांगों की कमी के कारण लोग पुस्तैनी काम छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर है. अधिकतर तुरी परिवार भूमिहीन हैं.
Also Read: झारखंड का एक ऐसा प्रखंड जहां डॉक्टर्स की जगह नीम-हकीमों के आसरे है लाखों की आबादी