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जन्मदिन विशेष : पत्रकार, कथाकार से फिल्मकार तक ख्वाजा अहमद अब्बास

आज ख्वाजा अहमद अब्बास (khwaja ahmad abbas) का जन्मदिन है. अपनी लेखनी से साहित्य, पत्रकारिता के साथ-साथ सिनेमाई दुनिया को भी संपन्न करनेवाले अब्बास साहब का जिक्र प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन को फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में पहला ब्रेक देनेवाले फिल्मकार के तौर पर अधिक किया जाता है.

आज ख्वाजा अहमद अब्बास का जन्मदिन है. अपनी लेखनी से साहित्य, पत्रकारिता के साथ-साथ सिनेमाई दुनिया को भी संपन्न करनेवाले अब्बास साहब का जिक्र प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन को फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में पहला ब्रेक देनेवाले फिल्मकार के तौर पर अधिक किया जाता है. लेकिन, ख्वाजा अहमद अब्बास की सिनेमाई दुनिया बहुत विशाल थी. हिंदी सिनेमा में जिन फिल्मों को मील का पत्थर माना जाता है, उनमें एक नाम 1951 ईस्वी में आयी राजकपूर की आवारा का भी है.

इस फिल्म ने न सिर्फ हिंदी फिल्मों के लिए लोकप्रियता, कलात्मकता का पैमाना तय किया, बल्कि दुनियाभर में, खासतौर पर पूर्व सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय हुई. आवारा को श्री 420 और जागते रहो के साथ राजकपूर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म कहा जा सकता है. श्री420 बॉक्स ऑफिस पर कामयाब रही, लेकिन जागते रहो को वैसी व्यायवसायिक सफलता नहीं मिली. इन तीनों फिल्मों में एक चीज साझा थी- इन तीनों की स्क्रिप्ट ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी थी. इसके अलावा भी इन तीन फिल्मों में एक और चीज साझा थी, वह था इनका समाजवादी किस्म का थीम. राजकपूर की इन तीनों फिल्मों को समाजवादी सुगंध देनेवाले व्यक्ति थे ख्वाजा अहमद अब्बास.

समाजवादी रुझान वाले फिल्मकार : ख्वाजा अहमद अब्बास का फिल्मी कॅरियर 1936 ईस्वी में बॉम्बे टॉकीज के लिए पार्ट टाइम पब्लिसिस्ट के तौर पर शुरू हुआ. दस साल बाद 1946 में उन्होंने धरती का लाल नाम से अपनी पहली फिल्म बनाई, जिसका हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना खास मुकाम है. 1943 के बंगाल के अकाल पर बनी इस फिल्म में किसानों के संघर्ष को दिखाया गया था. इसे हिंदी की यथार्थवादी परंपरा के शुरुआती फिल्मों में गिना जाता है. उन्होंने भारतीय अंग्रेजी लेखक मुल्कराज आनंद की कहानी के आधार पर एक और फिल्म बनाई राही, जिसमें चाय बागानों के मजदूरों की दुर्दशा का चित्रण किया गया था. उनकी फिल्म शहर और सपना को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला और वह वह व्यावसायिक तौर पर सफल भी हुई. आजादी से पहले और उसके बाद के दौर में अब्बास चेतन आनंद और बलराज साहनी के साथ भारतीय सिनेमा में राजनीतिक वाम की प्रमुख आवाज थे.

महान फिल्मों के स्क्रिप्ट राइटर : अब्बास एक बेहद सफल स्क्रिप्ट राइटर थे. राजकपूर की मशहूर टीम के सदस्य थे. राजकपूर के लिए उन्होंने आवारा, श्री 420, जागते रहो, मेरा नाम जोकर, बॉबी और हिना की स्क्रिप्ट लिखी. राजकपूर की फिल्मों के अलावा उन्हें हिंदी की कुछ अन्य अमर फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखने का गौरव भी हासिल है. इन फिल्मों में चेतन आनंद की नीचा नगर और व्ही. शांताराम की डॉ. कोटनीस की अमर कहानी शामिल है. नीचा नगर को कांस फिल्म पुरस्कार में सम्मानित किया गया और यह पाम डि ओर पुरस्कार पानेवाली हिंदी की एकमात्र फिल्म है.

पत्रकारिता पर चलता था गुजारा : अब्बास फिल्म निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर थे, लेकिन उनका गुजारा पत्रकार के तौर पर होनेवाली साधारण आमदनी से ही चलता था. अब्बास अपने समय के मशहरू अंग्रेजी अखबार ब्लिट्ज के लिए ‘लास्ट पेज’नाम से कॉलम लिखा करते थे. अब्बास ने यह कॉलम 1935 में लिखना शुरू किया था और 1987 में अपनी मृत्यु तक वे यह कॉलम लिखते रहे. यह संभवतः भारतीय पत्रकारिता जगत में सबसे लंबे समय तक लगातार चलने वाला कॉलम है.

लिखीं 70 से अधिक किताबें : अब्बास एक सिद्धहस्त लेखक भी थे और उन्होंने करीब 70 किताबें लिखीं. यह उनकी बहुआयामी प्रतिभा का प्रमाण है. वे फिल्म निर्देशक, स्क्रिप्ट लेखक, पत्रकार, कहानीकार और लेखक भी थे. उन्होंने अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और उर्दू में भी किताबें लिखीं. इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद उन्होंने एक किताब लिखी, द लास्ट पोस्ट. इसके लिए वे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से इंटरव्यू करना चाहते थे. अनवर अब्बास ने लिखा है कि यह इंटरव्यू काफी अच्छा हुआ, लेकिन इंटरव्यू के अंत में अब्बास ने तत्कालीन प्रधानमंत्री से दो चुभते हुए सवाल पूछे : क्या आपकी मां में तानाशाही प्रवृत्ति थी? और क्या आपको लगता है कि सुपर कंप्यूटर बच्चों के लिए दूध से ज्यादा महत्वपूर्ण है? इस इंटरव्यू में अनवर अब्बास भी उनके साथ थे. बाहर निकलने पर अनवर ने पूछा कि आपने ये सवाल क्यों पूछा? तो अब्बास का जवाब था, मैं इस नौजवान के माद्दे की जांच कर रहा था. जब अनवर ने यह पूछा कि इस इंटरव्यू से आपको काफी कुछ मिल सकता था, तो इस पर अब्बास का जवाब था, इस उम्र में मुझे कोई मौत के अलावा और क्या दे सकता है.

प्रीति सिंह परिहार

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