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फिल्‍म रिव्‍यू : गुरुजनों को समर्पित ”चॉक एंड डस्टर”

II अनुप्रिया अनंत II फिल्म : चॉक एंड डस्टर कलाकार :शबाना आजिमी, जूही चावला, जैकी श्राफ, आर्य बब्बर,दिव्या दत्ता, समीर सोनी निर्देशक : जयंत गिलाटर रेटिंग : 2.5 स्टार हम अपनी जिंदगी की रफ्तार में आगे बढ़ते हुए अपने पुराने दौर को भूलते चले जाते हैं. खास कर वे गुरु, जिन्होंने हमारी जिंदगी को संवारने […]

II अनुप्रिया अनंत II

फिल्म : चॉक एंड डस्टर

कलाकार :शबाना आजिमी, जूही चावला, जैकी श्राफ, आर्य बब्बर,दिव्या दत्ता, समीर सोनी

निर्देशक : जयंत गिलाटर

रेटिंग : 2.5 स्टार

हम अपनी जिंदगी की रफ्तार में आगे बढ़ते हुए अपने पुराने दौर को भूलते चले जाते हैं. खास कर वे गुरु, जिन्होंने हमारी जिंदगी को संवारने में अहम भूमिका निभाई है. हम उन्हें भी याद नहीं रखते. चॉक एंड डस्टर उन्हीं गुरुजनों को समर्पित फिल्म है. यह फिल्म अगर टीचर्स डे के दिन रिलीज होती तो मौके और दस्तूर से यह फिल्म और चर्चित होती. लंबे अरसे के बाद किसी ऐसे विषय पर किसी फिल्ममेकर की नजर गयी.

फिल्म एक अच्छी सोच के साथ बनी है. फिल्म का विषय भी काफी रोचक है. फिल्म की कहानी विद्या मैडम और ज्योति मैडम के ईद गिर्द बुनी गयी है. यह उन गुरुओं को समर्पित फिल्म हैं, जिनके लिए शिक्षा व्यापार नहीं है, बल्कि बच्चों की जिंदगी को संवारना है. कांताबेन एक स्कूल है, जहां शिक्षकों की कोशिश है कि बच्चों को जात-पात या आर्थिक स्थिति के आधार पर दाखिला नहीं, बल्कि उनकी काबिलियत पर शिक्षा मिले.

लेकिन शिक्षा को व्यापार में बदलने पर तूली कामिनी गुप्ता कर्मठ और बुद्धिजीवी टीचर्स नहीं चाहतीं. वह शिक्षा का व्यवसायिकरण करना चाहती है और उन्हें मैनेजमेंट का साथ भी मिलता है. कई चालें चल कर पहले वह खुद प्रिसिंपल बनती है और फिर स्कूल का पूरा नक्शा ही बदल जाता है. शोर तब होता है, जब बेवजह बिना किसी बुनियाद के ज्योति और विद्या मैडम को स्कूल से निकाल दिया जाता है.

मीडिया के सहारे मुहिम शुरू की जाती है. फिल्म के अंतिम दृश्यों में क्वीज के माध्यम से निर्देशक ने दर्शकों के सामने यह बात दर्शाने की कोशिश की है कि गुरु का मतलब वही होता है कि वह अंधकार से उजाले के रूप की तरफ ले जाये. फिर उनके लिए विषय मायने नहीं रखते. जो ज्ञानी होते हैं, वे हर क्षेत्र में अपनी सूझ बूझ से रास्ते निकाल लेते हैं. यही वजह है कि गणित और साइंस की टीचर होने के बावजूद विद्या मैडम और ज्योति मैडम सारे सवालों का जवाब दे देती हैं.

जबकि कई सवाल उनके अपने विषय के थे ही नहीं. निर्देशक का यह स्ट्रोक फिल्म की खूबसूरती को बढ़ाता है. इसमें एक महत्वपूर्ण संदेश है कि हम भले ही किसी एक कला में निपुण हों. महारथ हासिल हो. लेकिन उसी ज्ञान के आधार पर हम दूसरे विषयों के भी तूक और तर्क निकाल लेते हैं. फिल्म का यह हिस्सा सबसे अधिक दिलचस्प है. इसके अलावा जब विद्या अस्पताल में होती हैं. उन्हें उनके छात्रों का देश विदेश से समर्थन मिलता है. यह हम तमाम शिष्यों के लिए भी एक संदेश है कि किस तरह हम आगे बढ़ते जाते हैं और अपनी जिंदगी में मग्न हो जाते हैं.

लेकिन अपने टीचर्स को याद नहीं रखते. उन्हें थैंक्यू भी नहीं कहते. यह सीन देख कर एक बार अगर वाकई आपने महसूस किया होगा कि जिंदगी में आपने गुरु की मदद से कुछ सीखा है तो उन्हें एक बार शुक्रिया अवश्य कहना ही चाहिए. वे उस सम्मान के हकदार है. फिल्म में यह भी खूबसूरती से दर्शाया गया है कि किसी बच्चे को अगर पढ़ने में मन न लगे तो मार या डांट उपाय नहीं है. साथ ही किस तरह गणित जैसे विषय को भी जटिल से सरल बनाया जा सकता है. शबाना आजिमी और जूही चावला ने फिल्म में सरलता से अपने किरदार को जिया है.

उनकी सरलता और सहजता इस फिल्म को देखने में दर्शकों की रुचि बरकरार रखेंगे. दिव्या दत्ता ने भी बेहतरीन अभिनय किया है. अच्छे विषय होने के बावजूद फिल्म में निर्देशन में कमियां नजर आयी हैं. अगर इसे और बेहतरीन तरीके से गढ़ा जाता तो कहानी और अच्छी बन सकती थी. ऋचा चड्डा ने चंद दृश्यों में भी प्रभावित किया है. ऋषि कपूर अतिथि भूमिका में हैं. जैकी और आर्य बब्बर चंद दृश्यों में ही नजर आये हैं. इस फिल्म की यह भी एक खास बात है कि फिल्म का सारा दारोमनदार महिला पात्रों ने ही निभाया है.

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