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“मुझे तोड़ लेना बनमाली…” स्वतंत्रता संग्राम के महाकवि, देशभक्ति की प्रखर आवाज माखनलाल चतुर्वेदी को जयंती पर नमन

Makhanlal Chaturvedi Birth Anniversary 2025 in Hindi: "मुझे तोड़ लेना बनमाली…" जैसी पंक्तियों में माखनलाल चतुर्वेदी का समर्पण, त्याग और देशभक्ति झलकती है. 4 अप्रैल को जन्मे इस कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी ने अपनी कलम को आजादी की लड़ाई का हथियार बना दिया. मध्यप्रदेश के बाबई में जन्मे माखनलाल जी ने शिक्षक से साहित्यकार और फिर राष्ट्रसेवक की यात्रा तय की. वे मानते थे कि विचारों की क्रांति ही समाज को बदल सकती है, और उन्होंने जीवनभर यही प्रयास किया.

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Makhanlal Chaturvedi Birth Anniversary 2025 in Hindi:

“मुझे तोड़ लेना बनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पर जाएं वीर अनेक!”

स्वतंत्रता संग्राम के कवि, पत्रकार और राष्ट्रभक्त को जन्म जयंती पर श्रद्धांजलि

इस एक पंक्ति में वह समर्पण, वह त्याग और वह देशभक्ति समाहित है, जो माखनलाल चतुर्वेदी के सम्पूर्ण जीवन का सार है. आज, 4 अप्रैल को उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी को आजादी की लड़ाई का हथियार बना दिया. 

शब्दों के योद्धा: जन्म और प्रारंभिक जीवन

माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक कस्बे में हुआ था. शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले माखनलाल जी ने जल्द ही शिक्षा और साहित्य दोनों को देश सेवा का माध्यम बना लिया. उनका मानना ​​था कि ज्ञान और विचार ही समाज में वास्तविक क्रांति ला सकते हैं.  

Makhanlal Chaturvedi Birth Anniversary in Hindi: छायावादी युग की ओजस्वी वाणी

हिंदी साहित्य में छायावाद के चार प्रमुख स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत और माखनलाल चतुर्वेदी माने जाते हैं. लेकिन माखनलाल जी की कविता कल्पना की दुनिया तक सीमित नहीं थी. उनकी वाणी में क्रांति की आग और देशभक्ति की चेतना समान रूप से विद्यमान थी. उनकी प्रमुख काव्य कृतियां थीं – ‘हिम किरीटिनी’, ‘सपनों के से दिन’, ‘आहुति’ और ‘युग की प्रवृत्ति’, जो आज भी प्रासंगिक हैं. 

पत्रकारिता से लेकर जन जागरण तक

वे कवि ही नहीं, बल्कि जुझारू पत्रकार भी थे. ‘प्रताप’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रभा’ जैसे समाचार-पत्रों के माध्यम से उन्होंने अपनी कलम से ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मोर्चा खोला. उनकी पत्रकारिता में साहस, बेबाकी और जन-सरोकार की गूंज थी. कई बार उन्हें अपनी लेखनी के कारण जेल भी जाना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी कलम को कभी झुकने नहीं दिया. 

स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान

गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर माखनलाल चतुर्वेदी ने असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन और नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों में भाग लिया. उन्होंने न केवल खुद संघर्ष किया, बल्कि युवाओं को आंदोलन से जोड़ने का भी काम किया. 

सम्मान और योगदान का राष्ट्रीय मूल्यांकन

उनके साहित्यिक योगदान को देश ने भी मान्यता दी. उन्हें उनकी कृति ‘हिम तरंगिनी’ के लिए 1955 में हिंदी में पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार ला. 1963 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था.  उनके नाम पर भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जो आज पूरे देश में पत्रकारिता का अग्रणी संस्थान है. 

उनकी रचनाएंआज भी प्रासंगिक हैं

आज जब देश एक नए सामाजिक और राजनीतिक परिवेश से गुजर रहा है, तब माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं हमें सिखाती हैं कि सच्ची देशभक्ति आत्म बलिदान, सत्य और सिद्धांतों की रक्षा में निहित है. उनका साहित्य प्रेरणास्रोत है – पत्रकारों, लेखकों और आम नागरिकों के लिए भी. 

‘पुष्प की अभिलाषा’ के अलावा ‘हिम तरंगिनी’ भी माखनलाल जी की कालजयी काव्य कृति है

माखनलाल चतुर्वेदी को ज्यादातर लोग उनकी प्रसिद्ध कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ के लिए जानते हैं, लेकिन उनके कविता संग्रह ‘हिम तरंगिनी’ ने भी साहित्य जगत में गहरी छाप छोड़ी है. इस संग्रह के लिए उन्हें 1955 में पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. ‘हिम तरंगिनी’ में हिमालय को सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि भारतीय जीवन मूल्यों – पवित्रता, त्याग और आत्मविश्वास का प्रतीक बताया गया है. ये कविताएं प्रकृति के माध्यम से देशभक्ति, नैतिक चेतना और आध्यात्मिक ऊंचाई को व्यक्त करती हैं. यह संग्रह माखनलाल जी की विचारशीलता और छायावादी शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

जयंती पर श्रद्धांजलि

आज उनकी जयंती पर हम न केवल उन्हें याद करें, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन और कार्य में शामिल भी करें क्योंकि माखनलाल चतुर्वेदी सिर्फ कवि नहीं थे, वे विचारों की मशाल थे और एक दूरदर्शी व्यक्ति जिसकी रोशनी आज भी दिशा दिखा रही है.

पढ़ें: ‘मुझे लिखना बहुत था, बहुत कम लिख पाया’, ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर विनोद कुमार शुक्ल की पहली प्रतिक्रिया

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