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Mahatma Jyotiba Phule Jayanti 2025: कम उम्र में छोड़ना पड़ा था स्कूल…फिर ऐसे बने भारत के ‘महान समाज सुधारक’

Mahatma Jyotiba Phule Jayanti 2025: महात्मा ज्योतिबा फुले को कम उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई. लड़कियों की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और जातिवाद के खिलाफ उनके संघर्ष ने उन्हें भारत का महान समाज सुधारक बना दिया. उनकी जयंती प्रेरणा का प्रतीक है.

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Mahatma Jyotiba Phule in Hindi: महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती हर वर्ष 11 अप्रैल को मनाई जाती है. महात्मा फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था. ज्योतिबा फुले बचपन से ही प्रतिभाशाली थे लेकिन वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्हें कम उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा. हालांकि, बाद में जब उन्हें शिक्षा की ताकत का एहसास हुआ तो वर्ष 1841 में पुणे के स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल में फिर से दाखिला लिया और वहां से पढ़ाई पूरी की. अब वह भारत के महान समाज सुधारक के रूप में जाने जाते हैं. आइए जानते हैं कि महात्मा ज्योतिबा फुले (Mahatma Jyotiba Phule Jayanti in Hindi) की शिक्षा और उनके योगदान के बारे में.

महात्मा ज्योतिबा फुले के बारे में (Mahatma Jyotiba Phule in Hindi)

महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म वर्ष 1827 में महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के कटगुन गांव में हुआ था. वे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता थे. वे उन शुरुआती नेताओं में से थे जिन्होंने जाति व्यवस्था और सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज उठाई. वे एक ऐसी जाति से आते थे जिसे समाज में बहिष्कृत माना जाता था लेकिन फिर भी उन्होंने शिक्षा और सुधार का रास्ता अपनाया.

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ऐसे मिली थी महात्मा की उपाधि (Mahatma Jyotiba Phule Biography in Hindi)

उनकी पढ़ाई एक ईसाई मिशनरी स्कूल में हुई थी. 1873 में उन्होंने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जातिगत भेदभाव को खत्म करना और निम्न वर्गों के लोगों को न्याय दिलाना था. यह समाज सत्य की खोज और समानता के प्रचार पर आधारित था. वर्ष 1888 में विट्ठलराव कृष्णजी वंदेकर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी, जिसका मतलब होता है – ‘महान आत्मा’. महात्मा फुले ने भेदभाव, जाति भेद, और छुआछूत जैसी कुप्रथाओं का विरोध किया और पवित्रता और अशुद्धता के झूठे नियमों को नकारा.

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महात्मा ज्योतिबा फुले का योगदान क्या है? (Mahatma Jyotiba Phule Jayanti in Hindi)

  • 1 जनवरी 1848 को उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर पुणे के भिड़े वाड़ा में देश का पहला स्वदेशी स्कूल खोला, जो खासतौर पर लड़कियों के लिए था
  • इस स्कूल में खुद ज्योतिबा और सावित्रीबाई पढ़ाते थे। तब सावित्रीबाई की उम्र सिर्फ 17 साल थी.
  • वर्ष 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ नाम की संस्था का गठन किया. इसका अर्थ था ‘सत्य के साधक’. इस संगठन के जरिये उन्होंने महाराष्ट्र में निम्न वर्गों को समान सामाजिक और आर्थिक अधिकार पाने के लिए जागरूक किया. 
  • 1873 में फुले ने गुलामगिरी नामक पुस्तक लिखी, जिसका अर्थ है गुलामी.
  • महात्मा ज्योतिराव फुले की लगभग 15 अन्य उल्लेखनीय प्रकाशित रचनाएं हैं.
  • ज्योतिराव फुले ने उच्च जाति की महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव और मजदूरों की दुर्दशा के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी. यह दर्शाता है कि उन्होंने सभी प्रकार की असमानता के खिलाफ तर्क दिया.
  • ज्योतिबा फुले के कार्यों से प्रभावित होकर समाज सुधारक विट्ठलराव कृष्णाजी वंदेकर ने उन्हें महात्मा की उपाधि दी.

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