अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) से वैश्विक व्यापार में भारी हलचल मच गई है, जिसका सीधा असर भारत पर भी पड़ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 1 अगस्त से भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जिससे भारत के कई प्रमुख उद्योग जैसे कपड़ा, रत्न, आभूषण, फार्मा और सिरेमिक सीधे प्रभावित हो रहे हैं। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर कई महीनों से बातचीत चल रही थी। 7 अगस्त से नई टैरिफ दरें प्रभावी हो रही हैं, जिससे दुनिया भर के 120 से अधिक देश प्रभावित होंगे, जिनमें भारत भी शामिल है। इस कदम से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और व्यावसायिक रणनीतियों पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है, साथ ही अमेरिका और भारत के व्यापारिक संबंधों में भी तनाव बढ़ रहा है।
अमेरिकी टैरिफ से वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल, भारत पर भी गहरा असर
टैरिफ क्या हैं और उनका उद्देश्य
टैरिफ एक प्रकार का कर है जो कोई देश दूसरे देश से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाता है. इसका मुख्य उद्देश्य सरकार के लिए राजस्व बढ़ाना और घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना होता है. जब कोई विदेशी सामान देश में सस्ती दर पर उपलब्ध होता है और घरेलू कंपनियां उसे महंगे दाम पर बेचती हैं, तो ऐसे में घरेलू कंपनियों के लिए विदेशी उत्पादों से मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है. यहीं पर सरकार टैरिफ का उपयोग करती है, जिससे आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं और घरेलू उत्पादों को समान अवसर मिल पाता है.
अमेरिकी टैरिफ नीति का हालिया घटनाक्रम
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारत सहित कई व्यापारिक साझेदारों से आयात पर नए टैरिफ लगाए जाएंगे. ये टैरिफ 10% से 41% तक हैं और 7 अगस्त, 2025 से लागू होंगे. ट्रंप प्रशासन का यह कदम उनकी “पारस्परिक टैरिफ” रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य उन देशों पर जवाबी शुल्क लगाना है जो अमेरिकी उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगाते हैं. भारत पर 25% का टैरिफ लगाया गया है. ट्रंप ने तर्क दिया है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ लगाता है, और इसलिए भारतीय सामानों पर भी टैरिफ में बढ़ोतरी होनी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा है कि रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीदने को लेकर भारत पर जुर्माना भी लगाया जाएगा.
वैश्विक व्यापार पर व्यापक प्रभाव
ट्रंप की नई टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में बड़ी हलचल पैदा कर दी है. विकसित और विकासशील, दोनों तरह के देश इससे प्रभावित हुए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति में शायद कोई विजेता नहीं होगा और ज्यादातर देशों को नुकसान झेलना पड़ेगा. स्वयं अमेरिका को भी इससे अछूता नहीं माना जा रहा है. अमेरिका में कीमतें बढ़ी हैं और आम जनता पर आर्थिक बोझ पड़ा है. न्यूयॉर्क लॉ स्कूल में सेंटर फॉर इंटरनेशनल लॉ के सह-निदेशक बैरी एपलटन के अनुसार, “इस नीति में शायद कोई भी विजेता न हो. ज्यादातर देशों को नुकसान झेलना पड़ेगा और अमेरिका भी इससे अछूता नहीं रहेगा.” यह कदम अमेरिका की वैश्विक भूमिका को भी बदल सकता है, क्योंकि अन्य देश अब अपने हिसाब से फैसले ले रहे हैं और अमेरिका अब वैश्विक एजेंडा तय नहीं कर रहा है.
भारत पर अमेरिकी टैरिफ का असर
भारत, जो अमेरिका का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, इस नए टैरिफ से काफी प्रभावित हो सकता है. भारत और अमेरिका के बीच लगभग 130 अरब डॉलर का व्यापार होता है, जिसमें से अमेरिका भारत से लगभग 87 अरब डॉलर के उत्पादों का आयात करता है. अब भारत का 87 अरब डॉलर का निर्यात संबंध दांव पर है. यह 25% का टैरिफ भारतीय कंपनियों के लिए भारी नुकसान का कारण बन सकता है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ने की आशंका है. अन्य प्रभावित उद्योगों में सिरेमिक, फार्मा (हालांकि फार्मा सेक्टर को अभी तक छूट सूची में रखा गया है), ऑटो पार्ट्स और जेम्स-ज्वेलरी शामिल हैं.
- इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी सेक्टर: भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले स्मार्टफोन्स, लैपटॉप, सर्वर और टैबलेट्स की मांग बढ़ी थी, लेकिन अब यह सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है.
- टेक्सटाइल सेक्टर: भारत से होने वाले कुल टेक्सटाइल निर्यात का 28% अकेले अमेरिका को जाता है. टैरिफ लगने के बाद भारतीय कपड़ा उद्योग को प्रतियोगिता में नुकसान हो सकता है, विशेषकर वियतनाम जैसे देशों से, जिन पर वर्तमान में कम टैरिफ (19%) लग रहा है.
- सिरेमिक उद्योग: गुजरात के मोरबी में बनी टाइल्स को टैरिफ के कारण बड़ा झटका लग सकता है. मोरबी से सालाना लगभग 1500 करोड़ रुपये से अधिक टाइल्स का निर्यात होता है, जिसमें अमेरिका एक बड़ा बाजार है. टैरिफ के बाद मांग में कमी आ सकती है.
भारत और अमेरिका के व्यापारिक आंकड़ों में भी कुछ विसंगतियां सामने आई हैं. अमेरिकी आंकड़े लगातार भारत से आयात को भारत के निर्यात रिकॉर्ड से ज्यादा दिखाते हैं, जिससे 6 से 8 अरब डॉलर का अंतर सामने आया है.
विभिन्न हितधारकों के विचार और भारत की प्रतिक्रिया
भारत सरकार का कहना है कि नई टैरिफ दरों से भारत की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर नहीं होगा, और सबसे खराब स्थिति में भी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में केवल 0. 2 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है. भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह कृषि, मांसाहारी डेयरी उत्पादों, आनुवांशिक रूप से परिवर्तित फसलों और धार्मिक भावनाओं से जुड़े मामलों पर कोई समझौता नहीं करेगा. वहीं, भारतीय व्यापार विशेषज्ञों का कहना है कि यह अमेरिकी कार्यवाही ज्यादा राजनीतिक दिखाई दे रही है, जिसका सीधा संबंध अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों और अमेरिका-रूस डील से जोड़ा जा रहा है. कांग्रेस ने टैरिफ के मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मनमानी को लेकर तीखा हमला बोला है और कहा है कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं से भारत के हित जुड़े हैं, ऐसे में भारत मूकदर्शक नहीं बना रह सकता.
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की रिपोर्टें बताती हैं कि अमेरिका खुद कुछ खास वस्तुओं के आयात पर दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाता है, जैसे डेयरी, तंबाकू और खाद्य उत्पाद, जिन पर 350% तक का भारी टैरिफ लागू होता है. वहीं, भारत का साधारण औसत टैरिफ 17% है.
हालांकि, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध ने भारत के लिए कुछ अवसर भी पैदा किए हैं. अमेरिका और चीन दोनों के एक-दूसरे के उत्पादों पर टैरिफ लगाने से, भारत वैश्विक बाजारों में उत्पन्न हुए अंतर को भर सकता है. इससे भारत के लिए अमेरिका को वस्त्र, गारमेंट्स, ऑटो पार्ट्स और रक्षा मशीनरी जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलता है. इसके साथ ही, चीन के बाजार में भी विस्तार की संभावना है, क्योंकि चीन ने भारत जैसे देशों से आयात पर टैरिफ कम किए हैं, जिससे भारत को चीनी बाजारों में अमेरिकी वस्तुओं को बदलने का अवसर मिल सकता है.
| देश | अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ (%) (लगभग) |
|---|---|
| भारत | 25% |
| चीन | 34% |
| यूरोपीय संघ | 10%-41% (कुछ रियायतों के साथ) |
| वियतनाम | 46% |
| ताइवान | 32% |
| जापान | 24% |
| कनाडा | 35% |
| ब्राजील | 10%-50% |
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