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बाजार से 10–20 रुपये के नोट गायब! छोटे नोटों की किल्लत से आम आदमी बेहाल

Currency Crisis: देशभर में 10, 20 और 50 रुपये के छोटे नोटों की भारी किल्लत से आम लोग परेशान हैं. अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ ने आरबीआई को पत्र लिखकर चिंता जताई है. एटीएम और बैंक शाखाओं से छोटे नोट नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे रोजमर्रा के नकद लेनदेन, स्थानीय परिवहन और छोटे कारोबार प्रभावित हो रहे हैं. संघ ने आरबीआई से तत्काल हस्तक्षेप, छोटे नोटों के बेहतर वितरण और कॉइन मेला दोबारा शुरू करने की मांग की है.

Currency Crisis: देश में छोटे मूल्य वाले नोटों की भारी किल्लत सामने आ रही है. अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ (एआईआरबीईए) ने इसे लेकर गंभीर चिंता जताई है. संघ का कहना है कि 10, 20 और 50 रुपये के नोट देश के कई हिस्सों से लगभग गायब हो चुके हैं, जिससे आम लोगों के साथ-साथ छोटे कारोबारियों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. यह समस्या खास तौर पर कस्बों और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा गंभीर बताई जा रही है.

आरबीआई को लिखा गया पत्र

एआईआरबीईए ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक पत्र लिखकर इस समस्या की ओर ध्यान दिलाया है. यह पत्र आरबीआई के मुद्रा प्रबंधन विभाग के प्रभारी डिप्टी गवर्नर टी रबी शंकर को संबोधित किया गया है. कर्मचारी संघ का दावा है कि जहां एक ओर 100, 200 और 500 रुपये के नोट आसानी से उपलब्ध हैं. वहीं, छोटे मूल्य वाले नोटों की उपलब्धता लगभग नगण्य हो गई है.

एटीएम और बैंक शाखाओं से नहीं मिल रहे छोटे नोट

कर्मचारी संघ ने पत्र में यह भी बताया कि एटीएम से निकलने वाले अधिकतर नोट उच्च मूल्य के होते हैं. आमतौर पर एटीएम से 200 या 500 रुपये के नोट ही मिलते हैं. इसके अलावा, बैंकों की शाखाएं भी ग्राहकों को 10, 20 या 50 रुपये के नोट उपलब्ध कराने में असमर्थ नजर आ रही हैं. इससे नकद लेनदेन करने वाले लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं.

रोजमर्रा की जरूरतों पर पड़ा असर

छोटे नोटों की कमी का सीधा असर आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ रहा है. स्थानीय परिवहन में किराया चुकाना मुश्किल हो गया है. किराने और सब्जी की खरीदारी में दुकानदार और ग्राहक दोनों परेशान हैं. छोटे दुकानदारों के पास छुट्टे न होने से लेनदेन में बार-बार विवाद की स्थिति बन रही है. एआईआरबीईए के अनुसार, छोटे मूल्य वाले नोटों के बिना दैनिक जरूरतों के लिए नकद लेनदेन करना बेहद कठिन हो गया है.

डिजिटल भुगतान पूरी तरह समाधान नहीं

कर्मचारी संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही सरकार और बैंक डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दे रहे हों, लेकिन यह समस्या का पूरा समाधान नहीं है. संघ के मुताबिक, देश की एक बड़ी आबादी आज भी रोजमर्रा के छोटे खर्चों के लिए नकद पर निर्भर है. ग्रामीण इलाकों, बुजुर्गों और छोटे व्यापारियों के लिए डिजिटल भुगतान हर जगह व्यवहारिक विकल्प नहीं बन पाया है.

चलन में मुद्रा बढ़ी, फिर भी छोटे नोट गायब

एआईआरबीईए ने एक अहम तथ्य की ओर भी ध्यान दिलाया है. संघ के मुताबिक, डिजिटल भुगतान बढ़ने के बावजूद चलन में मौजूद कुल मुद्रा लगातार बढ़ रही है. इसके बावजूद छोटे मूल्य वाले नोट बाजार में नजर नहीं आ रहे हैं, जो मुद्रा प्रबंधन पर सवाल खड़े करता है.

सिक्कों से भी नहीं मिली राहत

छोटे नोटों की जगह सिक्कों के उपयोग को बढ़ावा देने की कोशिशें भी अब तक सफल नहीं हो पाई हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह सिक्कों की पर्याप्त उपलब्धता न होना और लोगों की सीमित स्वीकार्यता बताई जा रही है. नतीजतन, छोटे लेनदेन की समस्या जस की तस बनी हुई है.

आरबीआई से तत्काल हस्तक्षेप की मांग

कर्मचारी संघ ने इस पूरे मामले में केंद्रीय बैंक से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है. एआईआरबीईए का कहना है कि वाणिज्यिक बैंकों और आरबीआई काउंटरों के जरिये छोटे नोटों का पर्याप्त वितरण सुनिश्चित किया जाए. एटीएम में भी छोटे मूल्य वाले नोट शामिल किए जाएं.

कॉइन मेला दोबारा शुरू करने का सुझाव

समस्या के समाधान के लिए संघ ने ‘कॉइन मेला’ दोबारा शुरू करने का सुझाव भी दिया है. इन मेलों को पंचायतों, सहकारी संस्थाओं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्वयं सहायता समूहों
के सहयोग से आयोजित किया जा सकता है, ताकि सिक्कों और छोटे नोटों का व्यापक प्रचलन हो सके.

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आम आदमी के लिए कब मिलेगी राहत?

छोटे नोटों की किल्लत ने यह साफ कर दिया है कि नकद अर्थव्यवस्था आज भी आम आदमी की जरूरत है. अब देखना यह है कि आरबीआई और बैंकिंग सिस्टम इस संकट से निपटने के लिए कितनी जल्दी ठोस कदम उठाते हैं, ताकि आम लोगों और छोटे कारोबारियों को राहत मिल सके.

भाषा इनपुट के साथ

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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