Savings Tips: अकसर हम सोचते हैं कि इस महीने खर्च कम करेगें, लेकिन यह वादा अक्सर महिना शुरू होते ही हफ्ते भर में टूट जाता है. इसका मतलब यह नहीं कि हम अनुशासनहीन (undisciplined) हैं, बल्कि हमारे खर्च हमारी आदतों, मूड और दिनचर्या से जुड़े होते हैं. जब हम समझते हैं कि हम क्यों खर्च करते हैं और धीरे-धीरे इसे बदलते हैं, तब बचत करना आसान और स्वाभाविक हो जाता है. तो आईए आज हम बताते है कि कैसे हम अपने फिजूल खर्च को कंट्रोल कर सकते हैं.
खर्च को ट्रैक करना क्यों जरूरी है?
कई लोग खर्च को नोट करना बोरिंग और समय की बर्बादी कहते हैं. लेकिन जब हम अपने खर्च को देखते हैं, तो पता चलता है कि छोटी-छोटी चीजें जैसे स्नैक्स, ऑनलाइन डील्स, या डिजिटल सब्सक्रिप्शन जैसी चीजे हमारे खर्च को और कितना ज्यादा बढ़ा देती हैंं. ट्रैक करना खुद को रोकने का तरीका नहीं है, बल्कि हम अपने पैसे कहां खर्च रहे है उसपर नजर रखने का है. अगर ज्यादा खर्च रहे है कहीं पर तो उसपर कंट्रोल करने का है. इसलिए हमे अपने खर्चों को ट्रैक करना जरूरी है, तभी आप पता लगा पायेगें की आप आखिर सही जगह खर्च रहे है या नहीं.
इमोशनल खर्च को कैसे समझें?
कई बार हम तनाव, बोरियत या अकेलेपन में ना चाहते हुए भी खरीदारी कर लेते हैं. समस्या खर्च की नहीं है या फिर अकेलेपन या बोरियत में की गई खरीदारी का नहीं है, बल्कि इसे बिना सोचे-समझे करना बड़ी समस्या है. जब हम अपने ट्रिगर्स पहचान लेते हैं, तो खर्च पर कंट्रोल वापस आता है. इसलिए कोशिश करें खुद कर ध्यान देने की. चाहे तो आप नये दोस्त बना सकते है या खाली समय में कुछ क्रिएटिव कर सकते हैं. जिससे आपका मन लगा रहेगा और आपको तनाव, बोरियत या अकेलेपन जैसी प्रॉब्लेम्स से कम जूझना पड़ेगा. इससे आप अपने इमोशन्स पर तो कंट्रोल पा ही सकते हैं और साथ ही इमोशनल खर्च पर भी कंट्रोल कर पायेगे.
पहले बचत करें, फिर खर्च
ज्यादातर लोग बचत तभी करते हैं जब पैसे बचे हों. लेकिन अगर आप अपने सैलरी आते ही सीधे बचत खाते में पैसे डाल दें, तो बचत एक आदत बन जाती है. इससे बाकी खर्च अपने आप संतुलित हो जाते हैं और पैसे बचाना आसान हो जाता है.
लाइफस्टाइल बढ़ने से कैसे बचें?
जैसे-जैसे आय बढ़ती है, खर्च भी बढ़ जाता है. लेकिन अगर आप कुछ महीने अपने जीवनशैली को वैसा ही बनाए रखें, तो बढ़ी हुई आय सीधे बचत में चली जाती है. यह छोटा कदम लंबी अवधि में आपकी फाइनेंशियल कन्डिशन को मजबूत बनाता है.
बचत का मतलब अपने आप को रोकना नहीं, बल्कि समझदारी से खर्च करना है. जब खर्च सोच-समझकर होता है, बचत अपने आप बढ़ती है और फाइनेंशियल फ्रीडम भी आती है.
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