Rupee Depreciation: हर कुछ महीनों में भारतीय रुपया चर्चा में आ ही जाता है, और अक्सर इसकी वजह अच्छी नहीं होती है. हाल ही में रुपया 3 पैसे गिरकर 88.73 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है. अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने और फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल के रेट कट पर संदेह जताने के बाद रुपये पर दबाव बढ़ गया है. इससे पहले भी विदेशी निवेश में कमी, नए जीएसटी रेट और अमेरिका की टैक्स नीतियों जैसे कारणों से रुपया कमजोर हुआ था.
रुपया गिरता है… तो हमें फर्क क्यों पड़ता है?
जब रुपये की कीमत गिरती है तो विदेश यात्रा, विदेश में जा कर पढ़ाई करना, दवाइयां और ऑनलाइन शॉपिंग भी महंगी हो जाती है. यहां तक कि विदेशों में किए गए निवेश की लागत बढ़ जाती है. असल में, रुपये की गिरावट हमारी क्रय शक्ति यानी पैसे की ताकत को धीरे-धीरे कम कर देती है. यही वजह है कि सिर्फ रुपये पर आधारित निवेश कभी-कभी रिस्की साबित हो सकता है.
ALSO READ: 19 नवंबर को आने वाली PM Kisan 21वीं किस्त, करा ले ये जरूरी काम नहीं तो हाथ से जाएगा पैसा
क्या सिर्फ भारत में निवेश काफी है?
भारत में बहुत संभावनाएं हैं जैसे बड़े प्रोजेक्ट, डिजिटल ग्रोथ और बढ़ती अर्थव्यवस्था. लेकिन यह भी सच है कि भारत एक उभरता बाजार है, जहां नीतियां बदलती रहती हैं और कई बार अनिश्चितता भी बनी रहती है. ऐसे में निवेशकों के लिए जरूरी है कि वे अपनी संपत्ति का एक हिस्सा विदेशी बाजारों में भी लगाए, ताकि किसी एक देश या मुद्रा पर पूरी निर्भरता न रहे.
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट क्यों बढ़ रही है ट्रेंड में?
दुनिया की सबसे बड़ी और इनोवेटिव कंपनियां जैसे Apple, Google, Microsoft या NVIDIA भारतीय शेयर बाजार में लिस्टेड नहीं हैं. अगर युवा निवेशक ऐसी ग्रोथ का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय निवेश से जुड़ना ही होगा. इसके अलावा, डॉलर में निवेश करने से रुपया कमजोर होने पर भी फायदा मिलता है.
ALSO READ: Promoter की बड़ी बिकवाली के बाद भी Sagility शेयर में जबरदस्त उछाल
Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

