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दुनिया में तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की स्पीड पर लग सकता है ब्रेक? जानें क्या कहते हैं Expert

दूसरी तिमाही में 15.2 फीसदी के औसत पूर्वानुमान से इस तिमाही की वृद्धि दर तेजी से धीमी होकर सालाना 6.2 फीसदी रहने का अनुमान है, जो अक्टूबर-दिसंबर में 4.5 फीसदी तक और गिरावट होने से पहले मुख्य रूप से नई गति के बजाय एक साल पहले सांख्यिकीय तुलना द्वारा समर्थित है.

नई दिल्ली : दुनिया में तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था की गति में थोड़ा ब्रेक लग सकता है. हालांकि, भारत ने पिछली तिमाही में दोहरे अंकों में आर्थिक वृद्धि दर्ज की है, लेकिन आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में आधे फीसदी बढ़ोतरी से इस तीव्रता में विराम लगने की आशंका जाहिर की जा रही है. आर्थिक विशेषज्ञों की मानें, तो साल के अंत तक अर्थव्यवस्था में धीमी गति से आगे की ओर बढ़ती दिखाई देगी. मीडिया की रिपोर्ट्स की मानें, तो एशिया की तीसरी सबसे बड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार उच्च बेरोजगारी और मुद्रास्फीति से जूझ रही है, जो आरबीआई के अनुमान के अनुसार सबसे अधिक है. आरबीआई ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वर्ष 2022 में पूरे साल महंगाई से निजात मिलने की उम्मीद नहीं है.

ठोस विकास दर में कमी से अर्थव्यवस्था की गति होगी धीमी

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, दूसरी तिमाही में 15.2 फीसदी के औसत पूर्वानुमान से इस तिमाही की वृद्धि दर तेजी से धीमी होकर सालाना 6.2 फीसदी रहने का अनुमान है, जो अक्टूबर-दिसंबर में 4.5 फीसदी तक और गिरावट होने से पहले मुख्य रूप से नई गति के बजाय एक साल पहले सांख्यिकीय तुलना द्वारा समर्थित है. हालांकि, चालू वर्ष 2022 में औसतन 7.2 फीसदी की दर से आर्थिक वृद्धि की उम्मीद जाहिर की जा रही थी, लेकिन आने वाले महीनों में ठोस विकास दर में कमी की वजह से अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने की आशंका जाहिर की जा रही है.

घरेलू खपत में तेजी से आ रही गिरावट

सोसायटी जनरल में भारत के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू ने कहा कि भले ही भारत दुनिया में तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, लेकिन आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए घरेलू स्तर पर खपत पर्याप्त मजबूत नहीं होगी. इसका कारण यह है कि भारत में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड स्तर पर बनी हुई है और श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी निम्न स्तर पर है. इस कारण लोगों की क्रयशक्ति में गिरावट दर्ज होगी, जिसका अर्थव्यवस्था पर असर दिखाई देगा. हालांकि, निवेश को बढ़ावा देकर सरकार ने विकास के केवल एक इंजन को चालू किया है, लेकिन घरेलू खपत को बढ़ावा देने के मामले में वह पिछड़ गई है. यही कारण है कि भारत की आर्थिक वृद्धि अब भी महामारी के पूर्व स्तर से भी नीचे बनी हुई है. भारतीय अर्थव्यवस्था में अभी इतनी भी तेजी नहीं आई है कि हर साल करीब एक करोड़ से अधिक लोगों को श्रमशक्ति के तौर पर शामिल किया जा सके.

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मार्च तक रेपो रेट में 0.60 फीसदी वृद्धि कर सकता है आरबीआई

उधर, वैश्विक आर्थिक मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था महंगाई दर को निर्धारित लक्ष्य पर स्थिर करने के लिए अपनी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट में लगातार बढ़ोतरी कर रहा है. उम्मीद यह भी जाहिर की जा रही है कि भारत का केंद्रीय बैंक अगले साल के मार्च तक रेपो रेट में 60 बेसिस प्वाइंट या फिर 0.60 फीसदी तक बढ़ोतरी कर सकता है. हालांकि, मई से लेकर अब तक आरबीआई ने रेपो रेट में करीब 140 बेसिस प्वाइंट या फिर 1.40 फीसदी तक बढ़ोतरी कर दी है. मार्च 2023 में तक अगर वह इसमें 0.60 फीसदी तक बढ़ोतरी करता है, तो एक वित्त वर्ष के दौरान रेपो रेट में अब तक की सबसे अधिक और तेज वृद्धि होगी.

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