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EMI moratorium की डेडलाइन सितंबर में समाप्त होने पर बैंकों की बढ़ सकती है एनपीए, SBI के अर्थशास्त्रियों ने दी चेतावनी

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि शेयर बाजार में आ रही तेजी को आर्थिक स्थिति में सुधार से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, यह अतार्किक उत्साह के संकेत ही हो सकते हैं. अर्थशास्त्रियों ने इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के प्रभावित क्षेत्रों के लिए दूसरे दौर के वित्तीय समर्थन पर भी जोर दिया है. उन्होंने चेतावनी देते हुए भी कहा है कि बैंक सितंबर के बाद जब कर्ज वापसी पर लगी छह महीने की रोक (EMI moratorium) अवधि (Deadline) समाप्त हो जायेगी, गैर- निष्पादित आस्तियां (NPA) के बढ़े हुए आंकड़े जारी कर सकते हैं.

मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि शेयर बाजार में आ रही तेजी को आर्थिक स्थिति में सुधार से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, यह अतार्किक उत्साह के संकेत ही हो सकते हैं. अर्थशास्त्रियों ने इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के प्रभावित क्षेत्रों के लिए दूसरे दौर के वित्तीय समर्थन पर भी जोर दिया है. उन्होंने चेतावनी देते हुए भी कहा है कि बैंक सितंबर के बाद जब कर्ज वापसी पर लगी छह महीने की रोक (EMI moratorium) अवधि (Deadline) समाप्त हो जायेगी, गैर- निष्पादित आस्तियां (NPA) के बढ़े हुए आंकड़े जारी कर सकते हैं.

कोविड-19 प्रसार (COVID19 spread) के शुरुआती दिनों में शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गयी. इस दौरान बाजार 20 फसदी से अधिक तक गिर गये थे. इसके बाद पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान बाजार चढ़े हैं और उन्होंने नुकसान की कुछ भरपाई की है. मजेदार बात यह है कि विश्लेषकों के बीच जब जीडीपी में गिरावट आने की चर्चा जोर पकड़ रही है, तब बाजार चढ़ रहे हैं. कुछ विश्लेषकों ने तो यहां तक कहा है कि 2020- 21 के दौरान जीडीपी पांच फीसदी तक गिर सकती है.

अर्थशास्त्रियों ने एक नोट में कहा है कि तेजी से चढ़ते बाजार और आर्थिक स्थिति में सुधार के बीच कमजोर जुड़ाव दिखाई देता है. यह जो स्थिति दिखाई दे रही है वह मोटे तौर पर ‘अतार्किक उत्साह’ ही हो सकता है. उन्होंने कहा कि बाजार में आ रही तेजी के पीछे रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध करायी जा रही सरल नकदी का भी योगदान हो सकता है.

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि बाजार यदि अच्छे हैं, तो का मतलब बेहतर अर्थव्यवस्था नहीं हो सकता है. अर्थशास्त्री यह भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि के लिए भारत केवल कृषि क्षेत्र की बेहतरी पर ही निर्भर नहीं रह सकता है. उनका मानना है कि यदि कृषि क्षेत्र में 1951-52 में हासिल 15.6 फीसदी का सबसे बेहतर प्रदर्शन भी हासिल किया जाता है, तब भी जीडीपी में 2 फीसदी अंक की ही वृद्धि होगी. नोट में उन्होंने कहा है कि हमें कम से कम प्रभावित क्षेत्रों को समर्थन देने के लिए दूसरे दौर के वित्तीय समर्थन के बारे में सोचना चाहिए.

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बता दें कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा पहले ही कर दी है, लेकिन इसमें वास्तविक वित्तीय खर्च पैकेज का मात्र 10वां हिस्सा ही है. इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान उपभोक्ता के व्यवहार में रुचिकर बदलाव आया है. इसका भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए व्यापक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है. इस दौरान प्रति क्रेडिट कार्ड अथवा डेबिट कार्ड लेनदेन में कमी आई है.

इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन दौरान उपभोक्ताओं का लेनदेन लक्जरी सामानों की बजाय केवल दैनिक आवश्यक वस्तुओं तक ही सीमित रहा है. इस दौरान क्रेडिट कार्ड के मामले में प्रति कार्ड लेनदेन 12 हजार रुपये से घटकर 3,600 रुपये रह गया, जबकि डेबिट कार्ड से लेनदेन एक हजार से घटकर 350 रुपये रह गया. इसका आने वाले समय में बैंकों के एनपीए पर असर पड़ सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि बाद में परिवार के लोग सोने के बदले उधार लेना शुरू कर देंगे और यदि यह रूझान बढ़ता है कि बैंकों के सुरक्षित कर्ज का प्रतिशत बढ़ सकता है.

Posted By : Vishwat Sen

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