गत दिनों टाटा कम्युनीकेशन्स ने देश में पहला व्हाइट लेबल एटीएम मुंबई के पास शुरू किया. इसे ‘इंडीकैश’ नाम दिया गया है. आइए जानें क्या होता है व्हाइट लेबल एटीएम.
अभी तक इस देश में बैंक ही एटीएम चलाते थे. पर अब इस कारोबार में गैर बैंकिंग कंपनियां भी उतर रही हैं. गैर बैंकिंग निकाय की ओर से लगाये और चलाये जानेवाले इन एटीएम को ही व्हाइट लेबल एटीएम कहा जाता है. चूंकि इस तरह के एटीएम पर किसी बैंक का नाम नहीं होता, इसलिए इन्हें व्हाइट लेबल नाम दिया गया है. इन एटीएम में बैंकों के एटीएम की तरह ही सारी सुविधाएं होती हैं.
आम तौर पर जो एटीएम आप इस्तेमाल करते हैं, उनमें दो पक्ष शामिल होते हैं. एक पक्ष बैंक होता है जिसका यह एटीएम होता है. यही पक्ष एटीएम स्थापित करता है और इसका मालिक भी होता है. साथ ही यही इसे परिचालित भी करता है. वहीं दूसरा पक्ष अधिकृत पेमेंट नेटवर्क ऑपरेटर मसलन वीसा या मास्टर कार्ड होता है. व्हाइट लेबल एटीएम में तीन पक्ष शामिल होते हैं. चूंकि इसमें एटीएम लगानेवाला यानी मालिक पक्ष गैर बैंकिंग निकाय होता है, इसलिए एक पक्ष बढ़ जाता है.
व्हाइट लेबल एटीएम में बैंक मालिक की जगह प्रायोजक की भूमिका में होता है और नकदी प्रबंधन का काम संभालता है. रिजर्व बैंक की शर्तो के मुताबिक, 100 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा की विशुद्ध संपत्तिवाला कोई भी गैर बैंकिंग निकाय इसकी स्थापना के लिए आवेदन कर सकता है. इसके अलावा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को तृतीय और चतुर्थ श्रेणी शहरों में ज्यादा व्हाइट लेबल एटीएम खोलने होंगे. इसका मकसद देश में एटीएम नेटवर्क बढ़ाना है. व्हाइट लेबल एटीएम से पैसे निकालने के लिए ग्राहकों को कोई अतिरिक्त खर्च नहीं उठाना पड़ेगा.
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