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निवेश के मनोविज्ञान को समझें, यह है औसत रिटर्न की फिलॉसफी

बहुत से लोग मानते हैं कि निवेश एक बहुत ही सरल प्रक्रिया है. वे प्रचलित निवेश के मनोविज्ञान के तहत अपने निर्णय को सही मानते हुए अपने पैसे को किसी खास एसेट क्लास में लगा देते हैं और विपरीत समय में पैसे को निकाल लेते हैं. इसमें वे अपना नुकसान कर बैठते हैं. निवेश के […]

बहुत से लोग मानते हैं कि निवेश एक बहुत ही सरल प्रक्रिया है. वे प्रचलित निवेश के मनोविज्ञान के तहत अपने निर्णय को सही मानते हुए अपने पैसे को किसी खास एसेट क्लास में लगा देते हैं और विपरीत समय में पैसे को निकाल लेते हैं. इसमें वे अपना नुकसान कर बैठते हैं. निवेश के प्रचलित मनोविज्ञान को आज के कल्पवृक्ष में पेश किया जा रहा है, जिससे कि आप इससे बचें और एक सफल और समझदार निवेशक बन लाभ अर्जित कर सकें.
ललित त्रिपाठी, निदेशक, वेदांत एसेट्स
आज बाजार में काफी तेजी से उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. पिछले एक साल से इक्विटी फंड में रिटर्न बेहतर नहीं आ रहे. मिड कैप और स्मॉल कैप में भी रिटर्न निगेटिव में दिख रहें हैं. ऐसे में निवेशक जो दो-तीन साल पहले इनमें निवेश करते हुए बेहतर रिटर्न पा चुके थे और उसी फॉर्मूले के तहत इनमें निवेश बढ़ा दिये थे, वे आज निगेटिव रिटर्न देख कर निराश है. और अब वे इससे बाहर आने को उतावले हो चुके हैं.
आज वे इंतजार कर रहे हैं कि कब मेरा पैसा बराबरी पर आये और वे उसे बेच कर हो रहे नुकसान से बच जायें. ऐसे ही एक निवेशक है एके सिन्हा जी. उन्होंने 2016 में स्मॉल कैप में अपना पैसा लगाया. 2016-17 में स्मॉल कैप ने डबल डिजिट में रिटर्न दिया.
तब उन्होंने उसमें से लाभ भी अर्जित किया. फिर अति खुशी में आकर अपने रिटायरमेंट का पूरा पैसा एक बार फिर से स्मॉल कैप में लगा दिया. साथ ही उन्होंने अपने सारे दोस्तों को भी अपने लाभ के बारे में बताते हुए निवेश करने की सलाह देकर स्मॉल कैप में निवेश करवा दिया. 2019 में स्मॉल कैप का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा और उनका सारा पैसा आधा हो गया. निगेटिव रिटर्न देख वे हताश हो गये और तनाव में आ गये.
निवेश मनोविज्ञान कहता है कि जो फंड दो साल से टॉप पर है वह हमेशा टॉप नहीं रहता. नतीजा यह हुआ कि वे अब सभी लोगों से कहते रहते हैं कि स्मॉल कैप में निवेश नहीं करना चाहिए. तब उन्होंने नुकसान सहते हुए सारा पैसा निकाल लिया. उनके चक्कर में आये उनके दोस्तों को भी नुकसान उठाना पड़ा है. इतना ही नहीं, रिटायरमेंट के पैसे में हुए नुकसान के कारण उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा. लोग चाय की चर्चा पर निवेश की बात करते हैं और अपने पुराने रिटर्न को बता कर लोगों को इसी तरह निवेश करने को बताते हैं. और फिर उनका हाथ जलता है और वे नुकसान कर बैठते हैं.
गौर करें : हर एसेट क्लास हर वक्त एक जैसा रिटर्न नहीं देता है
इस घटना से स्पष्ट है कि उन्होंने दो बार गलती की. पहला कि एक बार लाभ लेने के बाद फिर से उम्मीद कर बैठे कि हर साल उन्हें उसी एसेट क्लास में निवेश करने से बेहतर रिटर्न मिलेगा. दूसरी गलती कि जब रिटर्न निगेटिव में दिख रहा है तो इंतजार करने का धैर्य रखना चाहिए. यह बात मान लेना चाहिए कि हर एसेट क्लास हर वक्त एक जैसा रिटर्न नहीं देता है.
हर एसेट क्लास का अपना एक चक्र होता है और हर का एक औसत निवेश का समय होता है. इसी तरह अगर इक्विटी में निवेश करना चाह रहे हैं तो लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहिए. गोल्ड भी हर समय अच्छा रिटर्न नहीं देता, वैसे भी गोल्ड में निवेश कम ही होता है. डेब्ट में भी कम समय में सबसे अधिक रिटर्न नहीं मिलता. आइए, इसको आंकड़ों से समझते हैं. तीन तरह के एसेट क्लास – इक्विटी, गोल्ड और डब्ट फंड्स के पिछले 10 साल के औसत प्रदर्शन पर गौर करें (चार्ट देखें).
अभी एसआइपी को बंद करने से होगा नुकसान
औसत रिटर्न को देखते हुए एसआइपी का चलन शुरू हुआ. लोगों को छोटे-छोटे निवेश में इक्विटी का लाभ लंबी अवधि में बेहतर औसत रिटर्न मिलने लगा. लेकिन आज लोग एसआइपी बंद करने लगे हैं, जबकि यही समय है जब एसआइपी में निवेश बढ़ाना चाहिए. अभी मौका है जब आप कम मूल्य पर ज्यादा यूनिट्स प्राप्त कर सकते हैं.
और लंबी अवधि में यही यूनिट्स आपको जबर्दस्त रिटर्न देंगे. एसआइपी हमेशा वोलाटाइल मार्केट के समय करना चाहिए. एकतरफा तेजी के समय एसआइपी शुरू नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस समय आप हमेशा अधिक मूल्य पर यूनिट्स खरीदेंगे. और जब बाजार थोड़ा भी नीचे जायेगा, तो आपको वह निगेटिव दिखेगा. अनिश्चितता के समय एसआइपी शुरू करना चाहिए.
एक गलती को छुपाने के लिए दूसरी गलती करना : अभी जब बाजार में अनिश्चितता है तो एसआइपी को बंद करना तो पहली गलती है, वहीं इस पैसे को फिर से एफडी या डेब्ट फंड में निवेश कर देते हैं. जबकि आज के समय में यह 5-6 प्रतिशत से अधिक रिटर्न नहीं दे रहा है.
अति आत्मविश्वास में नुकसान कर बैठना : एक बार सफल हो जाने के बाद उसी रास्ते को हमेशा के लिए सही मान लेना. पिछले साल के रिटर्न को देखते हुए निवेश करना घातक होता है.
किस्मत को स्किल समझ लेना : जब सरकार के कदमों से किसी खास एसेट क्लास को फायदा होता है, तो निवेशक उसे अपना स्किल समझ कर उसी में अधिक निवेश कर गलती कर बैठता है.
जो एसेट क्लास चमक गया उसी में सारा पैसा लगा देना : लोग दौड़ते घोड़े की सवारी करना चाहते हैं. यानी जो एसेट क्लास में अच्छा रिटर्न मिल रहा है उसी में अपना सारा पैसा लगा देते हैं. इस तरह भावना में बह कर निवेश नहीं करना चाहिए.
बिजनेस न्यूज चैनल के आधार पर निवेश कर बैठना : टीवी की खबरों को सुन कर निवेश करने का निर्णय नहीं करना चाहिए. जैसे आरबीआइ द्वारा रेपो रेट कम करने की संभावित खबर के आधार पर किसी खास एसेट क्लास में निवेश करना एक बड़ी गलती है.
डाइवर्सिफीकेशन पर ध्यान न देना : सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाइ बना कर रखें. सिर्फ एक ही एसेट क्लास में पूरा पैसा कभी न लगाएं.
यह है औसत रिटर्न की फिलॉसफी
यह तो स्पष्ट है कि हर एसेट क्लास हर वक्त एक जैसा रिटर्न नहीं देता. नीचे दिये गये चार्ट से भी स्पष्ट है कि इक्विटी में जहां 2014 में 52.02 प्रतिशत का रिटर्न मिला है वहीं अगले ही साल उसने 2.03 प्रतिशत ही रिटर्न दिया है. गोल्ड में 2011 में 30.76 प्रतिशत का रिटर्न मिला है तो 2013 में -14.11 प्रतिशत का रिटर्न मिला है. डेब्ट फंड्स में भी यही हाल रहा है.
2016 में 15.50 प्रतिशत का रिटर्न दिया, जबकि अगले ही साल 2017 में 2.58 प्रतिशत का रिटर्न दिया. इसलिए कभी भी पिछले रिटर्न को देखते हुए निवेश का निर्णय नहीं करना चाहिए. जब कभी भी पिछले रिटर्न की तुलना करने की सोचे तो कम से कम 10 साल के उसके प्रदर्शन को देखना चाहिए. यह उस एसेट क्लास के औसत रिटर्न को बताता है. 2003 से 2017 की अवधि में तीनों एसेट क्लास का औसत रिटर्न इस प्रकार रहा है: इक्विटी फंड : 16.2%, गोल्ड: 11.6%, डेब्ट फंड : 7.1% रहा.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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