नयी दिल्ली : सरकार ने चुने गये सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण में तेजी लाने के प्रयासस्वरूप रणनीतिक विनिवेश की नयी प्रक्रिया को मंजूरी दे दी. अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गुरुवार देर शाम हुई मंत्रिमंडल की बैठक में विनिवेश की इस प्रक्रिया को मंजूरी दी गयी. इसके तहत वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाले निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) को सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बिक्री के लिए टॉप एजेंसी बनाया गया है.
अधिकारी ने कहा कि यह कदम रणनीतिक विनिवेश प्रक्रिया में तजी लाने के ध्येय से उठाया गया है. इसमें सार्वजनिक उपक्रम से संबंध मंत्रालय की भूमिका को कम किया गया है, क्योंकि आमतौर पर मंत्रालयों में उनके उपक्रमों में बड़ी हिस्सेदारी बिक्री को लेकर अनिच्छा रहती है. फिलहाल, रणनीतिक बिक्री के लिए सार्वजनिक उपक्रमों की पहचान नीति आयोग करता रहा है, लेकिन अब नीति में बदलाव के बाद दीपम भी सामने आ गया है.
अब दीपम और नीति आयोग दोनों मिलकर रणनीतिक बिक्री के लिए उपक्रमों की पहचान और प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का काम करेंगे. इसके साथ ही, अब वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले दीपम के सचिव विनिवेश पर गठित अंतर मंत्रालय समूह की बैठक की सह-अध्यक्षता करेंगे. इस समूह में सार्वजनिक उपक्रमों के प्रशासकीय मंत्रालयों के सचिव शामिल हैं. सचिवों के एक समूह द्वारा भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) में सरकार की पूरी 53.29 फीसदी हिस्सेदारी, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में पूरी 63.75 फीसदी और कॉनकोर में 30 फीसदी तथा नीपको में 100 फीसदी तथा टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (टीएचडीसी) की 75 फीसदी हिस्सेदारी बेचने पर सहमति व्यक्त करने के एक सप्ताह के भीतर ही प्रक्रिया में यह बदलाव किया गया है.
अधिकारियों ने बताया कि रणनीतिक बिक्री प्रक्रिया दो चरणों की सकती है. पहले चरण में किसी उपक्रम में हिस्सेदारी खरीदने के लि, रूचि व्यक्त की जा सकती है और दूसरे तथा अंतिम चरण में उपक्रम के लिए वित्तीय बोली लगायी जा सकती है. रणनीतिक बिक्री के लिए पेश किये जाने वाले उपक्रम के बारे में तमाम जानकारी रखी जायेगी. अधिकारी ने कहा कि इसके पीछे सोच यह है कि प्रक्रिया चार से पांच माह में पूरी कर ली जाए.
सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान विनिवेश के जरिये 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है. सरकार के उद्योग जगत को करों में कटौती के रूप में 1.45 लाख करोड़ रुपये का प्रोत्साहन पैकेज देने के बाद विनिवेश लक्ष्य को हासिल करना और भी अहम हो जाता है.
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