नयी दिल्ली : केंद्र ने आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपनी सफार्इ देते हुए कहा कि विशेषज्ञों ने उसकी आधार योजना को मंजूरी दी है और इसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि यह एक नीतिगत निर्णय था. सरकार ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को बताया कि आधार धनशोधन रोकने और सब्सिडी एवं लाभ देने का बेहतरीन जरिया है. संविधान पीठ आधार योजना और इससे जुड़े 2016 के कानून की वैधता का परीक्षण कर रही है.
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अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति एके सीकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण की सदस्यता वाली पीठ को बताया कि विशेषज्ञों द्वारा मंजूर सरकार के नीतिगत निर्णयों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. काफी लंबी चली सुनवाई में वेणुगोपाल ने विश्व बैंक सहित कई अन्य रिपोर्टों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने माना है कि भारत ने गरीबों में गरीब की पहचान के लिए एक कदम उठाया है, जिससे सभी के लिए वित्तीय समावेश का लक्ष्य प्राप्त करने में आखिरकार मदद मिलेगी.
वेणुगोपाल ने कहा कि यदि सरकार के हर कदम की न्यायिक समीक्षा होने लगी, तो विकास की रफ्तार थम जायेगी. उन्होंने कहा कि अदालतों को तकनीकी विशेषज्ञता के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत का एकमात्र कर्तव्य कानून की भाषा की व्याख्या करना है और वह यह तय नहीं कर सकती कि कोई नीतिगत निर्णय उचित है कि नहीं. पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि योजना का विरोध कर रहे लोग कहते हैं कि यह आनुपातिकता के सिद्धांत का उल्लंघन है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि आधार योजना साधन एवं लक्ष्य के बीच तार्किक गठजोड़ को दिखाकर आनुपातिकता को संतुष्ट करती है. उन्होंने कहा कि सभी सब्सिडी गरिमा के साथ जीने के अधिकार का हिस्सा हैं और यह निजता के अधिकार पर वरीयता पायेगी. इस मामले में बहस कल भी जारी रहेगी.
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