नयी दिल्ली : वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) व्यवस्था शुरू होने से पहले अक्तूबर, 2016 से जून, 2017 के दौरान पंजीकरण कराने वाली एकल स्वामित्व वाली फर्म, एलएलपी और हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) इनपुट कर क्रेडिट दावा करने के लिए केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क (सीबीईसी) की जांच के घेरे में हैं. सूत्रों ने बताया कि सीबीईसी ने इस तरह की इकाइयों की सूची तथा उनके की आेर से दायर रिटर्न तथा जीएसटी से पहले की अवधि के लिए क्रेडिट दावे का ब्योरा अपने फील्ड अफसरों को सौंप दिया है. इस पूरी प्रक्रिया का मकसद ऐसी इकाइयों द्वारा बदलाव के समय का लाभ उठाते हुए अनुचित तरीके से क्रेडिट दावों की जांच करना है.
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सूत्रों का कहना है कि इन इकाइयों ने एक जुलाई, 2017 को जीएसटी लागू होने से पहले आनन-फानन में जीएसटी पंजीकरण करा लिया था. ऐसा माना जा रहा है कि कई व्यापारियों तथा छोटे कारोबारियों ने उत्पाद एवं सेवा कर क्रेडिट लेने के लिए जीएसटी पंजीकरण हासिल किया है, जो पूर्ववर्ती उत्पाद, सेवा कर और वैट व्यवस्था में सिर्फ विनिर्माताओं को उपलब्ध था.
सूत्रों ने बताया कि शुरुआती जांच में यह तथ्य सामने आया है कि कई नये बने एलएलपी और एचयूएफ के अलावा एकल स्वामित्व की फर्मों ने जीएसटी लागू होने से पहले की अवधि के लिए क्रेडिट का दावा किया है, जबकि वे इसके पात्र नहीं हैं. सीबीईसी ने सभी मुख्य आयुक्तों को एक करोड़ रुपये से अधिक के क्रेडिट दावों की जांच को कहा है.
पिछले साल जुलाई में जीएसटी की ओर बदलाव के तहत करदाताओं को फॉर्म टीआरएएन-1 भरने और जीएसटी पूर्व व्यवस्था में आखिरी रिटर्न में घोषित क्रेडिट के आधार पर कर क्रेडिट लेने की सुविधा दी थी. राजस्व विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, कारोबारियों की आेर से सितंबर, 2017 में जीएसटी से पहले की अवधि के लिए 65,000 करोड़ रुपये के इनपुट कर क्रेडिट के दावे किये गये हैं.
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